Wednesday, August 25, 2010

गुरु मंत्र से सिद्धि

कालिदास विश्व के विख्यात कवि थे, परन्तु प्रारंभ में ये सर्वथा मूर्ख, निरक्षर व अबोध व्यक्ति थे, जब पत्नी ने महल से धक्का देकर उन्हें  बाहर निकल दिया तो संयोगवश मार्ग में ही विख्यात योगी कालीचरण मिल गए, उन्होंने साधना के बल पर सब कुछ जान लिया, बोले : "तुम निरक्षर हो, अतः साधना तो कर नहीं सकते पर मैं तुम्हें अपना
शिष्य बनाकर 'गुरु मंत्र' दे देता हूँ.और यदि निरंतर गुरु सेवा और गुरु मंत्र जप करोगे तो निश्चय ही तुम जीवन में वह सब कुछ पा सकोगे जो कि तुम्हारा अभीष्ट हैं."
             युवक कालिदास ने गुरु की बात अपने हृदय में उतार ली और निरंतर गुरु मंत्र का जप करने लगा,वह सोते, बैठते, उठाते, जागते, खाते, पीते गुरु का ही चिंतन करता, गुरु उसके इष्ट और भगवान बन गए, सामने कलि की मूर्ति में भी उसे गुरु के दर्शन होते, गुरु को उदास देखकर वह झुंझला जाता, गुरु को प्रसन्न मुद्रा में देखकर वह खिल उठता, चौबीस घंटे वह गुरु के ध्यान में ही डूबा रहता और इसी प्रयत्न में रहता कि गुरु उसे आज्ञा दे और वह प्राणों की बजी लगाकर भी उसे पूरा करे, वह हर क्षण ऐसे मौके की तलाश में रहता, जब उसे गुरु सेवा करने का अवसर प्राप्त हो सके.
             इस प्रकार कालिदास ने अपने आपको पूरी तरह से गुरुमय बना दिया था. 90 दिन के बाद स्वामी कालीचरण ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर "शाम्भवी दीक्षा" दी और ऐसा होते ही उसके अन्तर का ज्ञान दीप प्रदीप्त हो उठा, कंठ से वाग्देवी प्रगट हुयी और स्वतः काव्य उच्चरित होने लगा.
आगे चलकर बिना अन्य कोई साधना किये केवल गुरु साधना और शाम्भवी दीक्षा के बल पर कालिदास अद्वितीय कवि बन कुमार संभव,मेघदूत और ऋतुसंहार जैसे काव्य ग्रंथों की रचना कर विश्व विख्यात बन सकें.

 -मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान.
जुलाई 2006, पेज न. : 4.

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