Monday, February 15, 2010

अनुशासन स्वतंत्रता साधन है & अनुशासनहीन स्वतंत्रता अति दु:खदायी है?,



जो व्यक्ति स्वतंत्र हैं, उन्हें यह खेद है कि उनमें अनुशासन नहीं। वे बार-बार प्रतिज्ञा करते हैं कि वे कुछ संयम में रहेंगे।
जो व्यक्ति नियंत्रण में रहते हैं, वे उसके समाप्त होने का इंतजार करते हैं। अनुशासन अपने आप में अंत नहीं, एक साधन है।
उन व्यक्तियों को देखो जिनमें जरा भी अनुशासन नहीं है, उनकी अवस्था दयनीय है। अनुशासनहीन स्वतंत्रता अति दु:खदायी है। और स्वाधीनता के बिना अनुशासन से भी घुटन होती है। सुव्यवस्था में नीरसता है, अव्यवस्था तनावपूर्ण होती है। हमें अपने अनुशासन को अजाद व स्वतंत्रता को अनुशासित करना है।
जो व्यक्ति हमेशा साथियों से घिरे हैं, वे एकांत का आराम ढूंढते हैं। एकांत में रहने वाले व्यक्ति अकेलापन अनुभव करते हैं और साथी ढूंढते हैं। ठंड में रहने वाले लोग गर्म स्थान चाहते हैं। गर्म प्रदेश में रहने वाले ठंड पसंद करते हैं। जीवन की यही विडंबना है।
प्रत्येक व्यक्ति संपूर्ण संतुलन की खोज में है। संपूर्ण संतुलन तलवार की धार की तरह है। यह सिर्फ आत्मा में ही पाया जा सकता है।
आत्मा के एकांत में
बुद्ध शिखर पर नहीं हैं, बल्कि शिखर उनके नीचे है। जो शिखर पर ऊपर जाता है, वह फिर नीचे आता है। पर शिखर उसको ढूंढता है जो और ऊपर, अपनी अंतरात्मा में स्थित है।
शिव को चंद्रशेखर कहते हैं, जिसका अर्थ है वह मन जो शिवमय है- इंद्रियों के परे, त्रिगुणातीत और सर्वदा शिखर के ऊपर है।
लोग दावतों और उत्सवों के पीछे भागते हैं। पर जो उनके पीछे नहीं भागता, दावत और उत्सव, जहां भी वह जाए, उसके पीछे चलते हैं। जब तुम दावतों के पीछे भागते हो, तुम्हें अकेलापन मिलता है।
जब तुम आत्मा के साथ एकांत में रहते हो, तुम्हारे चारों ओर उत्सव होते हैं।
संघर्ष का अंत
जब तुम शांतिपूर्ण वातावरण में होते हो, तुम्हारा मन संघर्ष पैदा करने के लिए बहाने ढूंढता है। प्राय: छोटी-छोटी बातें बडी हलचल मचाने के लिए पर्याप्त हैं, क्या आपने गौर किया है?
स्वयं से यह प्रश्न करो: क्या तुम हर परिस्थिति में शांति देखते हो या इस चेष्टा में रहते हो कि मतभेदों को बढाकर अपना मत प्रमाणित करो?
जब तुम्हारा जीवन संकट में होता है तब तुम्हें यह शिकायत नहीं होती कि दूसरे तुमसे प्रेम नहीं करते हैं। जब तुम भयरहित और सुरक्षित होते हो, तब तुम चाहते हो कि लोग तुमको पूछें। कुछ व्यक्ति दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही लडाई-झगडे उत्पन्न करते हैं। नकारात्मकता का बीज और संघर्ष करने की तुम्हारी प्रवृत्ति का अंत केवल साधना द्वारा ही संभव है।
शिव और कृष्ण एक ही हैं
अनंत के विविध गुण हैं और विशेष गुणों के अनुसार वे नाम ग्रहण करते हैं। उन्हें देवता कहते हैं।
देवता तो सिर्फतुम्हारी ही परम-आत्मा की किरणें हैं, तुम्हारे विस्तृत हाथ। वे तुम्हारी ही सेवा में रहते हैं-जब तुम केंद्रित होते हो। जैसे एक अंकुरित बीज से जड, स्कंध व पत्तियां निकलती हैं, वैसे ही जब तुम केंद्रित होते हो, तब तुम्हारे जीवन में सभी देवी-देवताओं का प्रकटीकरण होता है।
देवता तुम्हारी संगत में बहुत आनंदित होते हैं, पर तुम्हें उनसे कोई लाभ नहीं।
जिस तरह सूर्य के उज्ज्वल प्रकाश में सभी रंग समाए रहते हैं, उसी तरह सभी देवता तुम्हारी विशुद्ध आत्मा में समाए हैं। परम-सुख उनकी श्वास है, वैराग्य उनका वास।
वैराग्य के दाता हैं शिव- वह परम चेतना जिसमें भोलापन है, जो आनंदमय है, सर्वव्यापी है। कृष्ण शिव की बाह्य अभिव्यक्ति हैं और शिव कृष्ण के आंतरिक मौन।
ईश्वर का ग्यारहवां आदेश
जब तुम अकेले हो तो भीड में रहना अज्ञानता है। ज्ञान-प्राप्ति है भीड में भी अकेले रहना। भीड में सभी के साथ एकता महसूस करना बुद्धिमता का लक्षण है।
जीवन के प्रति ज्ञान आत्मविश्वास लाता है और मृत्यु का ज्ञान तुम्हें निडर बनाता है, आत्मकेंद्रित करता है।
भय क्या है? पृथकता, अलगाव का भय।
कुछ व्यक्ति केवल लोगों की भीड में ही उत्सव मना सकते हैं, और कुछ सिर्फएकांत में, मौन में, ख्ाुशी मना सकते हैं।
मैं तुमसे कहता हूं-दोनों करो।
एकांत में उत्सव मनाओ, लोगों के साथ भी उत्सव मनाओ।
शांति का उत्सव मनाओ, शोरगुल का भी उत्सव मनाओ।
जीवन का उत्सव मनाओ, मृत्यु का भी उत्सव मनाओ।
यही ग्यारहवां आदेश है।
जो झरना ऊपर की ओर जाता है
तुम केवल पानी का गिरना देखते हो। तुम यह नहीं देखते कि सागर कैसे बादल बन जाता है-यह तो एक रहस्य है। परंतु बादल का सागर बनना प्रत्यक्ष है, सुस्पष्ट।
संसार में बहुत कम लोग तुम्हारी आंतरिक उन्नति को पहचान सकते हैं, परंतु तुम्हारा बाहरी आचरण ही सबको नजर आता है।
कभी चिंतित नहीं हो कि लोग तुम्हें समझते नहीं। वे सिर्फ तुम्हारे भावों की अभिव्यक्ति को देख सकते हैं!