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Tuesday, August 12, 2014

जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, That humans are not the same, who Terrified of the system,

जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, वह साधक तो बन ही नहीं सकता! 


तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई।
कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥
जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, वह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक सर्वोत्कृष्ट विद्या थी और समाज का प्रत्येक वर्ग उसे अपना रहा था! जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने में केवल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आदि जो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक विकृत रूप दे दिया! उन्होंने तंत्र का तात्पर्य भोग, विलास, मद्य, मांस, पंचमकार को ही मान लिया ।
“मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमेव च, मकार पंचवर्गस्यात सह तंत्रः सह तान्त्रिकां”

जो व्यक्ति इन पांच मकारो में लिप्त रहता हैं वही तांत्रिक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मदिरा तो खानी ही चाहिए, और वह नित्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ढोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं? लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं।
परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथभ्रष्ट लोगों का रहा, जिनकी वजह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अर्थों में देखा जायें तो तंत्र का तात्पर्य तो जीवन को सभी दृष्टियों से पूर्णता देना हैं!
जब हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, तो फिर तंत्र की हमारे जीवन में कहाँ अनुकूलता रह जाती हैं? मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना, हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी।
पहले प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तांत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्ष्ण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विधा हैं।
आज के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिद्री बने रहे, इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय में सफलता मिले! बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना में यदि कोई न्यूनता रह जायें, तो यह तो हो सकता हैं, कि सफलता नहीं मिले परन्तु कोई विपरीत परिणाम नहीं मिलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं।
जनसाधारण में इसका व्यापक प्रचार न होने का एक कारण यह भी था कि तंत्रों के कुछ अंश समझने में इतने कठिन हैं कि गुरु के बिना समझे नहीं जा सकते । अतः ज्ञान का अभाव ही शंकाओं का कारण बना।
तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मधयम मार्ग कहा गया है।
श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है ।
चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।
परस्पर आश्रित या आपस में संक्रिया करने वाली चीजों का समूह, जो मिलकर सम्पूर्ण बनती हैं, निकाय, तंत्र, प्रणाली या सिस्टम (System) कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है, रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है, यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये, किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है, तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है, शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है, और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है, वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है, जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा सकता, केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है, उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है।
जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है, कि वे उसे जानते है, जैसे कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा, मगर अधिक समय तक चलेगा, और जो वल्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा, उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है, मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा, अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.

तन्त्र परम्परा से जुडे हुए आगम ग्रन्थ हैं। इनके वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं।
तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र” । जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है।
तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है और साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्रचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं।

Sunday, February 26, 2012

question answering for sadhana or mantra

दिव्यता के पथ पर नये साधकों और नवागन्तुकों के मन मे अनेक सवाल होते हैं। जिसका जवाब वो अक्सर अन्य साधकों से अनुरोध पुर्वक पूछते हैं और कभी-कभी तो इन्हे काफी परेशान भी होना पड़ता है। फिर कहीं जाकर साधना के पथ पर अग्रसर होने के पद चिन्ह प्रप्त हो पाते हैं या फिर कभी-कभी तो बहुत से महत्वपुर्न तथ्य अनछुए ही रह जाते हैं। इस ग्रूप मे जो भी साधक , साधिका जुड़ें उनका चिन्तन साधना की तरफ़ पूरा सही हो इसके लिये ये एक प्रयास है जिसे आप अवश्य समझें, उम्मीद है आपके कई प्रश्नों का उत्तर आपको यहाँ मिलेगा। और यह लेख खासकर उन व्यक्तियों के लिए भी है जो अभी तक साधना जगत और हमारे अलौकिक निखिल परिवार से अनजान रहे हैं। वो जो मंत्र, तंत्र, यंत्र से अभी तक बिल्कुल बेखबर रहे हैं आप उन्हें भी अपने facebook profile में इस post से कुछ share करके या फिर profile में कहीं इसे स्थान देकर उन्हें जीवन का सही अर्थ समझा सकते हैं…

मनुष्य के जीवन का मूल चिंतन क्या है, अगर आप इस बारे में सोचें.. विचार करें, तो आप ये समझ पाऐंगे की मनुष्य के जीवन का मक्सद केवल साँस लेना नहीं है। हम केवल पैदा होके भोजन करके और बडे होने के लिए और फिर एक दिन मर जाने के लिए ही इस धरती पर इस जगह हम नहीं आए हैं। क्यूंकि अगर मर ही जाना होता तो फिर हमारे पैदा होने का मतलब भी क्या रहा? फिर हमारे इस मृत्यु लोक में आने का प्रयोजन क्या है, हम क्यूँ आए हैं?
कौन बताएगा.. कोई बता सकता है हमारे शास्त्रों के हिसाब से तो केवल गुरू। और वह गुरू जिसने खुद इन रहस्यों को समझा हो। इसके लिए कोई जरूरी नहीं कि लम्बी जटाएँ रखने वाला या भगवा वस्त्र धारण किये हुआ कोई साधू भी गुरू हो, जरूरी नहीं। पूर्णता प्राप्त किए हुए गुरू इतनी आसानी से कहीं भी सडक किनारे नहीं मिलते।वह तो कई जन्मों के पुन्य के उदय होने पर, हजारों साल में एक बार कभी आते हैं। और हमें उस समय उस गुरू को पहचानने की जरूरत है। और हम पेहचान सकते हैं साधना के माध्यम से...

प्र. आज के इस आधुनिक युग मे साधना का क्या महत्व है? मैं अपने रोज के इस busy life मे इसे क्यूँ स्थान दूँ, आखिर इससे होगा क्या..?
उ. आधुनिक जीवन जीने का ये मतलब नहीं की आप अपने जीवन को संकुचित करके रखें। मनुस्य का जीवन और बहुत सारे आयामों के लिए होता जो अक्सर लोग ज्ञान के अभाव मे नहीं समझते और यही कारण रहता कि अक्सर लोगों को लगता है कि सब कुछ पाकर भी जीवन में कुछ कमी है। हम खुद अपनी पूरी life को एक छोटे से घेरे मे रख लेते हैं और मान लेते हैं की हमने हर सुख की अनुभूती कर ली और हमारा जीवन पूर्ण हो गया। हम गलती कर देते हैं। Modern science या आधुनिक विज्ञान बहुत से रहस्यों को नहीं समझ पाता है, इसे हम तंत्र और साधना के माध्यम से ही समझ सकते हैं।

प्र. मुझे तंत्र, मंत्र शब्द से डर लगता है। यह बहुत गलत चीज है?
उ. तंत्र और मंत्र जैसे शब्द से डरने की जरूरत है ही नहीं। ये कुछ गलत नहीं है... तंत्र तो भगवान भोलेनाथ का वह वरदान है जिससे हम अपने जीवन की हर समस्याओं का निराकरण कर एक सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अपने जीवन की प्रत्येक न्यून्ताओं को समाप्त कर सकते हैं और हम जीवन के सही अर्थ को समझ सकते हैं। हाँ ये है की आप इसके Power को नहीं समझ पाए। ये तो एक विज्ञान है जिससे मनुष्य के अन्दर छुपी उस विराट सत्ता को जागृत किय़ा जा सकता है। पूजा करने से शायद कोई फायदा नहीं होता हो, मगर तंत्र से निश्चित अगर हम साधना कर लेते हैं तो हम उन दिव्य शक्तियों को प्राप्त कर ही सकते हैं। इससे तो सिद्धी मिलती ही है। मैं केह रहा हूँ आपसे और पहली बार यह केह रहा हूँ की ऐसा होता है!! इससे तो दिव्य शक्तियाँ जैसे की Telepathy, Clairvoyance, अपने पूर्व जन्मों को देख पाना, पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य लोकों को देख पाना। आपने रामायण, महाभारत जैसे पुराने ग्रंथों में ये पढा ही होगा पर इसको पहले ही गलत या असत्य मान लेना..... आप उस साधना रहस्य और उन मंत्रों को नहीं जान पाए इसलिए ऐसा समझ लिया। वे रहस्य तो गुरू अपने शिष्यों को करवाते ही हैं, अगर शिष्य अपने गुरू से प्रार्थना करे तो।

प्र. गुरू क्या होते हैं और ये कहाँ मिलेंगे?
उ. गुरू उसको कहते हैं जो अपने शिष्य को पूर्णता की ओर अग्रसर करता है। उसके जीवन की हर परेशानी को दूर करता हुआ उसे ब्रह्म से साक्षात्कार करवाता है। समझाता है की ईश्वर ने उसका जन्म क्यूँ किया। गुरू अपने ज्ञान और साध्नात्मक बल से मन के अंधकार को दूर करता है। इसलिए शाष्त्रों में उल्लेख है कि.. "गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः..." गुरू से ज्यादा पवित्र शब्द कुछ नहीं है। गुरू ही होते हैं जो शिष्य के समस्त पाप को अपने ऊपर ले लेते हैं। और प्रत्येक व्यक्ति का कोई गुरू होना ही चाहिए, नहीं तो वह खोता ही रहता है। दुनिया के जितने भी Religions हुए उन सबका आधार गुरू-शिष्य सम्बन्ध ही रहा है। आप चाहे वेद पढ लें, भगवत गीता पढ लें, Holi Bible पढ ले, कुरान पढ लें, गुरू ग्रंथ साहिब पढ लें सबमें आपको "Guru-Disciple Conversation" ही मिलेगा। और यह परम्परा तो हमारे सनातन धर्म में 40 हजार साल से है। पर आज कल हम Modern हो गए, हम भूल गए।

मगर गुरूत्व मरता नहीं, ऐसे श्रेष्ठ गुरू तो आज भी होते हैं और वो हैं। हमारा अत्यन्त सौभाग्य है कि हम युग-पुरूष Dr. Narayan Dutt Shrimali के समय में हैं। जिन्होनें भारतवर्ष के उन अति दुर्लभ साधनाओं को पुनर्जीवित कर हमें अपने छत्र-छाया में रखकर हमारे कई-कई जन्मों के प्यास को शांत किया।
http://en.wikipedia.org/wiki/Narayan_Dutt_Shrimali

प्र॰ गुरुदेव से मुलाकत कहाँ होगी ? कया हमे उनसे मिलने के लिये Appointment लेनी पड़ेगी ?
उ॰ आप व्यक्तिगत रूप से गुरुदेव को अपनी समस्याओं, योजना, विचारों के बारे में बता सकते हैं। मिलने एवं गुरू दीक्षा के लिए विशिष्ट दिनांक का पत्रिका में उल्लेख है।

Address- Kailash Siddhashram,
46, Kapil Vihar,
Pitampura, New Delhi 110034, India.
Phn- 011-27351006.

Pracheen Mantra Yantra Vigyan,
1C, Panchvati Colony,
Ratanada,
Jodhpur 342001, Rajasthan, India.
Phn- 0291-2517025.


पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेव से दीक्षा लेने और अपनी कोई भी समस्या का समाधान पाने हेतु कृपया निम्न पते पर संपर्क करें :
पूज्य गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमालीजी 
१४ अ, मेन रोड हाई कोर्ट कोलोनी
सेनापति भवन के पास,
जोधपुर ३४२००१
फ़ोन : ०२९१ - २६३८२०९, २६२४०८१ 

पूज्य गुरुदेव श्री कैलाशचंद्र श्रीमालीजी
१ - क, पंचवटी कोलोनी
एन सी सी ग्राउंड के सामने
रातानाडा,
जोधपुर ३४२०११ 
फ़ोन : ०२९१-२५१७०२५ 

पूज्य गुरुदेव श्री अरविन्द श्रीमालीजी
डॉ श्रीमाली मार्ग, हाई कोर्ट कोलोनी
जोधपुर ३४२००१ 
फ़ोन : ०२९१-२४३३६२३, २४३२२०९ 
पूज्य त्रिमूर्ति गुरुदेवजी से मिलने हेतु :

सिद्धाश्रम साधक परिवार 

प्र. आप तंत्र और मंत्र जैसे बडे शब्द use करते हैं, आखिर ये तंत्र, मंत्र इत्यादि हैं क्या? इससे क्या प्रभाव पडता है, मैं कैसे इसे use कर सकता हूँ?
उ. मंत्र कुछ एक विशेष संस्कृत के शब्दों का समूह होता है जिसके नियमित और नि्रधारित बार उच्चारण करने से, बोलने से हम मन चाहे कार्य कर सकते हैं। तंत्र का मतलब है वह तरिका वह system जिस विधी से हम साधना करें, मंत्र जप इतयादि जो करते हैं। और एक मत्वपू्रण चिज है यंत्र जिसमे उस दैविक शक्ति का निवास होता है जिनकी हम साधना करते हैं, और जिस देवी या देवता से अपना कार्य कराना है, वह इसी यंत्र में स्थापित हैं। ये तिनों चिज की मदद से हम साधना करेंगे। और जब हम मंत्र बोलते हैं और लगातार बोलते रहते हैं तो उससे एक ध्वनि बनती है, vibration निकलता है जो हॉँथ में घूम रही माला से शरीर के विभिन्न चक्रों से होते हुए हृदय स्थल से निकलकर यंत्र की शक्ति को जागरित करती है। सारा खेल Frequency का है जो आपके उच्चारण करने से पैदा हुआ। फिर ये ध्वनि ब्रह्मांड के उस ईष्ट से contact करके आपका काम कराती है। और शास्त्रों मे कहा है कि, "मंत्रोआधिनश्च देवः" यानि आप जिस प्रकार का मंत्र बोलोगे वो देवता उस प्रकार से आपका वह कार्य करेंगे। अरे भई संस्कृत इनकी language ही तो है, तो इनसे बात करनी है तो इनही की language मे बात करोगे न.. hindi बोलने से क्या होगा।

प्र. क्या साधना काम करती है? मैं जैसा चाहूं क्या ठीक वैसा ही तंत्र साधना से संभव है?
उ. बिल्कुल संभव है, और केवल तंत्र के माध्यम से ही संभव है। और कोई दूसरा रास्ता है नहीं। कम से कम आज के युग मे तो सिद्धी पाने का यही एक superfast रास्ता है जब लम्बे समय तक पूजा-पाठ वगैरह.... और उससे कुछ होता भी है?? नहीं। आप आरती करते रहिए धूप अगरबत्ती करते रहिए पूरे साल भर, मगर उससे न आज तक हुआ है न हो सकता है। तब हमें मंत्रों का साहारा लेना चाहिए। पर किसी साधना में सफलता हासिल करने के लिए कुछ नियम भी हैं जिसका पालन करना अत्यन्त अनिवार्य है।

1.. साधना घर के किसी साफ-सुथरी और एकान्त कमरे मे करें। स्वच्छ धुले कपडे हों और जिस रंग की धोती और आसन बताया है, उसी को पहन के करें.. लाल वस्त्र कहा है तो आप पूरे लाल रंग की ही धोती पेहनेंगे।
2.. धोती/ साडी पहनकर ही साधना होती है। jeans, t-shirt नहीं चलेगा because jeans, t-shirt में stiches होते हैं।
3.. आप जहाँ बैठकर जप करें वहां अपने नीचे उसी रंग का आसन जरूर रखें, जिसपर बैठकर ही साधना सफल होती है। आसन उस मंत्र की शक्ति को जमीन में जाने से बचाता है। आसन एक bad conductor का काम करता है।
4.. मंत्र, साधना, गुरू और ईष्ट पर पूर्ण विशवास रखें। सिर्फ टेस्ट करने के लिए, आजमाने के लिए न करें। अगर भरोसा है और साधना पूरी करनी हो तभी करें, यह कोई मजाक नहीं। और जो दृड निशचय के साथ साधना पर बैठता है, केवल उसी को सफलता प्राप्त होती है।
5.. जितने दिनों तक जप करना है वह रोज ऐक ही exact, fixed समय पर हो। अगर 7 दिन जप करना है तो 7 days ऐक ही समय पे शुरू करना है। और जितनी माला करनी है रोज उतना ही जप करें, न कम न ज्यादा ही। मतलब अगर 21 माला करने को कहा है तो 21 माला ही रोज करें।
7.. हर साधना को करने का अलग-अलग ढंग हमारे ऋषियों ने बनाया है। पहले पूरी विधी समझ लें फिर उसके हिसाब से साधना करें।
8.. साधना के दिनों में non-veg food नहीं खाना है। इससे मंत्रों का पर्भाव विफल होने लगता है। प्याज और लेहसुन भी वर्जित है।
9.. ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

प्र. मंत्र जप कैसे करना है?
उ. मंत्रों का स्पष्ट और साफ उच्चारण होना चाहिए। मंत्र के हर बीज को साफ-साफ और हल्के आवाज मे बोलना चाहिए। बहोत जोर से चिल्ला कर बोलने की जरूरत भी नहीं है। बहुत जल्दी-जल्दी या बहुत धीरे भी नहीं.. medium speed होनी चाहिए। और हर बीज का सही उच्चरण करना जरूरी है। मान लीजिए अगर मंत्र है-

।। ह्रीं श्रीं ह्रीं ।।

तो इसका उच्चारण ऐसे होगा- ।। Hreeng Shreem Hreeng ।।

मंत्र जप करते हुए बीच मे किसी से बात नहीं करनी चाहिए। अकेले रूम में साधना करें। माला फेरते हुए हिल्ना डुलना नहीं चाहिए। शांत भाव से ध्यान लगाकर साध्ना करें जैसे meditation कर रहे हैं।

प्र. माला कैसे फेरनी चाहिए?
उ. माला को Right Hand के Thumb, Middle Finger और Ring finger से पकड के हर bead पे एक बार मंत्र बोलना चाहिए। माला के सुमेरू पे मंत्र नहीं बोला जाता। सुमेरू यानी जो सबसे बीच का एक अलग सा मनका होता है। माला clockwise अपने तरफ घुमाते रहना चाहिए। जब सुमेरू के पास पहुंच जाएं तो सुमेरू को पकडे बिना ही माला घुमा लें ताकी आखिरी मनका पहला हो जाए। अगर माला फेरते हुए मंत्र गलत उचचरित हो जाए तो फिर शुरू से माला करने की जरूरत नहीं, आप उसी मनके से दुबारा बोलकर आगे बढ जाएँ।

प्र. साधना में दिशा का क्या महत्व है?
उ. हर साधना को एक निर्धारित दिशा को मुख करके ही करना चाहिए। हर देवता के आने का एक particular direction होता है। देवताओं के आवागमन ज्यादातर पूर्व अथवा उत्तर से होता है।

प्र. साधना के लिए माला, धोती वगेरह कहाँ से लेनी चाहिए?
उ. साधना सामग्री गुरूधाम में ही मिल जाएगी। ये उपकरण प्राण ऊर्जा युक्त होना जरूरी है जोकी यहाँ पर शिष्यों के लिए ही available रेहती हैं।

प्र. मैं हिंदू नहीं हूं, क्या मैं भी साधना कर सकता/सकती हूँ?
उ. भगवान तो एक ही होते हैं। किसी विशेष धर्म का इसपर कब्जा नहीं हैं। "All humans are one".

प्र. मैं एक परिवार वाला हूँ और मैं कोई साधू, सन्यासी नहीं बनना चाहता। मैं कैसे साधना कर सकता हूँ?
उ. व्यक्ति मन से सन्यासी या गृहस्थ होता है। अगर कोई सन्यास लेकर भी दुनिया वालों से लोभ रखता है तो वो सन्यासी है भी नहीं, वह एक ढोंग है। साधना के लिए दुनिया छोडनी नहीं होती वह तो घर पर भी की जा सकती है। बस साधना विधी का ज्ञान होना चाहिए। गुरूदेव तो खुद भी गृहस्थ हैं।

प्र. साधना और सिद्ध पुरूष बनने के लिए तो सबकुछ छोडके जंगल में जाना पडेगा ना? हमारे ऋषि मुनी तो वहीं रहते थे।
उ. जंगल या पहाड पे चढने की जरूरत नहीं आप साधना घर पर ही कर सकते हैं, और घर पर ही अगर एक रूम है और आपको कोई disturb नहीं करता है तो ठीक है। गुरूदेव से दीक्षा लेकर हम घर पर ही गुरू के बताए अनुसार साधना कर सकते हैं।