Showing posts with label SADGURUDEV PRASANG- THAT ONE SECOND. Show all posts
Showing posts with label SADGURUDEV PRASANG- THAT ONE SECOND. Show all posts

Sunday, November 27, 2011

SADGURUDEV PRASANG- THAT ONE SECOND

=============================

गुरुदेव के सन्याश जीवन की कुछ कडिया एसी होती हे जो की गृहस्थी से जुडी हुयी होती हे. एसी कई घटना हे जोकि गुरुदेव के सन्याशी शिष्यों के साथ घटी हे और बदल दिया हे इतिहास, किन्तु एसी घटनाए प्रकाश में नहीं आती हे . एसेही एक घटना की जानकारी मुझे मिली तो सहम सा गया में, उलज के रह गया, और सवालो का तूफ़ान कुछ एसा उठा की पागल सा हो गया कुछ क्षण , पर जवाब तो उसका वो एक क्षण मात्र ही थी , जिसने कितनो की ज़िन्दगी बदलदी और नजाने कितनो की ज़िन्दगी बदलेगी. वो एक क्षण जिसके ऊपर न जाने किसका हक कहा जाए . और क्या हुआ था, केसे कब और क्यों , क्या खाश हुआ उस एक क्षण में, आगे उसीके शब्दों में ......

---------------------------------------------------------------------------------------------
अमृत मंडल, गुरुदेव ने अपने सन्याश जीवन में चुन चुन के ४० शिष्यों को एकजुट किया और इसी मंडली को नाम दिया अमृत मंडल. पता नहीं गुरुदेव का इसपर क्या विचार रहा होगा. ४० शिष्यों को वो टोली , जिसमे एक से एक विलक्षण व्यक्तित्व. सभी अपने अपने साधना विषयो में तो निष्णांत थे ही पर सभी व्यक्तिगत रूप से भी कुछ विचित्र, कुछ फक्कड़, कुछ अलग से रहने वाले. में भी उनमे से ही एक था. गुरुदेव ने हमे उन उँचइयो पर पहोचाया था जहाँ तक साधक कल्पना ही कर सकते हे और इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए एक दिन वह भी आया की जेसे रहे फट जाए . गुरुदेव सन्याश छोडके वापिस गृहस्थी में जा रहे थे. दुसरे सन्याशी शिष्यों की तरह अमृत मंडल के कोई भी साधक ने उन्हें रोका नहीं. सब जानते थे की गुरुदेव वही करेंगे जोकि सही होगा और हमें अपने भावनाओ के ऊपर काबू पाना भी सिख ही तो लिया था. गुरु कोई व्यक्तिगत सम्पति थोड़ी हे, उन पर तो सभी शिष्यों का हक हे . और हम भीनी आँखों से उसे विदा होते हुए देख रहे थे
हिमालय जेसे हसना ही भूल गया था, प्रकृति मायूस सी दुखी सी होके बेठी रहती थी , और सभी सन्याशी शिष्यों की बात ही क्या कहू, वो तो जेसे चलते फिरते पुतले हो गए थे. पर पता नहीं क्यों गुरुदेव किसी भी सन्याशी शिष्यों को मिलने के लिए तैयार ही नहीं होते थे . क्यों ? आखिर क्यों वो अपने आत्मीयो से अलग रहते हे , ठीक हे लेकिन एक बार वो मिल तो सकते ही हे . और में भी यही सोचके दिल बहला लेता था की गुरुदेव कुछ कर रहे हे तो शिष्यों की भलाई के लिए ही करते होंगे.
उसी दौरान गुरुदेव का सन्देश मिला. उन्होंने मुझे बुलाया था , मिलने के लिए. जान के आश्चर्यचकित हो गया में की एसा केसे हुआ , क्यूँ की मेने कभी गुरुदेव से मिलने के लिए गुज़ारिश नहीं की थी और कई तो रो रो के जेसे बेजान मूर्ति बन गए थे. फिर भी .....आखिर उन्होंने बुलाया हे , ज़रूर कुछ तो विशेष होगा ही.दुसरे दिन निश्चित समय पर , कुछ ही क्षण में पहोच गया में उस मंदिर में जहाँ मेरे भगवन साक्षात् थे. अपना रूप परिवर्तन करके गृहस्थ बना और आगे बढ़ गया... सायद उस दिन कुछ विशेष ही होगा. गुरुदेव और वन्दनीय माताजी बहार खड़े थे और खिचड़ी बाँट रहे थे , एक लम्बी सी कतार थी, में उसी में ही खड़ा हो गया. दूर से ही उनकी मुखाकृति देख रहा था, वही प्रसन्नचित्त चहेरा, आन्दित सा, जो हमेशा आनंद बिखेरता रहता हे . अब में उनसे कुछ ही दूरी पर खड़ा था. कई साल बाद उनको देखना देखना नहीं होता, वो तो एक एसा जाम होता हे जिसे पिटे ही रहे पिटे ही जाए, ये तो वही समाज सकता हे जिसने विरह की वेदना देखि हो, वो आनंद एक दूरी ही समजा सकती हे. खेर एक सेवक ने मुझे पड़िया दे दिया. में आगे बढ़ा और वन्दनीय माताजी जो की सच में ब्रम्हांड की शक्ति हे , जो सिर्फ ममता ही ममता बहाती रहती हे उन्हें प्रणाम किया , उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया. और थोड़ी खिचड़ी उठा के मेरे पदिये में दाल दी.

और में आगे बढ़ा, सदगुरुदेव की तरफ. थोड़े दुबले ज़रूर हो गए थे वह, पर मुखाकृति पर वही प्रसन्नता वही आनंद, में जुका और उनके वो पावन चरणों का स्पर्श किया जो की देवताओ के लिए भी दुर्लभ हे. और में उठा. मेने देखा वे सिर्फ निचे की तरफ देख रहे हे. एक क्षण जेसे सालो में बदल चूका था. में इसी रह में था की वो मुझे देखे, सालो बाद में उनकी आँखों में वो ममता करुणा सब देखू , पूरा ब्रम्हांड देखू पर वो पता नहीं कुछ अकड़ सा गया में , लोकिक भाषा में कहू तो ये सब आधी सेकंड में ही हो रहा था. और अचानक उन्होंने नज़ारे उठाई और सीधे तक दिया मेरे नज़रो में

और मेरी रूह कांप गयी जब मेने देखा उनकी आँखों में, वहां पे विषाद था, वहां पे चिंता थी , वहां पे एक दर्द था, बस एक क्षण , और में समजा की क्यों वो नहीं मिलने देते अपने सन्याशी शिष्यों को, और मेने समजा , उन गृहस्थ शिष्यों को भी , उनकी स्वार्थ परस्ता को, उनकी मक्कारी को, उनकी जूठी और खोकली शिष्यता को , और ये सब बस सिर्फ एक क्षण के लिए उतर आया उनकी आँखों में.

एक क्षण भी न रुक पाया में वहा पे, थोडा आगे बढ़ा और ओज़ल हो गया में उस दुनिया से, गुरुदेव ने सब कुछ ही तो कह दिया एक क्षण में , और में भी क्या कहता उनसे. उतना ही काफी था. अगर सायद ज्यादा क्षण रुकता तो में वहीँ तड़प के प्राण त्याग देता. कुछ क्षण or पहोच गया में वही जगह जहा पे अमृत मंडल के शिष्य मेरी राह देख रहे थे, प्रसाद दिया उनको.
सीधे ही उन्होंने पूछा , भाई केसे हे हमारे प्रभु,
मेने कहा ठीक हे . ज्यादा बोल सकू एसी स्थिति ही कहा थी.
और एक पानी की बूंद निकल गयी आंखसे और गिर गयी निचे स्वामी आशितोश के पैर के पास .
क्या हुआ भाई, सब ठीक तो हे
अब और में क्या करता, कब तक दबे रखता अपने दर्द को ...और चींख के साथ निकल गया वो दर्द मेरे आँखों से...भीगा हुआ सा मेरा चेहरा सब कुछ कह गया जो में न कह सका.

स्वामी भ्रमण आनंद , स्वामी शिस्यानन्द, स्वामी प्रेक्षानन्द ..आदि १५ लोगो ने तो देह त्याग पहले ही कर दिया था, ये कहके की गुरुदेव गृहस्थी में जा रहे हे तो हम भी उनके साथ ही जाएँगे. और उन्होंने शारीर का त्याग कर गृहस्थी में जन्म ले लिए, पर इसके बाद गुरुदेव ने मन कर दिया की कोई भी अब देहत्याग कर गृहस्थी में जन्म न ले. अब इस अमृत मंडल के २५ साधक ने रात को ही सदगुरुदेव से अश्रु भरे नैनों से निवेदन किया की वो अब उनका दर्द नहीं देख सकते , गुरुदेव ने भी सभी की भावनाओ को दिल में स्थान दिया और उनको कहा की वो क्या कहते थे

सब ने कहा की गुरुदेव हम देहत्याग करके गृहस्थी में जन्म लेंगे और आपके कार्य को आगे बढ़ाएंगे.

और गुरुदेव ने कृपा करके वो निवेदन स्वीकार कर ही लिया था. सबको अलग अलग निश्चित अवधि दी गयी जिसके बाद ही वो देहत्याग कर सकते हे.
और एक एक करके सब ने देहत्याग किया . में सब से आखरी था . में देख रहा था उस सूर्य को की जो पश्चिम की और भागे जा रहा हे. और में देखते ही रह गया क्यूंकि...कल एक नया सूर्योदय होने वाला हे.......
----------------------------------------------------------------------

और सुबह होने से पहले ही उस अमृत मंडल के आखरी सभ्य ने भी अपने प्राण को शरीर से अलग कर दिया. वो जिसने १२ कृत्ये सिद्ध कर रखी थी, वो जो साधू समाज में मशहूर था अपने अन्नपूर्णा साधना से , जिसकी पहचान थी उसका पागलपन , अल्हड़पन , जिसके गुस्से के आगे कोई गति नहीं, वो जिसे भगवन का भी डर नहीं था.......वही सहम गया था, डर गया था सिर्फ वो एक क्षण में जो उसने गुरुदेव की आँखों में देखा था ......आज वो कहाँ हे किस हाल में कुछ कहा नहीं जा सकता मगर अमृत मंडल के वो सदस्य और वो योगी उस एक क्षण कभी भी नहीं भुला पाए होंगे

जय गुरुदेव