Wednesday, December 26, 2012

gyan batane par badhta hai




हम में से कई की ये मानसिकता है की सिर्फ उन्ही के पास ज्ञान रहे सिर्फ वो ही आगे बढे, बाकि लोगो से उन्हें कोई मतलब नहीं है। उनकी इसी मानसिकता के चलते काफी लोग उस दुर्लभ ज्ञान से वंचित रह गए जो ज्ञान किसीकी जिंदगी बदल सकता था ..............उन्होंने ये कभी नहीं सोचा की उनके पास जो ज्ञान है वो सिर्फ इसलिए है की उन्हें भी ये ज्ञान किसी ने दिया है ................
सदगुरुदेव इस प्रकार की मानसिकता के सदैव खिलाफ थे ..................सदगुरुदेव ने सदैव उन साधू , सन्यासी ,योगियों को जम के फटकारा की इन गुफाओ ,कंदराओ में बैठ के क्या हो जायेगा ??????? वो विद्या वो ज्ञान किस काम की जो समाज के काम न आ सके ......................

और इसका जीता जगता उद्धारण आपके सामने है ..........जो सनातन विद्या लुप्त सी हो गयी थी सदगुरुदेव ने उसे पुनः समाज के सामने लाया और खुले दिल से लुटाया ...............जो विद्या देवताओ के लिए भी दुर्लभ थी वो अदुतिय विद्या भी देते समय एक छन भी नहीं सोचा ..............जो कोई भी उनके द्वार पे गया कभी खली हाँथ नहीं लौटा ............................

इसी ज्ञान को घर घर में पहुचने के लिए उन्होंने मंत्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया ..................उन्होंने हमेशा ये कहा की आप लोग इस पत्रिका का जितना प्रसार कर सके करे .....जितने पत्रिका सदस्य आप बना सके उसे बनाये ..........क्योंकि आप सब मेरे प्राणों के अंस है अगर आपसे अपने दिल की बात नहीं कहूँगा तो फिर किससे कहूँगा ...........ये सिर्फ आपका फर्ज ही नहीं बल्कि मेरी आज्ञा भी है ................

सदगुरुदेव की सदेव यह इच्छा रहती थी की उनके शिष्य भी इस ज्ञान को सभी जगह फलाये ........................ इसीलिए उन्होंने कहा मै तुम सब को जीता जगता ग्रन्थ बनाना चाहता हूँ ...........तुम्हे सूर्य बनाना चाहता हूँ ............... जिससे आप स्वयं तो प्रकाशित हो ही पर आप दुसरे को भी प्रकाशित कर सके ...........जीवन की सार्थकता सही अर्थो मे इसी में है ...............

सदगुरुदेव कह रहे है की शुभ अवसर पर हम एक दुसरे को मिठाइया देते है ये परम्परा तो काफी समय से चले आ रही है .................आप एक नयी परम्परा प्रारंभ करे ..........आप पत्रिका या कैसेट उपहार स्वरुप दे .............आप कैसेट गुरुधाम से मंगवा कर या ग्रुप और युटियुब मे भी सदगुरुदेव की काफी कैसेटे लोड हो चुकी है, अतः आप भी इन कैसेटो को सीडी मे कॉपी करके या सॉफ्ट कॉपी, जैसी आपकी सुविधा हो नए वर्ष के अवसर पे उपहार स्वरुप दे ............... ताकि आप भी किसी के घर में ज्ञान का दीपक जला सके .................

आइये हम सब मिलके एक नयी परम्परा प्रारंभ करे ........ और ये प्रतिज्ञा करे की हम खुद तो प्रकाशित होंगे ही पर दुसरे को भी अवश्य प्रकशित करेंगे ...............................................

जय सदगुरुदेव
वन्दे निखिलं जगद्गुरुम

Saturday, November 17, 2012

You can uplift of India - Part 4 भारत का उत्थान तुम कर सकते हो





भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ७

और शिष्य बस राम नाम सत्य है आगे गया गत है। अब यहां तो गति हुई नहीं आगे होगी या नहीं यह आपने देखा नहीं। मैं कह रहा हूं गति कुछ होती नहीं है, गति हम उसकी करेंगे जो हमारे घर मे गड़बड़ करेंगे, जो हमारे घर में हिंसा लाएगा कमजोरी लाएगा। कारखाने में कोई गोली बननी ही नहीं चाहिए जो आपको लग जाए। जब बनेगी ही नहीं तो लगेगी कहां से वो।

मैं आपको ऐसा क्षमतावान बनाना चाहता हूं, जो पांच हजार वर्षों मे समाप्त हो गया उस ज्ञान को आपको देना चाहता हूं, उस कृत्या को आपको प्रदान कर देना चाहता हूं आप तेजस्विता युक्त बनें। सुर्य तो बहुत कम चमक वाला है आप उससे हजार गुना चमक वाले बनें, ऐसा ज्ञान मैं आपको प्रदान करना चाहता हूं।

मैंने आपको समझाया कि हम कमजोर और अशक्त क्यों है, मानसिक रुप से परेशान और रूग्ण क्यों है, और ऐसी कौन सी विद्या, कौन सी ताक़त है जिसके माध्यम से जो हमारे विकार हैं वे समाप्त हो सकें। हमारे मन कुल ३२ संचारी भाव होते हैं सोलह अनुकूल, सोलह प्रतिकूल। घृणा, कोध, प्रतिशोध, दुर्भावना, लोभ मोह, अंहकार ये सब संचारी भाव है। और कुछ अच्छे संचारी भाव भी होते है जैसे प्रेम, स्नेह, परोपकार।

जीवन का सार बलशाली होना है, जब तक आदमी निर्बल रहेगा तब तक आदमी सफ़ल नहीं हो सकता। और बलशाली होने के लियी उसे सोलह जो प्रतिकूल संचारी भाव है उन्हें समाप्त करना होगा। प्रकृति भी निर्बल को सताती हैं। दिया निर्बल होता है, थोड़ी सी हवा चलती है और उसे बुझा देती है। और वही दिया अगर आग बन जाये तो हवा उसे बढ़ा देती है, हवा भी सहायक बन जाती है। ताकतवान का साथ देती है हवा निर्बल कि नहीं बनाती। दोनों ही आग है और हवा एक ही है मगर जो ताकतवान है जो क्षमतावान है उसकी वह सहायक बनती है।

आप ताकतवान है तो आप पूर्ण सफलतायुक्त होते ही है और वह ताकतवान होना मन से संबधित है, विचारों से संबंधित है। और कृत्या का अर्थ यही है कि आप ताकतवान, और क्षमतावान बने। मगर मंत्र जप आप करते रहे, एक महिना, दो महिने छः महीन पांच साल दस साल - ऐसी विद्या मैं आपको नहीं देना चाहता। मंत्र तो दूंगा ही मगर इतना लंबा मंत्र नहीं कि पांच साल जप करो तब सफ़लता मिले। ऐसा नहीं। पहली बार में ही सफ़लता मिलनी चाहिऐ, पूर्ण सफ़लता मिलनी चाहिऐ।

जो भी मंत्र आपको दूंगा वह महत्वपूर्ण दूंगा, मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि आप एक साल मंत्र जप करें, पांच दिन करे मगर पुरी धारणा शक्ति के साथ करें गुरू को ह्रदय मे धारण करके करे। यह सोचिए कि गुरू के अलावा मेरे जीवन मे कुछ है ही नहीं। मैं यह नहीं कह रहा कि मैं आपका गुरू हूं तो आप मेरी प्रशंसा करी, आपके जो भी गुरू हों गुरू है तो है ही उनके बिना फिर सांस लेने कि भी क्षमता नहीं होनी चाहिए। और एक बार गुरू को धारण किया तो कर लिया, जो उसने कहा वह किया। फिर अपनी बुद्धि, अपनी होशियारी, अपनी अक्ल आप लडाएंगे तो आप ही गुरू बन जाएंगे, फिर कोई और गुरू बनाने कि जरूरत ही नहीं क्योंकि फिर आप ही गुरू है क्योंकि आप मुझसे ज्यादा गाली बोल सकते है, मुझसे ज्यादा झूठ बोल सकते है और मुझसे ज्यादा लडाई कर सकते है तो मुझसे योग्य हैं ही आप। मैं आपको जितना क्रोध कर नहीं सकता आपके जितना लडाई झगडा कर नहीं सकता। जीतनी शानदार २००० गलियां आप दे सकते है मैं दे ही नहीं सकता।

मगर साधनाओं मे आपसे ज्यादा क्षमता है, आपसे ज्यादा पौरुष है, आपसे ज्यादा साहस आपसे ज्यादा धारण शक्ति हैं। कृत्या का तात्पर्य यह भी है कि हममे साहस हो, पौरुष हो, धारणा शक्ति ह। कृत्या अपने आपमें एक प्रचंड शक्ति है जो भगवान शिव के द्वारा निर्मित हुई, जिसके कोई तूफान का अंत नहीं था। जब हूंकार करती थी तो दसों दिशाएं अपने आपमें कांपती थीं और उससे जो पैदा हुए उस कृत्या से वे वैताल जैसे पैदा हुए, धूर्जटा जैसे पैदा हुए, विकटा जैसे, अघोरा जैसे पैदा हुए। जो ग्यारह गण कहलाते हैं भगवान के वे कृत्या से पैदा हुए।

आपके जीवन में क्षमता साहस, जवानी पौरुष कृत्या साधना के माध्यम से ही आ सकती है। कृपणता, दुर्बलता, निराशा आपके जीवन में नहीं है, आप अपने ऊपर जबरदस्ती लाद लेते हैं हर बार लाद लेते है कि अब मैं कुछ नहीं कर सकता, मेरे जीवन में कुछ है ही नहीं।

और धीरे-धीरे आप, नष्ट होते जा रहे हैं। देश में जो चल रहा है, जो हो रहा है उसके लिए विज्ञान कर क्या रहा है हमारी उपयोगिता फिर क्या है हम फिर क्यों पैदा हुए हैं? ज्ञान क्या चीज है? पहले ज्ञान सही था तो अब ज्ञान सही क्यों नहीं हो रहा हां? मैं यह सिद्ध करना चाहता हूं।

मैं बताना चाहता हूं कि आयुर्वेद मे वह क्षमता है कि प्रत्येक रोग का निवारण कर सके। पहले किसी पौधी के पास खडे होते थे तो पौधा खुद खडा हो जाता था कि यह मेरा नाम है, यह मेरा गुण है, यह मेरा उपयोग है और मनुष्य जीवन के लिए मैं इस प्रकार उपयोगी हूं। पेड पौधे पहले इतना बोलते थे तो आज भी बोलते होंगे जरूर। उस समय वनस्पति खुद बोलती थी। आज भी बोलती है मगर हममे क्षमता नहीं कि हम समझ पाएं।

आपमें क्षमता हो, साहस हो पौरुष हो ऐसा मैं आपको बनाना चाहता हूं। आप बोले और सामने वाला थर्रा नही जाए तो फिर आप हुए ही क्या।

मैंने यह समझाया कि कृत्या क्या है और हमारे जीवन में क्यों आवश्यक है। कृत्या कोई लडाई झगडा नहीं है, कृत्या मतभेद नहीं है। कृत्या आपको प्रचंड पौरुष देने वाली एक जगदम्बा देवी है। कृत्या किसी को नष्ट कराने के लिए नहीं परंतु आपके पौरुष को ललकारने वाली जरूर है, हिम्मत, और हौंसला देने वाली जरूर है, वृद्धावस्था को मिटाने वाली जरूर है।

भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ८

परंतु आवश्यकता है कि पूर्ण क्षमता के साथ इस कृत्या को धारण किया जाए और पूर्ण पौरुष के साथ, जवानी के साथ बैठकर इसे सिद्ध किया जा सकता है, मरे हुए मुर्दों कि तरह बैठकर नहीं प्राप्त किया जा सकता। और अगर मेरे शिष्य मरे हुए बैठेंगे तो मेरा सब कुछ देना ही व्यर्थ है। मैं स्वयं अभी पच्चीस साल बूढा नहीं होना चाहता और यदि आपमें से कोई बूढा नहीं होना चाहता और अगर यदि आपमें से कोई मुझे बूढा कहता है तो उठकर मुझसे पंजा लडा ले, मालूम पड जाएगा। आपकी हड़्डी नहीं उतार कर दी तो कह देना। कराटे में किस प्रकार हड्डी को तोडा जाता है मुझे मालूम है। मेरे पास हथियार भी नहीं होगा तो भी मैं कर दूंगा। यह कोई बड़ी चीज नहीं है और न ही वृद्धावस्था जैसी कोई चीज है। वृद्धावस्था तो आएगी मगर जब आएगी तो देखा जाएगा। पूछ लेंगे मेरे पास आने कि क्या जरूरत थी, बहुत बैठे है शिष्य उनके पास चली जाओ। मेरे पास हलवा पुरी मिलेगी नहीं तुम्हे।

बुढ़ापे जैसी कोई अवस्था होती नहीं है, यह केवल एक मन का विचार है कि हम बूढ़े हो गए हैं और आप जीवन भर पौरुषवान और यौवनवान हो सकते हैं कृत्या सिद्धि के द्वारा। मगर सिद्धि तब प्राप्त होगी जब गुरू जो ज्ञान दे उसे आप क्षमता के साथ धारण करे। शुकदेव ने तो केवल एक बार सूना और उसे सिद्धि सफ़लता मिल गई।

जब पार्वती ने यह हठ कर ली कि भगवान् शिव उन्हें बताएं कि आदमी जिंदा कैसे रह सकता है वह मरे ही नहीं, क्या विद्या है जिसे संजीवनी विद्या कहते है तो महादेव बताना नहीं चाहते थे, वह गोपनीय रहस्य था। मगर पार्वती ने हठ किया तो उन्हें कहना पडा।

अमरनाथ के स्थान पर शिव ने बताना शुरू किया। भगवान शिव ने डमरू बजाया तो जितने वहां पशु पक्षी कीट पतंग थे वे सब भाग गाए। लेकिन एक तोते ने अंडा दिया था वह रह गया। बाक़ी बारह कोस तक कोई कीट पतंग भी नहीं रहा। वह अंडा फूट गया और बच्चा बाहर आ गया। भगवान शिव पार्वती को कथा सुनाते जा रहे थे और वह बच्चा सुनता जा रहा था। पार्वती को नींद आ गई और वह बच्चा हुंकार भरता रहा। कथा समाप्त हुई तो भगवान शिव ने देखा कि पार्वती तो सो गई। उन्होने सोचा कि फिर यह हुंकार कौन भर रहा था उन्होने पार्वती को उठाया और पुछा तुमने कहां तक सूना?

पार्वती ने कहा मैंने वहां तक सूना और मुझे फिर नींद आ गई।
तो भगवान् शिव ने कहा यह हुंकार कौन भर रहा था फिर। पार्वती ने कहा मुझे तो मालूम नहीं।

उन्होने देखा तो एक तोते का बच्चा बैठा था। महादेव ने अपना त्रिशूल फेंका। तो उस बच्चे ने कहा- आप मुझे मार नहीं सकते मैंने अमर विद्या सीख ली है आपसे। जो आपने कहा वह मैं समझ गया। मुझे कोई मंत्र उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं।

तो वह बच्चा उडा और वेद व्यास कि पत्नी अर्ध्य दे रही थी भगवान् सुर्य को, और उसके मूंह के माध्यम से वह अन्दर उतर गया और १२ साल तक अन्दर रहा। पहले माताएं २१ महिने पर संतान पैदा करती थी। २१ महीन उनके गर्भ में बालक रहता था। फिर ११ महिने तक रहने लगा। फिर बच्चा दस महिने रहने लगा। सत्यनारायण कि कथा में आता है कि दस महीने के बाद मे पुलस्त्य कि पत्नी ने सुंदर कन्या को जन्म दिया। फिर नौ महिने बाद जन्म होने लगा और अब आठ महिने बाद जन्म होने लग गए। तो ये सब अपरिपक्व मस्तिष्क वाले बालक पैदा हो रहे है। जो धारणा शक्ति थी महिलाओं को वह ख़त्म हो गई।

और १२ साल बाद इसने कहा कि तुम्हे तकलीफ हो रही है तो मैं निकल जाऊंगा, महादेव मेरा कुछ नहीं कर सकते। और महादेव बैठे थे दरवाजे के ऊपर कि निकलेगा तो मार दूंगा।

व्यास कि पत्नी ने कहा - मुझे पता ही नहीं लगा कि तुम अंदर हो। तुम तो हवा कि तरह हलके हो। तुम्हारी इच्छा हो तो बैठे रहो, नही इच्छा हो तो निकल जाओ।

वह शुकदेव ऋषि बने। शुक याने तोता। यह बात बताने का अर्थ है कि जो मैं बोलूं उसे धारण करने कि शक्ति होनी चाहिए आपमें। जैसे शुकदेव ने सुना शिव को और एक ही बार मे सारा ज्ञान आत्मसात कर लिया। अगर धारण कर लेंगे, समझ लेंगे तो जीवन मे बहुत थोडा सा मंत्र जप करना पडेगा। धारण करेंगे ही नहीं, मानस अलग होगा तो नहीं हो पाएगा।

जो कहूं वह करना ही है आपको। शास्त्रों ने कहा है- जैसे गुरू करे ऐसा आप मत करिए, जो गुरू कहे वह करिए। अब गुरू वहां जाकर चाय पीने लगे तो हम भी चाय पींगे, जो गुरू जी करेंगे हम भी करेंगे अब गुरुजी मंच पर बैठे है तो हम भी बैठेंगे। नहीं ऐसा नहीं करना है आपको। जो गुरू कहे वह करिए। आपको यह करना है तो करना है।

आप गुरू के बताए मार्ग चलेंगे, गतिशील होंगे, तो अवश्य आपको सफ़लता मिलेगी, गारंटी के साथ मिलेगी। और साधना आप पूर्ण धारण शक्ति के साथ करेंगे तो अवश्य ही पौरुषवान, हिम्मतवान, क्षमतावान बन सकते है। आप अपने जीवन मे उच्च से उच्च साधनाएं, मंत्र और तंत्र का ज्ञान गुरू से प्राप्त कर सके और प्राप्त ही नहीं करें, उसे धारण कर सकें, आत्मसात कर सके ऐसा मैं आपको ह्रदय से आर्शीवाद देता हूं, कल्यान कामना करता हूं।


- सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द

You can uplift of India - Part 3 भारत का उत्थान तुम कर सकते हो

भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ५

इस समय ज्ञान के माध्यम से, चेतना के माध्यम से फिर कोई व्यक्ति पैदा हो जो आपको वह ज्ञान दे, फिर आपको वह चेतना दे जिसके माध्यम से बम विस्फोट बंद हो सके। यह लड़ाई बंद हो सके, यह सब कुछ बंद हो सके। आप इतने लोग हैं पुरे संसार मे इस विध्वंस को इस विनाश को समाप्त कर सकते हैं। इतनी क्षमता आपमें है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि आप कायर नहीं है, आपने अपने आप को कायर मान लिया है। आप ने आपको बुजदिल मान लिया है, आपने आपको बूढा मान लिया है। आपने अपने को न्यून मान लिया है।

जो पुरुष कर सकता है वह स्त्री भी कर सकती है, तुमने भेद कर दिया। यह भेद मुग़लों के समय में आया स्त्री बिलकुल अलग, पुरुष बिलकुल अलग। स्त्री बाहर नहीं निकले, घर से बाहर निकलते ही गड़बड़। पुरुष घर के बाहर काम करे और औरत घूंगट निकाल कर अंदर बैठी रहे। क्योंकि ज्योंही चेहरा सुन्दर होता नहीं। मुसलमान उठाकर ले जाते थे। हिन्दुओं कि लड़कियों को। मुसलमानों ने बुरका प्रथा निकाली। उन्होने घूंगट प्रथा निकली बेचारों ने। यह मुग़लों का समय था, ६०० साल पहले यह घटना घटी।

अब कब तक वे घूंघट निकाले बैठी रहेंगी, कब तक वे ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाएंगी, कब तक वे घर मे चूल्हे चौके में ही फंसी रहेगी। जो पुरुष में क्षमता है वह स्त्री में भी क्षमता है। तुम्हारी नजर में भेद है, मगर साधना के क्षेत्र मे पुरुष-स्त्री समान है, बराबर है। कोई अंतर है ही नहीं, वेद मंत्र तो वशिष्ठ कि पत्नी ने भी सीखे, ब्रह्म ज्ञान सीखा, चेतना प्राप्त कि। कात्यायनी ने सीखा, मैत्रयी ने सीखा, कम से कम सैंकड़ों ऐसी विदुषियां बनीं। वे पत्नियां थीं और स्त्रियां होते हुए भी उन्होंने उच्च कोटी का ज्ञान प्राप्त किया।

क्या वे औरतें नहीं थीं, क्या उनके पुत्र पैदा नही हुए थे।

मगर वे ताकतवान थीं, क्षमतावान थीं। और पुरुष भी क्षमतावान थे। जो क्षमतावान थे वे जिंदा रहे। देवता तो ३३ करोड़ थे वहां। फिर हमे केवल २० नाम क्यों याद हैं? ऋषियों के अट्ठारह नाम ही क्यों याद है, बाकी ऋषि कहां चले गए? और उस समय ऋषि पैदा हुए तो अब ऋषि क्यों नहीं पैदा हो रहे? संतान तो पैदा, उन्होंने भी कि हमने भी कि। दो हाथ पांव उनके थे तो हमारे भी हैं। फिर हम ऋषि क्यों नहीं पैदा कर पाए। मैं आपको ताकतवान क्यों नहीं बना पाया?

गाजियाबाद में बम विस्फोट हुआ, आपने अखबार पढा और रख दिया। मन में कुछ हलचल भी नहीं हुई, तूफान भी पैदा नहीं हुआ। कितने लोग मर गए होंगे अकारण, मगर आपके अंदर कोई आग पैदा नहीं हुई, जलन नहीं पैदा हुई क्योंकि आपने अपने आप को कायर बुजदिल समझ लिया, आपने कहा -हम क्या करें, हमारी थोडे ही डयूटी है।

कृष्ण ने गीता में यही कहा था- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मान स्रुजाम्याम।

जब जब भी धर्म कि हानि होगी, अधर्म का अर्थ है जहां जहां भी व्यक्ति अपने धर्म को भूल जाएगा, जब भारत कि हानि होने लगेगी जब भारत के टुकडे होने कि स्थिति हो जायेगी, आर्यावर्त के टुकडे होने कि स्थिति हो जायेगी, तब तक एक व्यक्ति पैदा होगा जो अपने शिष्यों को ज्ञान और चेतना देगा। उनको एहेसास कराएगा कि तुम कायर नहीं हो, बूढ़े नहीं हो, तुममे ताक़त है, क्षमता है मगर वह ज्ञान नहीं है। कृत्या जब दक्ष को विध्वंस कर सकती है, लाखों ऋषियों को उंचा उठाकर धकेल सकती है, वीर वेताल जैसे व्यक्ति को पैदा कर सकती है, जो पुरे पहाड़ के पहाड़ उठाकर दूसरी जगह रख सकती है, जिस कृत्या के माध्यम से रावण पुरी लंका को सोने कि बना सकता है। आप तो पांच रुपये चांदी के इकट्ठे नहीं कर सकते। आपके पास कागज के टुकडे तो है, एलम्यूनियम के सिक्के तो है पर चांदी के सिक्के पच्चीस, पचास या सौ मुश्किल से होंगे। क्या क्षमता, क्या ताक़त है आपमें?
जब वह सोने कि लंका बना सका तो हम क्यों नहीं कर पा रहे हममे न्यूनता क्या है?

न्यूनता यह है आपमें अकर्मण्यता आ गयी है आपमें भावना आ गयी है कि हम कुछ नहीं कर सकते। यह हमारी डयूटी हमारा काम है ही नहीं और कृष्ण कह रहे हैं जब जब भी धर्म कि हानि होने लग जाए तो यह हमारी डयूटी है कि हम ताक़त के साथ खडे हो सके और खडे हो कर बता सके कि तुम्हारा विज्ञान फेल हो रहा है और हम ज्ञान मे माध्यम से शांति पैदा कर रहे हैं। यह हमारा धर्म है, हमारा कर्तव्य है।

ऐसा अधर्म बना तो कृष्ण पैदा हुए, ऐसा अधर्म बना तब बुद्ध पैदा हुए, ऐसा अत्याचार बढ़ा तब सुकरात पैदा हुआ, इसा मसीह पैदा हुआ। सब देशों मे पैदा हुए कोई भारत वर्ष में ही पैदा नहीं हुए, सभी देशों मे महान पुरुष पैदा हुए जिन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान कि चेतना दी।

बगलामुखी तो क बहुत छोटी चीज है, धुमावती तो बहुत छोटी चीज है। दस महाविद्या तो अपने आपमें कुछ हैं ही नहीं कृत्या के सामने। कृत्या तो यह बैठे-बैठे एकदम से शत्रुओं को नष्ट कर दे, समाप्त कर दे। शत्रु में ताक़त ही नहीं रहे, हिम्मत ही नहीं रहे। पंगु बना दे। वह आज के युग कि जरूरत है।

आज के युग मे नोट की भी जरूरत है बेटों की भी जरूरत है, रोटी की भी जरूरत है, पानी की भी जरूरत है, मगर इससे पहले जरूरी है कि शत्रु समाप्त हों। जो बेचारे कुछ कर नहीं रहे वे मर रहे हैं, कहीँ सदर बाजार में उन बेचारे दुकानदारों ने कुछ किया नहीं उनकी दुकानें उडा दी गई। आप कल्पना करिये उनके परिवार वालों कि क्या हालत हुई होगी। कोई दुःख दर्द हुआ, आंखों में आंसू आए हमारे? हमारे नहीं आएंगे तो किसके आएंगे?

हमारे अंदर दर्द पैदा होना चाहिए और इस सबको मिटाना होगा। विज्ञान इसको नहीं मिटा सकता, बंदूक की गोलियों को विज्ञान नहीं मिटा सकता देख लिया हमने। और प्रत्येक के पास यह ताक़त होनी चाहिऐ, एक-एक शिष्य के पास वह ताक़त होनी चाहिऐ। दो चार शिष्य तैयार होंगे उससे नहीं हों पायेगा। एक-एक व्यक्ति, एक-एक पुरुष, एक-एक स्त्री को यह ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है। वह उस साधना को सिद्ध करे की जिसके माध्यम से वह कृत्या पैदा सके। भगवान अगर विक्रमादित्य पैदा कर सकता है फिर हम भी कर सकते हैं।

सांप जैसा एक मामूली जीव अगर कायाकल्प कर सकता है, पुरी केचुली उतारकर वापस क्षमतावान बन सकता है तो आप ऐसा क्यों नहीं कर पाते? सांप पुरे दो सौ साल जिंदा रह सकता है। पच्चीस पचास साल मे मरता नहीं। आदमी मरता है सांप नहीं मरता। जब भी बुढ़ापा आता है ऐसा दिखता है की कमजोरी आ गई तो वह केचुली को उतार कर फ़ेंक देता है। वह ज्ञान एक था जो सिर्फ उसके पास रह गया।

पहले नाग योनि थी। जैसे वानर योनि थी गंधर्व योनि थी वैसे नाग भी एक योनि थी। बाद में हमने मान लिया कि सांप ही नाग योनि है। नाग तो अपने आपमें एक जाती थी जिनके पास यह विद्या थी। वह कायाकल्प की विधि जब भी आप कहेंगे कि मैं वृद्ध हों गया हूं तो मैं आपको सीखा दूंगा। मैं तो आपको वृद्ध होने ही नही देना चाहता हूं। सफेद बालों वाला वृद्ध नहीं होता, वृद्धता तो मन कि अवस्था है। अगर सफेदी से ही बुढ़ापा आता हिमालय आपसे पहले बुढा है। उस पर सफेद ही सफेद लगा हुआ है। फिर तो वह बूढा ही बूढा बैठा है वह है ही नहीं ताकतवान। आपके सिर पर सफेदी है तो उस पर तो ज्यादा सफेदी है। मगर नहीं वह ताकत के साथ खङा हुआ है, अडिग खडा हुआ है।

भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ६

आप वृद्ध नहीं है आप जवानों से ज्यादा ताकतवान हैं क्षमतावान है। आपमें हौसला और हिम्मत है और वह चीज वापस कृत्या के माध्यम से प्राप्त हो सकती है। कृत्या को भगवान शिव ने प्रकट किया, पैदा किया और उस क्षमता के माध्यम से जितना अधर्म, जितनी दुर्नीति थी, जितना घटियापन था वह समाप्त किया, विध्वंस कर दिया और वेद मंत्र उच्चारण कर रहे थे और एक औरत जल रही थी और वे स्वाहा बोल रहे थे यह क्या चीज थी?और ऐसे समय क्रोध नहीं आए क्षमता नहीं आए, व्यक्ति जूझे नहीं तो हम मर्द क्या बने। फिर तो हम एक बहुत घटिया श्रेणी के मनुष्य हुए। और अगर गुरू शिष्य को क्षमतावान नहीं बना सके तो फिर गुरू को यहां बैठने का अधिकार नहीं है, बेकार है सब।

मैंने आपको बताया कि आज के युग के लिए क्या कोई घिसापिटा प्रवचन नहीं दिया आपको। मैं बता सकता था कि बगलामुखी क्या होती है, धूमावती क्या होती है, जगदम्बा क्या होती है। मैंने कृत्या के बारे मे बताया जिसके दस हाथों मे दस चीजें हैं और दस मे एक भी फूल नहीं है। उसके तो हाथों मे कहीँ खडग है, कहीँ चक्र है, कहीँ कृपाण है, कहीँ त्रिशूल है। अपने आपमें वह अकेली औरत ने कर दिया, इसलिये आज भी उसे पूजा जाता है। आपको भी पूजा जाएगा, यदि आपमें वह साधना होगी तो पूजा जायेगा। नहीं तो आप भी मर कर समाप्त हो जायेंगे कोई पूछेगा नहीं आपको, याद भी नहीं करेगा आपको।

इसलिये आपमें वह क्षमता आणि चाहिऐ। इनके दस हाथ हैं इसका मतलब कि, दस चीजें चलाने कि क्षमता है। अगर आप सोचते हैं कि रावण के बीस हाथ और दस सिर थे यह कपोल कल्पना है। रावण के न कोई दस सिर थे न बीस भुजाएं थी। यह एक कल्पना है, इसका अर्थ यह है कि उसके पास जितनी बीस भुजाओं मे ताक़त होती है उतनी ताक़त थी, दस सिरों मे जीतनी बुद्धि होनी चाहिए उतनी बुद्धि थे। उतनी साधनाएं थीं। उसके पास उतना ज्ञान था उसके पास चांदी के सौ पचास सिक्के नहीं पुरे शहर के शहर को सोने का बना दिया और उस समय किया जब दशरथ जैसा राजा भी कुछ कर नहीं पा रहा था। वही लडाई, वही झगड़े वही बेटों को बाहर निकाल देना वही मर जाना। और बेटा अपने पिता का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाया। वही एक स्त्री सीता को उठा कर ले जाना। चीजें तो वहीँ कि वहीँ थीं, मगर एक विद्या उनके पास थी।

और कृत्या प्रयोग, कृत्या साधना को आज तक किसी ने छुआ तक नहीं, इसलिये कि उनके पास ज्ञान नहीं था। अगर ज्ञान ही नहीं होगा तो कोई सीखेगा कहां से, कोई बताएगा कहां से? अगर मुझे उर्दू नहीं आती तो मैं उर्दू बोलूंगा कहां से। मुझे मराठी नहीं आती तो मराठी बोलूंगा कहां से।

अगर मुझे ज्ञान है कि कृत्या सिद्ध कैसे हो सकती है तो मैं आपको कात्यायनी और ये छोटी-छोटी साधनाएं क्यों दूंगा? दूंगा तो एक बहुत बड़ी साधना दूंगा कि आप बैठे-बैठे शत्रुता को समाप्त कर सके, और पुरे देश को एहसास करा सके कि एक गुरू के कोई शिष्य है। ऐसा शिष्या मैं आपको बनाना चाहता हूं।

शायद मेरी बात आपको तीखी लगे, शायद मेरी बात क्रोधमय हो गई है। मगर क्रोध नहीं करता है उससे घटिया कोई आदमी नहीं होता। सबसे मरा हुआ जीव वह होता है जिसे क्रोध आता ही नहीं। और हमारा देश बरबाद इसलिए हो गया है कि अहिंसा परमो धर्मः कोई थप्पड़ मारे तो दो चार थप्पड़ और खा लीजिए। मैं कहता हूं कि थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठे उससे पहले चालीस थप्पड़ मार दीजिए। मैं आपको यह कह रहा हूं काहे को हम थप्पड़ खाएं।

जो पहले लात मारता, है वह जीतता है, यह ध्यान रखिए। कोई लात लगा देगा तो दुसरा गिर जाएगा, दुसरी लात लगेगी तो वह उठेगा नहीं। उसे दो चार थप्पड़ और पड़ेंगे तो वह कहेगा गलती हो गई। और तुम हाथ जोडो तो तुम्हारी हार निश्चित है। गांधीजी ने कह दिया अहिंसा परमो धर्मः उस जमाने मे जरूरी होगा, यह उनकी धारणा थी, विचार था। उस जमाने मे बुद्ध ने जो कहा सत्य कहा होगा। मगर वह उस जमाने में था आज वह चीज नहीं है। उस समय बम विस्फोट नहीं हो रहे थे। उस समय गोलियां नहीं चल रही थी, ए.के ४७ राइफल उस समय नहीं थी।

और अगर आप कहते हैं कि हम क्यों करें?

तो मैं कह रहा हूं-कौन करेगा फिर अगर मैं आपको ज्ञान नहीं दे पाउंगा, आप नहीं कर पाएंगे, आप इस देश को, भारत वर्ष को आर्यावर्त को तैयार नहीं कर पाएंगे। लोग जीवित जाग्रत नहीं हो पाएंगे, और लोग इस पर आक्रमण करते रहेंगे और आप चुपचाप देखते रहेंगे तो कौन आगे आएगा, कहां से आएगा? फिर शिष्य बनने का मनुष्य बनने का क्या धर्म रह जाएगा?

यह धर्म हमारा है क्योंकि हम जीवन मे अभावग्रस्त नहीं होना चाहते, हम दरिद्री नहीं रहना चाहते, हम जीवन में तकलीफ नहीं देखना चाहते, हम दुःखी नहीं होना चाहते, हम घर में लडाई झगड़ा नहीं चाहते हम जीवन में कायर बुजदिल नहीं होना चाहते, हम बुढ़ापा नहीं चाहते।

हम यह सब नहीं चाहते मगर ऐसा तब हो पाएगा जब हम ऐसी साधना सिद्ध कर सकेंगे कि आपका विकराल रुप देख कर मौत भी आपके द्वार के बाहर खड़ी रहे, अंदर आने कि हिम्मत नही कर सके। तब वह चीज हो पाएगी। मौत आपके पास आकर बैठे जाए तो मर्द ही क्या हुए आप?

भगवान शिव ने एक उच्च कोटी कि साधना के रुप में कृत्या प्रकट कि। उस कृत्या को सिद्ध किया विक्रमादित्य ने। बीच में कर ही नहीं पाए कोई। या तो ज्ञान लुप्त हो गया, या ऋषि मुनी समाप्त हो गाए। कुछ भगवान शिव ने समाप्त कर दिया, कुछ मर गए, कुछ को ज्ञान रहा नहीं और कुछ ऐसे ऋषि हो गाए जो अपने शिष्यों को ज्ञान दे नहीं पाए। पहले मुख से देते थे ज्ञान, किताबों मे होता ही नहीं था। आज मैंने आठ किताबें तैयार कि तो आप दो, पाच किताब लेंगे कि चलो कम से कम मेरे पास यह ज्ञान कि थाली रह पाएगी।

उनके पास किताबें थी नहीं। और उस समय ऐसे गुरू भी थे जो मरते दम तक कहते रहते थे कि बिल्कुल अंत मे सिखाउंगा यह चीज। अरे महाराज सीखा दो, न जाने आप कब समाप्त हो जाओगे।

वे कहते नहीं बच्चे! अंत समय मे सिखाउंगा।

उनको लालच यह कि सेवा कौन करेगा, सीखा तो चला जाएगा। और शिष्य सोचता यह कुछ सिखाता कुछ नहीं है रोज लंगोट धुलवाता है पर कुछ देता नहीं है। अब दोनों मे आपस मे द्वंद चल रहा है। वह उसको बोल नहीं पा रहा है, और मरते समय कहता है- राम राम जपना बेटा और गर्दन टेढ़ी।

You can uplift of India - Part 2, भारत का उत्थान तुम कर सकते हो



भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ३

अब उन्होने जिंदगी भर पाप किया तो स्वर्गवासी हुए या नरकवासी हुए हम कह नही सकते। हम अपने आपमें नहीं कह सकते कि राम राज्य कैसा था, द्वापर युग कैसा था? हां, कृष्ण आपने आप मे सुर्य थे, वह युग कैसा था यह आपको बता रहा हूँ। युग आज भी वैसा ही है। युग नहीं बदल सकता, आदमी बदल सकता है। आदमी ज्ञान ले सकता है।

कृष्ण ने अकेले ने सब करके दिखा दिया। आप कल्पना करें एक तरफ कौरवों कि अक्षौहिणी सेना खडी है, एक तरफ पांडव खडे है बीच मे कृष्ण खडे है और उस अकेले व्यक्ति ने निश्चय कर लिया कि मैं कोई शत्र नहीं उठाऊंगा और उन पांच लोगों के सहारे पर कुरुक्षेत्र कि लड़ाई जित लिया पुरे महाभारत के युद्घ को जित लिया।

और आपके पास एक गुरू बैठा है और इस पुरे संसार को आप जित नहीं सकते तो फिर आप कमजोर हैं, मैं कमजोर नहीं हूं, फिर आपमें न्यूनता है मुझमें न्यूनता नही है। यह मेरी बात थोड़ी कड़वी हो सकती है।

मै भी अपने पिता जी कि प्रशंसा करता रहता हूं अपने दादाजी कि प्रशंसा करता रहता हूं कि बहुत महान थे, हम ऋषियों के परम्परा कि प्रशंसा ही करेंगे क्योंकि जो मर गए उनकी प्रशंसा ही कि जति है, उनके अवगुणों को देखा नही जाता। मर गए तो मर गए बस, सतयुग चला गया, द्वापर चला गया। मगर यह षड्यंत्र, यह कुचक्र, यह धूर्त यह मक्कारी, यह चल, यह झूठ, यह कपट, यह व्यभिचार। यह असत्य उस जमाने भी उतने ही थे जितने कि आज हैं। मगर उस जमाने में भी साधनाओं में सिद्धि होती थी क्योंकि उनके पास गुरू थे। गुरुओं को सम्मान था, राजा के पुत्र होते हुए भी दशरथ ने अपने पुत्रों को विश्वामित्र के पास भेज दिया कि तुम जाओ और धनुर्विद्या सीखो, तुम्हे वही जाना पड़ेगा। कहां ठेठ मथुरा, उत्तर प्रदेश में और कहां ठेठ मध्य प्रदेश वहां कृष्ण को भेजा क्योंकि उच्च कोटी का ब्राह्मण संदिपन वहां था। बीच मे क्या कोई उच्च कोटी का साधू सन्यासी था ही नही? क्यों नही उनके पास भेजा?

उन्होने जाना कि वह व्यक्ति अपने आपमें अद्वितीय ज्ञान युक्त है, उसके पास भेजना ही पड़ेगा। वो ट्यूशन पर गुरू को रख सकते थे। विश्वामित्र राजा कि प्रजा है, दशरथ कह सकते थे कि आपको चार किलो धान ज्यादा देंगे आप यहाँ आकर पढाइए। ज्ञान ऐसे प्राप्त नहीं हो सकता। ज्ञान के लिए फिर आपको शिष्य बनना पड़ेगा, आपको गुरू के पास पहुंचना पडेगा, आपको गुरू के सामने याचना करनी पडेगी और हम साधना में सिद्धि इसलिये नहीं प्राप्त कर रहे हैं, क्योंकि हम कमजोर महसूस करने लग गए हैं, कमजोरी आपके मन मे, जीवन में आ गयी है, कमजोर आप हैं नहीं।

जब दक्ष ने महादेव को यज्ञ में नहीं बुलाया तो .... महादेव तो अपने आप मे बहुत भोले हैं।महोक्ष खटवांग परशु फलिण चेती यः ......

श्मशान मे बैठें रहते हैं और कही कोई कमाने कि चिन्ता नही है, ना नौकरी करते है, न व्यापार करते हैं, कुछ करते ही नहीं ड्यूटी पर भी नही जाते, कपडे कि दुकान खोलते ही नही बस सांप लिपटाए बैठे हैं मस्ती के साथ में और उसके बाद भी जगदम्बा, जो लक्ष्मी का अवतार है, उनके घर में हैं और धन-धान्य कि कमी है ही नहीं। निश्चिन्तता है। निश्चिंत है इसलिये देवता नहीं कहलाए वो, महादेव कहलाए।

उन्होंने साधनाएं कि। महादेव ने भी कि, ब्रह्म ने भी कि, विष्णु ने भी कि। इंद्र ने भी कि। बिना साधनाओं के जीवन में सफ़लता प्राप्त नहीं हो सकती। मगर साधना मे सफ़लता तब प्राप्त हो सकती है जब आपकी कमजोरी, आपकी दुर्बलता, आपका भय, आपकी चिंता, आपका तनाव दूर हो और तनाव मेरे कहने से दूर नहीं हो पाएगा। मैं यहाँ से बोल कर चले जाऊं तो उससे तनाव नहीं मिट सकता। मैं कहूं कि अब तकलीफ नहीं आये तो उससे तकलीफ नहीं मिट सकती।

मैं बता रहां हूं कि वास्तविकता यह है। आप ज्योंही जायेंगे घर में तो तनाव तकलीफ, बाधाएं, कठिनाईयां वे ज्यों कि त्यों आपके सामने खडी होंगी। उससे छुटकारा पाएंगे तो साधना में बैठ पाएंगे। तो गुरू कि ड्यूटी है, गुरू का धर्म है कि उन साधनाओं को प्राप्त करने के लिए शिष्यों को निर्भय बना दिया जाए, जो कमजोर उनके जीवन के क्षण है जो मन मे कमजोरी है या दुर्बलता है उसे दूर कर दिया जाए। और क्षमता के साथ ही उन दुर्बलताओं को दूर किया जा सकता है, उन पर प्रहार करके ही विजय प्राप्त कि जा सकती है री रियाकर या प्रार्थना करके नहीं। और हमारे तो आराध्य महादेव हैं जो प्रखर व्यक्तित्व के स्वामी हैं जो प्रहार करने से विध्वंस करने से कभी हिचकते ही नहीं।

विध्वंसक बन करके, क्रोध मे उन्मत्त हो करके महादेव दक्ष के यज्ञ में गए, अपने श्वसुर के यज्ञ मे गए जहां ब्राह्मण, योगी, यति, सन्यासी आहुतियां दे रहे थे, वेद, मंत्र बोल रहे थे। उन्होंने एक लात मारी और यज्ञ को विध्वंस कर दिया, वेदी को तोड़ दिया अग्नि को बुझा दिया।

क्योंकि उससे पहले सती ने सोचा कि सब देवताओं यज्ञ में बुलाया गया, मेरे पति को नहीं बुलाया गया, इससे बड़ा क्या अपमान हो सकता है तो वह खुद यज्ञ कुण्ड में कूद गयी। आधी जली तो बाहर निकाला गया।

और भगवान् शिव .....

भगवान तो वह होता है जिसमे ज्ञान हो। भगवान अपने, आपमें कोई अजूबा नहीं है कि जो नई चीज पैदा हुआ वह भगवान है। भगवान तो आप सब हैं। यह शंकराचार्य स्पष्ट कर चुके हैं, और प्रत्येक मनुष्य राक्षस है, हम क्या हैं यह आपको चिन्तन करना है।


भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ४

और भगवान शिव सती कि अधजली लाश को अपने कंधे पर ले कर क्रोध कि अवस्था में पुरे भारत वर्ष में घूमे क्रोध शांत नहीं हुआ। इतना बड़ा अपमान कि मेरी पत्नी जल गई और मैं कुछ नही कर पाया और क्रोध की चरम सीमा और उस चरम सीमा में दक्ष जैसे वरदान प्राप्त और तांत्रिक व्यक्ति का भी वध किया। ऐसे व्यक्ति का वध किया जाए तो कैसे किया जाए। तो उन्होने अपनी जटा में से बहुत उत्तेजना युक्त मंत्र के मध्यम से एक रचना कि जो कि पूर्ण जगदम्बा से भी सौ गुना ज्यादा क्षमतावान थी, जो साकार प्रतिमा थी जो कि सारी परेशानियों बाधाओं, अड़चन कठिनाइयों और शत्रुओं पर एकदम से प्रहार कर सके, समाप्त कर सके। वह चाहे शत्रु हो, चाहे बाधा हो, चाहे मुकदमेबाजी हो, चाहे असफलताएं हो, चाहे घर मे कलह हो - ये सब बाधाएं है। पैसे नही आ रहे है, व्यापार नहीं हो रहा हैं , ये सब बाधाएं है। ये समस्याएं हैं, परेशानीयां हैं अड़चनें हैं।

इनको समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक रचना की जो की जगदम्बा से भी उंची, क्षमतावान थी। मुझसे भी उंचे गुरू हैं, मुझसे भू उंचे विद्वान होंगे। मैं यह कहकर जगदम्बा के प्रति न्यूनता नहीं दिखा रहा हूं। मगर भगवान शिव ने उस जटा में से ....

और जटा कैसी? भागीरथ ने जब गंगा का प्रवाह किया और उसे भगवान शिव ने अपनी जटा में लिया तो डेढ़ साल तक उन जटाओं मे गंगा घूमती रही, उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं मिला। इतनी घनी जटा! भागीरथ ने प्रणाम किया किया- महाराज! अगर गंगा नदी आपकी जटाओं मे घूमती रही तो रास्ता मिलेगा ही नहीं उसको। इतनी घनीभूत जटा है। कृपा करके गंगा को धरती पर उतारे तो उन देवताओं और लोगों का कल्याण होगा।

और मंत्रों के माध्यम से उस देव गंगा को पृथ्वी पर उतारा। ऐसे विकराल, विध्वंसक महादेव! हमने उनका सौम्य रुप देखा है की आंखें बंद किए श्मशान में बैठे हुए हैं, सांप की मालाएं पहने हुए हैं, ऊपर से गंगा प्रवाहित हो रही है और ध्यानस्थ बैठे हैं।

आपने वह रुप देखा है क्रोधमय रुप नहीं देखा, ज्वालामय रुप नहीं देखा, आखों से बरसते अंगारे नहीं देखे। देखे इसलिये नहीं की किसी ने दिखाया नहीं आपको। महादेव इसलिये नहीं बने की शांत बैठे हैं..... आप हाइएस्ट पोस्ट पर पहुंचेंगे तो हाथ जोड़-जोड़ कर नहीं पहुंचेंगे, ज्ञान को गिडगिडाते हुए नही प्राप्त कर पाएंगे। आपमें ताक़त होगी, क्षमता होगी तो ऐसा कर पाएंगे।

और महादेव ने उस जटा से जिसको निकला उसे कृत्या कहते हैं। उस कृत्या ने दक्ष का सिर काट दिया वह तंत्र का उच्च कोटि का विद्वान था, दक्ष के समान कोई विद्वान नहीं था उसे सभी तंत्र का ज्ञान था जिसको यह वरदान था की तुम मर ही नहीं सकते। उस कृत्या ने एक क्षण में सिर काटकर बकरे का सिर लगाया दिया, उसके ऊपर और सारे ऋषि मुनियों को उखाड़-उखाड़ कर फ़ेंक दिया उस कृत्या ने। एक भी ऋषि योग्य नहीं था। सती जल रही थी और वे चुपचाप बैठ-बैठे देखते रहे।

भगवान् शिव उस क्रोध कि अवस्था में सती के शरीर को लेकर घूमते रहे। क्रोध में आदमी कुछ भी कर सकता है, और क्रोध होना ही चाहिऐ, क्रोध नहीं है तो मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। ऐसा नहीं हो कि शत्रु हमारे सामने खडे हो और हम गिडगिडाएं कि भईया तू मत कर ऐसा। ऐसा हो ही नहीं सकता। वह हाथ ऊपर उंचा करे उससे पहले सात झापड़ उसे पड़ जानी चाहिए। बाद में देखा जाएगा।

मैं तुम्हे गिडगीडाने वाला नहीं बनाना चाहता, मैं बना ही नहीं सकता। बन भी नहीं सकता, जब मैं खुद बना ही नहीं तो तुम्हे कैसे बनाउंगा। पहले हाथ उठाऊंगा नहीं, और हाथ उसका उठा और मेरे गाल तक पहुंचे उससे पहले छः थप्पड़ मार कर निचे गिरा दूंगा, आज भी इतनी ताक़त क्षमता रखता हूँ, आज से सौ साल बाद भी इतनी ही ताक़त, क्षमता रखूंगा आपके सामने।

उस कृत्या ने समस्त ऋषि मुनियों को लात मार मारकर फ़ेंक दिया। आज हम उनको ऋषि कहते हैं, उस समय तो वे मनुष्य थे आप जैसे। आप भी ऋषि हैं मगर आप गलत काम करेंगे त लात मारकर फेकेंगे ही। भगवान् शिव ने कहा - यह तुमने क्या किया? यह यज्ञ कर रहे थे तुम एक औरत उसमें जल गई और आप बैठे-बैठे रह गए? तुममे दक्ष को समझाने कि क्षमता नहीं रह गई।

और भगवान शिव उस क्रोध कि अवस्था मे उस सती के शव को कंधे पर रख कर जहां-जहां पुरे भारत वर्ष मे घूमे, जहां-जहां गल गल कर जो अंग गिरा वह शक्तिपीठ कहलाए। और ५२ स्थानों पर वह शरीर गिरा, हाथ कही गिरा, कहीँ सिर गिरा, कहीँ पांव गिरा, कहीँ और कोई आंग गिरा। जीतनी चीजें गिरी ५२ जगहों पर गिरी और वे शक्ति पीठ कहलाए।

आज भारतवर्ष में कहते हैं शक्ति के जो अंग गिरे, वहां जो पीठ बनी, चेतना बनी, मंत्र बने, स्थान बने वे शक्ति पीठ कहलाए। मैं बात यह कह रहा था कि इतने ऋषियों, मुनियों को इतने उच्चकोटि के ज्ञान को, इतने तंत्र के विद्वानों को जो अपनी ठोकरों से मार दे और विध्वंस कर दे। सब कुछ वह क्या चीज थी - वह कृत्या थी और कृत्या से वैताल पैदा हुआ। वैताल जिसने विक्रमादित्य के काल में एक अदभूत, अनिर्वचनीय कथन किया कि कोई भी काम जिंदगी में असफ़ल नहीं हो सकता, संभव ही नहीं है। बम तो एक बहूत मामूली चीज है बम का प्रहार हमारा कुछ नहीं बिगाड सकता। हमें पहले ही मालूम पड़ जायेगा कि यह आदमी बम फेंकने वाला है, हम पहले ही उसका संहार कर देंगे, समाप्त कर देंगे, अगर कृत्या हमारे पास सिद्ध होगी तो।

और हमारे पास इंटैलीजैंस है, हमारे पास पुलिस है हमारे पास राँ है, हमारे पास और भी है, फिर भी बम विस्फोट होते जा रहे हैं। लाखों लोग मरते जा रहे है, बेकसूर लोग मरते जा रहे हैं। जिन्होंने कोई नुकसान किया ही नहीं बेचारों ने। आप सोचिए कि घर मे एक मृत्यु हो जाए तो घर कि क्या हालत होती है। एक जवान बेटा मर जाए तो पुरा जीवन दुःखदायी हो जाता है। यहां तो घर के पांच-पांच लोग मर जाते है और कानों पर जूं नहीं रेंगती। भारत सरकार कोशिश कर रही है इसमे कोई दो राय नहीं है, पुरा प्रयत्न कर रही है इसमे भी दो राय नहीं है मगर प्रहारक इतने बन गए है कि इस समय विज्ञान कुछ नहीं कर पा रहा है।

You can uplift of India - Part 1,2, भारत का उत्थान तुम कर सकते हो


भारत का उत्थान तुम कर सकते हो - भाग १/ 
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
मानव जीवन कि विक्षमताओं के बीच अपने आप को प्रतिष्टित करने के लिए अवं उच्चता प्राप्त करने हेतु जीवन में वह तेज और क्रोध होना आवश्यक हैं जो भीतर से शक्ति को जाग्रत कर सके। प्रस्तुत प्रवचन में सदगुरुदेव ने शिष्योंको को एक ललकार भावना देते हुए उन्हें अपने व्यक्तित्व से पहचान कराने का उत्साह जगाया है, जिससे शिष्य कुछ बन सके। गुरुदेव कि ओजस्वीवाणी में यह महान प्रवचन -

आज से हजारों वर्ष पहले सिंधु नदी के किनारे पहली बार आर्यों ने आंख खोली, हमारी पूर्वजों ने पहली बार अनुभव किया कि ज्ञान भी कुछ चीज़ होती है, पहली बार उन्होने एहसास किया कि जीवन मे कुछ उद्देश्य भी होता है, कुछ लक्ष्य भी होता है, तब उन्होने सबसे पहले गुरू मंत्र रचा, गुरू की ऋचाओँ को आवाहन किया। और भी देवताओं का कर सकते थे, भगवान रुद्र का कर सकते थे, विष्णु का कर सकते थे, उन ऋंषियों के सामने ब्रह्मा थे, इंद्र थे, वरुण थे, यम थे, कुबेर थे, सैकड़ों थे।

मगर सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना कि या संसार मे सबसे पहले जिस मंत्र कि रचना हुई, वह गुरू मंत्र था। गुरू शरीर नही होता, अगर आप मेरे शरीर को गुरू मानते है तो गलत है आप, यदि मुझ में ज्ञान ही नही है तो फिर मैं आपका गुरू हूं ही नही।

यदि आप एक-एक पैसा खर्च करते है तो मेरे ह्रदय मे भी उस एक-एक पैसे कि वैल्यू है। मै उतने ही ढंग से आपको वह चीज़ देना चाहता हूं और आप उतनी ही पूर्णता के साथ उसे प्राप्त करें तब मेरा कोई अर्थ है। अन्यथा ऐसा लगता है कि आप मुझे दे रहे हैं और मैं भी फोर्मलिटी निभा रहा हूं ऐसा मै नही करना चाहता।

फोर्मलिटी बहुत हो चुकी। फूलों के हार बहुत पहन चूका, आपकी जय जयकार बहुत सुन चूका, टाँगे, बग्गी गाडी मे बहुत चढ़ चूका, हवाई जहाज मे यात्रा कर चूका, विदेश मे यात्रा कर चूका, यह सब बहुत हो चूका। बेटे, पोते, पोतियां, गृहस्थ और संन्यास जीवन सब देख चूका। संन्यास क्या होता है वह भी उच्च कोटी के साथ देख चूका। अब बस एक बात रह गई है कि जितने शिष्य है उन सबको अपने आप में सुर्य बनायें अद्वितीय बनायें। अब केवल इतनी इच्छा रह गई है। और कुछ इच्छा ही नही रह गई है।

सम्राट होते होंगे, मैंने देखा नही सम्राट कैसे होते है, मगर सम्राटों के सिर भी गुरू के चरणों मे झुकते है, उनके मुकुट भी गुरू के चरणों मे पड़ते हैं यदि वह सही अर्थों मे गुरू है, ज्ञान, चेतना युक्त है।

हम अपने आप मे इस शरीर को उतना उत्थानयुक्त बना दें, उतना चेतनायुक्त बना दें, उस मूल उत्स को जान लें कि हम क्या है? और जब हमारा अपना पिछला जीवन देखना शुरू कर देंगे तो आपको इतने रहस्य स्पष्ट होंगे कि आपको आर्श्चय होगा कि क्यों मेरे जीवन मैं ऐसा था, क्यां मैं इतनी ऊंची साधनाएं कर चूका था, फिर मैं इतना कैसे गिर गया? क्या हो गया मेरे साथ?

यह कैसा अटैचमेंट था गुरू के साथ? इतना अटैचमेंट था कि मैं गुरू के बिना एक मिनट भी नही रह सकता था, अब मैं दो-दो महिने कैसे निकाल देता हूँ। जब आपको पिछला जीवन देखने कि क्रिया प्रारंभ होने लगेगी, तब आप एक क्षण भी अलग नही रह पाएंगे, तब एहेसास होगा कि हम बहुत बड़ा अवसर खो रहे है, बहुत बडे समय से वंचित हो रहे हैं, क्षण एक-एक करके बीतते जा रहे है और जो क्षण बीतते जा रहे हैं वें क्षण लॉट कर नहीं आ सकते। जो समय बित गया, बित गया। बित गया तो समय निकल गया, इस शरीर में भी एक सलवट और बढ गई, कल एक और सलवट बढ जाएगी।

अगर सर्प ऐसा कर सकता है, कायाकल्प कर सकता है, अपनी पुरी केंचुली को, झुर्रीदार त्वचा को, अपने बुढ़ापे को निकाल कर एक तरफ रख देता है, पुरा नवीन ताजगी युक्त वापस शारीर उसका बन सकता है तो हमारा क्यों नही बन सकता ?

इसलिये नही बन सकता क्योंकि केवल उस वासुकी के पास यह ज्ञान रह गया है और हमने उसे समझा नही, हमने बस उसको विषैला समझ लिया, जहरीला समझ लिया। आपने उसके ज्ञान को नही समझा। आपने मुझे फूलों के हार पहना दिए, जय जय कार कर दिया मगर आप मेरा ज्ञान नही समझ पाये। जब ज्ञान नही ग्रहण कर पाएंगे तो फिर एक बहुत बड़ा अभाव आपके जीवन मे भी रहेगा। मेरे जीवन मे भी रहेगा कि यह ज्ञान, यह चेतना आप प्राप्त नहीं कर पाए। यह ज्ञान, यह चेतना यां तो पुस्तकों मे मिल पाएगी या प्रामाणिक होगी। और मैं ऐसा कोई ग्रंथ लिखना चाहता भी नहीं कि मेरे मरने के पांच सौ साल बाद भी कोई कहे कि इसमे गलती है। पांच सौ साल बाद भी लोग कहे कि यह तो बिलकुल नवीन और प्रामाणिक है एक चेतना युक्त है। वैसा ग्रंथ मैं आपको बनाना चाहता हूँ।

आप आपने आप को कायर या बुजदिल समझते हैं, आप आपने बारे में समझते हैं कि आप कुछ कर नही सकते। मैं प्रवचन बोल कर भी जाऊंगा तो मुझे मालूम है कि आप सब कुछ सुनने के बाद भी वही खडे रह जायेंगे कि मैं क्या कर सकता हूँ, इस उम्र मे होगा भी क्या, अब करने से लाभ भी क्या, अब मैं तो बुढा हो गया मेरा तो शरीर कमजोर है, अब मैं कुछ नहीं कर सकता।

यह आपके जीवन कि हीन भावना बोल रही है आप नहीं बोल रहे हैं। आपके ऊपर समाज ने जो प्रहार किए, वे बोल रहे हैं, आप नहीं बोल रहे हैं। आपके जीवन में जो दुःख है उन दुखों ने आपको इतना बोझिल बना दिया है वह बोल रहे हैं। वृध्दावस्था आ ही नहीं सकती, संभव नही हैं। बुढ़ापा तो एक शब्द है, नाम है। हमने एक नाम लिया कि बुढ़ापा है। बुढ़ापा शब्द क्या चीज है?

भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग २

मैंने तो नब्बे साल के लोगों को भी मुस्कुराते हुए, खिलखिलाते और ज्ञान प्राप्त करते हुए देखा है। जब इंग्लैंड पर जर्मनी ने बमबारी की और सारा ध्वस्त कर दिया तो ८२ साल के चर्चिल ने पुरे इंग्लैंड को संभाला, प्रधान मंत्री बन कर के वापस अपने देश को खड़ा कर दिया, ताकतवान बनाकर के। ७२ साल कि उम्र मे! अब आप पता नही ८२ साल की उम्र ले भी पाएंगे या नहीं ले पाएंगे।

तो क्या गुरुजी हम ८२ साल की उम्र ले ही नहीं पाएंगे? क्या चर्चिल ही ले पायेगा?

आप नब्बे साल नही ८२ सौ साल भी ले सकते, आप ले सकते हैं यदि आपके पास वह विद्या हो। यदि आपके पास ज्ञान हो कि मैं कायाकल्प कैसे करूं तो वह चीज आपको प्राप्त हो सकेगी। आपके पास एक भी विद्या रह पायेगी तो आने वाली हजारों पीढियां आपसे शिक्षा ग्रहन कर पाएंगी। आप सही अर्थों मे ग्रंथ बन पाएंगे, सही अर्थों मे सबसे ज्यादा प्रिय मुझे बन पाएंगे। तब मैं गर्व करुंगा कि आप मेरे शिष्य हैं।

मैं तो आपको चैलेंज देता हूँ, मैं दो टुक साफ कहता हूँ। मुझसे भी बडे विद्वान होंगे, मगर आप बाजार से जाकर कोई ग्रंथ लाइए। आप लाइए और मैं बीस किताबें और रख देता हूँ देखिए। इन सबमें चीजें ज्यों कि त्यों हैं, कुछ लाईने, इधर कर दी और कुछ लाईने उधर कर दी है और पोथी भरकर आपके सामने रख दी है। वही चीज हरेक में है चाहे मंत्र महोदधि लाईए, चाहे मन्त्र महार्णव लाईए, चाहे मंत्र सिंधु लाईए। मंत्र चिन्तन लाईये, मंत्र धटक लाईए। वे ग्रंथ तो मंत्रों पर है पर सबमे एक ही चीज हैं। एक ही बात को रिपीट कर दिया है, उनके छः संस्कारण बना दिए हैं।

क्या नवीनता है उनमे? क्या किसी ने कहा है कि सर्प के पास ज्ञान है हमारे पास क्यों नहीं? किसी ने इस पर चिंतन किया ?

और आप कह रहे हैं कि आप बुजदिल हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप किस कोने से बुजदिल हैं जिससे कि मैं उस कोने को निकल दूं कि किस कोने से हम कायर हैं, इस कोने से कमजोर हैं तो उस हिस्से को काट दूं और वापिस नए सिरे से आपको तयार कर दूं। आप हैं नहीं कमजोर, आपने मान लिया है। और मानना इसलिये पड़ा है क्योंकि आपके जीवन मे वास्तव मे बाधाएं, अड़चने, कठिनाईयां आई हैं। मगर ये समस्याएं केवल आप पर ही नहीं आई।

ऐसा नहीं है कि कलियुग में ही साधनायें नही हो पा रही हैं। गुरू जीं कलियुग आ गया और कलियुग में साधनायें नही हो पातीं। और सैकड़ों लोग ऐसा कहते हैं कि अब कैसे हो पायेगी चारों तरफ आप देख रहे हैं। मै भी चारों तरफ देख रहा हूँ कि कभी बम विस्फोट हो रहे हैं कभी पंजाब में हो रहे हैं कभी दिल्ली में हो रहे हैं, पुरे भारत वर्ष में हो रहे हैं। यह क्या हो रह हैं, क्यों हो रहा हैं?

इसलिये हो रह हैं कि हम कमजोर हैं। हमने अख़बार पढा, देखा और फिर अखबार को छोड दिया हममें क्षमता नहीं है वह कि हम उसको रोक सकें, और अगर विज्ञान रोक पाता तो फिर ये इतने लड़ाई झगड़े होते ही नहीं, इतने बम नहीं फटते। इसका मतलब इन समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहा है। अगर कर पाता तो रोज अखबार में ये समस्याएं नहीं आ पाती।

उस चीज को आप लोगों में से अगर कोई एक बार समझ ले तो वह ज्ञान अगले तीन सौ, साल तक रह सकेगा। उस कायाकल्प को करें तो जैसे नविन सर्प निकलता, है तो आप निकल सकते हैं। वह तब हो पायेगा जब बुजदिली आप समाप्त कर देंगे, जब आप ताकतवान बनेंगे, क्षमतावान बनेंगे।

कुचक्र आज ही नहीं रचे गए, लड़ाई-झगड़े आज ही नहीं हो रहे, कलियुग आज ही पैदा नहीं हुआ, वह तो सतयुग में भी यही समस्या थी जिनसे आज तुम जूझ रहे हो। तुम मुझे बार-बार कह रहे हो कि कलियुग मैं कैसे साधनायें संपन्न करेंगे तो मै कह रहा हूँ द्वापर युग मे, त्रेता युग में, कितने षड़यंत्र हुए महलों मे, उस केकैयी के रुप जाल में फंस कर के दशरथ ने जो उनकी निति थी, धर्म था कि सबसे बडे बेटे को राजगद्दी पर बिठाया जाए। उसको भुलाकर उसे जंगल भेज दिया। एक छोटे बेटे को राजगद्दी पर बिठा दिया। यह षड्यंत्र नहीं था क्यां?

और उस केकैयी का षड्यंत्र यह कि राम यहां रहेगा तो फिर लड़ाई-झगड़े होंगे। इसको जंगल मे ही भेज दिया जाये। क्या षड्यंत्र उस समय नहीं होते थे? क्या आज ही होते हैं? क्या उस समय अपहरण नही होते थे ? क्या रावण सीता को नहीं ले गया? क्या द्वापर युग मे लडाईयां नहीं होती थी?

इतनी लडाइयां होती थी कि आज तो होती ही नहीं है। भरी सभा मे बहु को नंगा किया जा रहा है, साडी खींची जा रही है और उसके पांचों पति मुंह निचे लटकाए खडे हैं, उनका दादा भीष्म सिर निचे लटकाए खङा है, यह क्या था?

तो कौन सा युग तुम्हारा द्वापर युग है? राम राज्य कौन सा हो गया? मुझे बता दीजिए कि राम राज्य में कुछ नहीं हुआ वहां लड़ाई झगड़े हुए ही नही, वहां पर कोई किडनैप नहीं हुए। वह उस समय भी होते थे वे षड्यंत्र द्वापर में भी थे, सतयुग मे भी थे। तब भी हुए और कलियुग में भी हो रहे हैं। हो इसलिये रहे हैं कि मनुष्य जब तक बदलेगा नहीं, परिवर्तित नहीं होंगी तब तक ये घटनाएं घटित होंगी।

आपके मन में है कि आज कलियुग में साधनायें सफ़ल नहीं हो सकती मैं तो कहता हूँ कि कलियुग मे फिर भी हो सकती हैं क्योंकि इस समय सड़क पर किसी स्त्री को एकदम से नंगा नहीं कर सकते, एकदम से पचास आदमी लाठी लेकर खडे हो जायेंगे। उस समय तो भरी सभा में सैकड़ों लोगों के बीच मे ऐसा हुआ। कैसे पति थे वो? कैसे पितामह थे? क्या थे वो?

तब जुआ खेला जाता था और अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया जाता था यह तुम्हारा द्वापर युग था। हक़ीकत और इतिहास तो यह है। मगर हम प्रत्येक मृत को स्वर्गवासी कहते हैं, नरकवासी कहते ही नहीं हैं। कहा गए? स्वर्गवासी हो गए।

Tuesday, October 2, 2012

tumhi tum ho bas

SADGURU and MATA JI ki Jay ho...
♥ ♥ ♥
तुम्ही हो, तुम्ही बस 
मेरा जीवन तुम्ही हो 
मेरे प्राणों के दाता , जीने की वजह तुम 
तेरे ममता के सागर से निखरी मैं सवरी 
मेरी राग-राग में तुमको पाने की लगन है

मेरे पल -पल में तुमको मैं महसूस करती
तुम्ही हो, तुम्ही बस
मेरा जीवन तुम्ही हो

ना भूली वो मौसम ना मंज़र ना लम्हे
ना संगी थे कोई ना साथी ना अपने
अकेले खड़ी थी तुम्ही ने संभाला
वो पल जो मिले थे उन्ही से मैं सीखी
यह दुनिया दिखाई मुझे सब सिखाया
वो ममता के सागर से मुझको सवारा

तुम्ही हो, तुम्ही बस
मेरा जीवन तुम्ही हो
♥ ♥ ♥


by 




Baglamukhi: interesting facts


Baglamukhi: interesting facts by Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali)


Gurudev's experience when he did Baglamukhi Sadhna during his sanyas days. Further he also reveals some interesting facts about Maa Baglamukhi

Truth behind Maa Saraswati??


Truth behind Maa Saraswati?? by Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali)

Gurudev shatters all myths about Maa Saraswati in his pravachan. First time he throws light on who is Maa Saraswati and her significance in our lives 

We can not assess the value of living personalities?

We can not assess the value of living personalities?
WHY? " हम जीवित व्यक्तित्व का मूल्य आंक ही नही सकते |"

यह कैसे विडम्बना है की जब कोई महापुरुष जीवित होता है तब लोग उसे प्रताड़ित करते है ,उसकी आलोचना करते है |श्री कृष्ण को उनके जीवन काल में अपमान का सामना करना पड़ा ,गालिया खानी पड़ी ,एक से बढ़कर एक षड्यंत्र उनके खिलाफ रचे गए | लोगो ने कहा यह ग
्वाला चोर है ,उन पर मणि चोरी का इल्जाम लगा ,उन्हें रणछोड कह कर बुलाया गया |आज उनके जाने के इतने समय बाद हम अहसास करते है की वह एक उच्च कोटि का व्यक्तित्व था ,योगीश्वर था ,गीता जैसे ग्रन्थ का रचियता था | आज उनके जाने के इतने वर्षो बाद हम चाहते है की काश हम उनके पास रह पाते | क्योंकि हम मुर्दा पूजक है ,मुर्दा लोगो के पूजा करते है ,उनका श्राद्ध करते है |जब तक माता-पिता जीवित होते है ,हम उनकी आलोचना करते है ,उनका ख्याल नही रखते | जब वो मर जाते है तो उनका श्राद्ध करते है ,उन्हें खीर बना कर खिलाना चाहते है |

शंकराचार्य ,ईसामसीह ,मुहम्मद साहब ,सुकरात सभी के साथ उनके शिष्यों ने यही तो किया | ईसामसीह को सूली पर टांग दिया गया, सुकरात को जहर पीने के लिए बाध्य किया गया ,शंकराचार्य को उनके ही शिष्य ने कांच घोटकर पिला दिया |क्या हम इतिहास में हुई गलतियों से सीख नही ले सकते ?क्या हम वैसे शिष्य नही बन सकते जैसा गुरुदेव चाहते है ? सदगुरुदेव निखिल हमेशा कहते रहे है की शंकराचार्य के मृत्यु के समय शब्द थे की ," शिष्य बहुत घटिया शब्द है ",मैं शंकराचार्य के इस वाक्य को गलत सिद्ध करना चाहता हूँ | मैं आप लोगो के माध्यम से यह सिद्ध कर देना चाहता हूँ कि शिष्य एक उच्च कोटि का शब्द है , भाव है |

सदगुरुदेव डा. नारायण दत्त श्रीमाली जी से मैंने दीक्षा ली है |तब भी मैंने देखा है कि लोग उनकी आलोचना करते थे ,उन्हें गालिया देते थे ,उनके खिलाफ लोगो को भड़काते थे | आज वही लोग उनकी याद में रोते है और कहते है कि बहुत महान व्यक्तित्व था |आज लोगो का ऐसा व्यवहार त्रिमूर्ति गुरुदेव के प्रति देखने को मिल रहा है | वैसे ही उन्हें भला बुरा कहना ,उनकी आलोचना करना ,लोग आज भी उसी तरह से है कोई बदलाव नही आया यह देख कर बहुत दुःख होता है | 

क्या हम गुरुदेव के सिद्धाश्रम जाने के बाद ही उन्हें समझ पायेंगे ,क्या उनके साक्षात होने का ,उनके चरणों में बैठने का लाभ नही उठा सकते ? जैसे सदगुरुदेव निखिल सिद्धाश्रम चले गए है वैसे ही एक दिन जब गुरुदेव सिद्धाश्रम चले जायेंगे तब शायद हमे अहसास होगा कि हमने क्या खो दिया है | सदगुरुदेव निखिल ने बिलकुल सही कहा है कि " हम जीवित व्यक्तित्व का मूल्य आंक ही नही सकते |"

मेरे बारे में इससे श्रेष्ठ और कुछ नहीं हो सकता हैं कि मैं उस समुद्र की एक बूंद हूँ, जिस समुद्र का नाम "परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज (सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी" हैं. कुछ कागज के नोटों को कमाना, कुछ कंकड़-पत्थर को जमा कर

ना उन्होंने अपने शिष्यों को नहीं सिखाया. अपितु उन्होंने अपने शिष्यों को उत्तराधिकार में दिया : "प्रहार करने की कला - ताकि वे इस समाज में व्याप्त ढोंग और पाखण्ड पर प्रहार कर सके....... ..... और दे सके प्रेम, ताकि वे दग्ध हृदयों पर फुहार बनकर बरस सके, जलते हुए दिलों का मरहम बन सके, बिलखते हुए आंसुओं की हंसी बन सकें, छटपटाते हुए प्राणों की संजीवनी बन सकें." गुरुदेव चरणों में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ....... जो मेरे जीवन की सर्वश्रेष्ठ और अनमोल निधि हैं.... आज भी उनके चरणों की, उनके सानिध्य की कामना करता हूँ....... ....... .............. क्यूंकि जीवन का सौभाग्य यही हैं की मनुष्य इस जीवन में गुरु को प्राप्त करे.
मेरे प्रिय डॉ नारायण दत्त श्रीमाली....

talks about Sishya Dharm by Dr. Narayan Dutt Shrimali




what is paap by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji

what is paap by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji
what is paap  and how end this Paap karm...

Shiv Poojan and Aarti by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji

Shashtrokt shivling poojan and aarti done by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji (Part 1 of 5)





Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali

Hanuman Chalisa in different style- Narayan Dutt Shrimali


Hanuman Chalisa for harmony, love and to remove all difficulties in life. Find the benefits.

Thursday, September 13, 2012

Diksha methodology, significance, kinds


दीक्षा-पद्धति, महत्व, प्रकार, आदि.
Diksha - methodology, significance, kinds

दीक्षा क्या हैं?

मेरे शिष्य मेरी सम्पदा -सदगुरुदेव

“दीक्षा” सदगुरु दर्शन, स्पर्श और शब्द के द्वारा शिष्य के भीतर शिवभाव उत्पन्न करने की क्रिया हैं | ‘दीक्षा’ज्ञान देने की क्रिया हैं, जिसके द्वारा जीव का उद्धार होता हैं, और वह अपने मूल स्वरुप ब्रह्म तक जाकर अखंडानंद में लीन हो जाता हैं | ‘दीक्षा’ का रहस्य इतना गूढ़ और जटिल हैं, कि उसे मात्र कुछ शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता हैं, क्योंकि यह तो साक्षात् ईश्वर द्वारा गुरु रूप में उपस्थित होकर मनुष्य को पूर्णता प्रदान करने की क्रिया हैं | ‘दीक्षा’ को ही सम्पूर्ण साधना कहा गया हैं, सदगुरु यदि शक्तिपात द्वारा अपनी शक्ति का कुछ अंश दीक्षा के माध्यम से अपने शिष्य को देते हैं, तो फिर किसी भी प्रकार की, उससे सम्बंधित साधना की उसे आवश्यकता ही नहीं पड़ती, क्योंकि ‘दीक्षा’ साधना सिद्धि का द्वार खोलने की क्रिया हैं, जिससे साधक अपने जीवन को निश्चित अर्थ दे सकता हैं |

“दीक्षा” का तात्पर्य यही हैं, कि सदगुरु के पास तपस्या का जो विशेष अंश हैं, जो आध्यात्मिक पूँजी हैं, उसे वे अपने नेत्रों के माध्यम से शक्तिपात क्रिया द्वारा, शिष्य को दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक आवश्यकतानुसार उसके हृदय में उतार सकें | यदि शिष्य का शरीर रुपी कपडा मैला हो गया हैं, तो सदगुरुदेव उसे बार-बार दीक्षा के माध्यम से धोकर स्वच्छ कर सकें!

दीक्षाओं की आवश्यकता क्यों और किसलिए?
दीक्षाओं की आवश्यकता क्यों और किसलिए?

युग परिवर्तन की इस संधिबेला में दिन-प्रतिदिन ऐसी अनहोनी घटनाएं घट रही हीं, कि हर मानव-मन अपने जीवन की सुरक्षा को लेकर भयभीत व चिंतित हैं, वह किसी ऐसी सत्ता के आश्रय की खोज में हैं, जो उसे, उसके परिवार को, सुरक्षा कवच पहिनाकर, उसकी सारी परेशानियों को अपने ऊपर लेकर उसे भयमुक्त कर सकें, और यह सुरक्षा उसे सदगुरु के द्वारा प्रदान की गई दीक्षाओं से ही प्राप्त हो सकती हैं | दीक्षाओं को लेने की आवश्यकता हमारे जीवन में इसलिए भी हैं क्योंकि :

1. दीक्षा प्राप्ति के उपरांत शिष्य को उससे सम्बंधित किसी भी प्रकार की साधना करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती|
2. सदगुरु अपनी ऊर्जा के प्रवाह द्वारा शिष्य के शरीर में वह शक्ति प्रवाहित कर देते हैं, जिससे उसे मनोवांछित सफलता प्राप्त होती ही हैं|
3. यह शास्त्रीय विधान हैं, कि जब तक साधक या शिष्य किसी साधना से सम्बंधित दीक्षा विशेष को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वह सफलता प्राप्त नहीं कर सकता|
4. जीवन के दुःख, दैन्य, भय, परेशानी, बाधा एवं अडचनों को दूर कर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक लाभ हेतु भी दीक्षाओं की आवश्यकता होती हैं|
5. नैतिक उत्थान के साथ-साथ जीवन में बासंती हवा जैसी मधुरता और सूर्य जैसा प्रकाश दीक्षाओं के माध्यम से ही संभव हैं|
6. जीवन में अनवरत उन्नति, सफलता, विजय, सुख-शांति, ऐश्वर्य, यश व कीर्ति पाने के लिए|
7. भविष्य ज्ञान, भविष्य कथन की विद्या ज्ञात करने, वर्तमान को संवारने हेतु!
8. शारीरिक सौंदर्य, सम्मोहन, निरोगी काया, प्रेम में सफलता व अनुकूल विवाह हेतु|
9. सभी प्रकार की अपनी गुप्त इच्छाओं की पूर्ती हेतु|
10. सभी प्रकार के कष्टों, समस्याओं का निवारण, मनोवांछित कार्य एवं इच्छाओं की पूर्ति हेतु जीवन को सही दिशा प्रदान करने के लिए दीक्षाओं की आवश्यकता प्रत्येक मानव को पड़ती ही हैं|

-: दीक्षाओं के प्रकार :-
-: दीक्षाओं के प्रकार :-
दीक्षाओं को शास्त्रों में 108 प्रकार से वर्णित किया गया हैं| इन 108 दीक्षाओं में भौतिक, शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान और सभी सभी प्रकार के सुखों की उपलब्धि छिपी हुई हैं| स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, चाहे किसी भी समुदाय, जाति, संप्रदाय का व्यक्ति क्यों न हो, इन दीक्षाओं को पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी से कसी भी शिविर में या जोधपुर स्थित उनके गुरुधाम में पहुँच कर प्राप्त कर सकता हैं| व्यक्ति चाहे तो इनमें से एक, दो या कुछ चुनी हुई दीक्षाएं या समस्त दीक्षाएं अपनी इच्छानुसार ले सकते हैं| इन दीक्षाओं को 108 भागों में इस प्रकार बांटा गया हैं-

-: कब कौन सी दीक्षा ली जाएँ :-
1. सामान्य दीक्षा : शिष्यत्व धारण करने हेतु यह प्रारंभिक गुरु दीक्षा हैं|
2. ज्ञान दीक्षा : अद्वितीय ज्ञान की प्राप्ति और मेधा में वृद्धि हेतु|
3. जीवन मार्ग : जीवन के सारे अवरोधों, अशक्तता को समाप्त करके जीवन को चैतन्यता प्रदान करने वाली दीक्षा|
4. शाम्भवी दीक्षा : शिवत्व प्राप्त कर शिवमय होने के लिए|
5. चक्र जागरण दीक्षा : समस्त षट्चक्रों को जाग्रत कर अद्वितीय बनाने वाली दीक्षा|
6. विद्या दीक्षा : जड़मति को सूजन कालीदास बना देने वाली दीक्षा|
7. शिष्याभिषेक दीक्षा : पूर्ण शिष्यत्व प्राप्त करने के लिए|
8. आचार्याभिषेक दीक्षा : ज्ञान की पूर्णता के लिए|
9. कुण्डलिनी जागरण : इस दीक्षा के सात चरण हैं| इसे एक-एक करके भी लिया जा सकता हैं या एक साथ सातों चरणों की दीक्षा द्वारा कुण्डलिनी का जागरण कर अद्वितीय व्यक्तित्व का धनी बना जा सकता हैं|
10. गर्भस्थ शिशु चैतन्य : गर्भस्थ बालक को अभिमन्यु की भांति मनोनुकूल बनाने हेतु दीक्षा!
11. शक्तिपात से कुण्डलिनी : गुरु की तपस्या के अंश, दीक्षा द्वारा प्राप्त कर प्रथम व जागरण दीक्षा जीवन का अंतिम सत्य प्राप्त करने हेतु|
12. फोटो द्वारा कुण्डलिनी जागरण दीक्षा : यह दीक्षा व्यक्ति के उपस्थित न होने पर फोटो से भी प्राप्त की जा सकती हैं|
13. धन्वंतरी दीक्षा : निरोगी काया प्राप्त करने हेतु|
14. साबर दीक्षा : तांत्रिक साधना में सफलता व सिद्धि के लिए|
15. सम्मोहन दीक्षा : अपने अंदर अद्भुत सम्मोहन पैसा करने हेतु|
16. सम्पूर्ण सम्मोहन दीक्षा : सभी को सम्मोहित करने की कला प्राप्ति हेतु|
17. महालक्ष्मी दीक्षा : सुख-सौभाग्य, आर्थिक लाभ की प्राप्ति हेतु|
18. कनकधारा दीक्षा : लक्ष्मी के निरंतर आवागमन के लिए|
19. अष्टलक्ष्मी दीक्षा : धन प्रदायक विशेष दीक्षा|
20. कुबेर महादीक्षा : कुबेर की भांति स्थायी सम्पन्नता पाने हेतु|
21. इन्द्र वैभव दीक्षा : इन्द्र जैसा वैभव, यश प्राप्त करने हेतु|
22. शत्रु संहारक दीक्षा : शत्रु से बदला लेने हेतु|
23. प्राण वल्लभा अप्सरा : प्राणवल्लभा अप्सरा की सिद्धि हेतु|
24. सामान्य ऋण मुक्ति : ऋण से मुक्त होने हेतु|
25. शतोपंथी दीक्षा : शिव की अद्वितीय शक्ति प्राप्ति हेतु|
26. चैतन्य दीक्षा : स्फूर्तिदायक, पूर्ण चैतन्यता प्रदान करने वाली दीक्षा|
27. उर्वशी दीक्षा : वृद्धता मुक्ति एवं यौवन प्राप्ति हेतु|
28. सौन्दर्यौत्तमा अप्सरा : पुरुष व स्त्री दोनों का ही पूर्ण कायाकल्प करने हेतु|
29. मेनका दीक्षा : विश्वामित्र की तरह पूर्ण साधनात्मक व भौतिक सफलता प्राप्ति हेतु|
30. स्वर्ण प्रभा यक्षिणी : आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए|
31. पूर्ण वैभव दीक्षा : समस्त प्रकार के आनन्द, वैभव की प्राप्ति हेतु|
32. गन्धर्व दीक्षा : गायन संगीत में दक्षता के लिए|
33. साधना दीक्षा : पूर्वजन्म की साधना को इस जन्म से जोड़ने हेतु|
34. तंत्र दीक्षा : तांत्रिक साधनाओं में सफलता हेतु|
35. बगलामुखी दीक्षा : शत्रु को परास्त कर अपने अंदर अद्वितीय साहस भरने वाली दीक्षा|
36. रसेश्वरी दीक्षा : रसायन-शास्त्र में दक्षता के लिए तथा पारद -संस्कार विद्या प्राप्त करने हेतु|
37. अघोर दीक्षा : शिवोक्त साधनाओं की पूर्ण सफलता के लिए|
38. शीघ्र विवाह दीक्षा : विवाह सम्बन्धी रुकावटों को मिटाकर शीघ्र विवाह हेतु|
39. सम्मोहन दीक्षा : यह तीन चरणों वाली महत्वपूर्ण दीक्षा हैं|
40. वीर दीक्षा : वीर साधना संपन्न कर, वीर द्वारा इच्छानुसार कार्य संपन्न कराने के लिए|
41. सौंदर्य दीक्षा : अद्वितीय सौंदर्य प्रदान करने वाली दीक्षा|
42. जगदम्बा सिद्धि दीक्षा : देवी को सिद्ध करने वाली दीक्षा|
43. ब्रह्म दीक्षा : सभी दैवीय शक्तियों को प्राप्त करने वाली दीक्षा|
44. स्वास्थ्य दीक्षा : सदैव स्वस्थ व निरोगी बनने हेतु|
45. कर्ण पिशाचिनी दीक्षा : सभी के भूत-वर्तमान को ज्ञात करने के लिए|
46. सर्प दीक्षा : सर्प दंश से मुक्ति व सर्प से आजीवन सुरक्षा हेतु|
47. नवार्ण दीक्षा : त्रिशक्ति की सिद्धि के लिए|
48. गर्भस्थ शिशु की कुण्डलिनी जागरण दीक्षा : इससे गर्भस्थ बालक के संस्कार महापुरुषों जैसे होते हैं|
49. चाक्षुष्मती दीक्षा : नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए|
50. काल ज्ञान दीक्षा : सही समय पहिचान कर उसका सदुपयोग करने हेतु|
51. तारा योगिनी दीक्षा : तारा योगिनी की सिद्धि हेतु, जिससे जीवन भर अनवरत रूप से धन प्राप्त होता रहे|
52. रोग निवारण दीक्षा : समस्त रोगों को मिटने हेतु|
53. पूर्णत्व दीक्षा : जीवन में पूर्णता प्रदान करने वाली दीक्षा|
54. वायु दीक्षा : अपने-आप को हल्का, हवा जैसा बनाने हेतु|
55. कृत्या दीक्षा : मारक सिद्धि प्रयोग की दीक्षा|
56. भूत दीक्षा : भूतों को सिद्ध करने की दीक्षा|
57. आज्ञा चक्र जागरण दीक्षा : दिव्य-दृष्टि प्राप्ति के लिए|
58. सामान्य बेताल दीक्षा : बेताल शक्ति को प्रसन्न करने के लिए|
59. विशिष्ट बेताल दीक्षा : बेताल को सम्पूर्ण सिद्ध करने के लिए|
60. पञ्चान्गुली दीक्षा : हस्त रेखा-शास्त्र में निपुणता प्राप्त करने के लिए|
61. अनंग रति दीक्षा : पूर्ण सौंदर्य एवं यौवन शक्ति प्राप्त करने के लिए|
62. कृष्णत्व गुरु दीक्षा : जगत गुरुत्व प्राप्त करने के लिए|
63. हेरम्ब दीक्षा : गणपति की सिद्धि हेतु|
64. हादी, कादी, मदालसा : नींद व भूख-प्यास पर नियंत्रण के लिए|
65. आयुर्वेद दीक्षा : आयुर्वेद के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिए|
66. वराह मिहिर दीक्षा : ज्योतिष के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिए|
67. तांत्रोक्त गुरु दीक्षा : गुरु से हठात (बल पूर्वक) शक्ति प्राप्ति हेतु|
68. गर्भ चयन दीक्षा : अपने मनोनुकूल गर्भ की प्राप्ति हेतु|
69. निखिलेश्वरानंद दीक्षा : संन्यास की विशेष भावभूमि प्राप्ति हेतु|
70. दीर्घायु दीक्षा : लंबी आयु की प्राप्ति हेतु दीक्षा|
71. आकाश गमन दीक्षा : इससे मन, आत्मा, आकाश का भ्रमण करती हैं|
72. निर्बीज दीक्षा : जन्म-मरण, कर्म-बंधन की समाप्ति के लिए|
73. क्रिया-योग दीक्षा : जीव-ब्रह्म ऐक्य ज्ञान प्राप्ति हेतु|
74. सिद्धाश्रम प्रवेश दीक्षा : सिद्धाश्रम में प्रवेश पाने हेतु|
75. षोडश अप्सरा दीक्षा : जीवन में समस्त सुख-सौभाग्य, संपत्ति प्राप्ति के लिए|
76. षोडशी दीक्षा : सोलह कला पूर्ण, त्रिपुर सुंदरी साधना हेतु|
77. ब्रह्माण्ड दीक्षा : ब्रह्माण्ड के अनंत रहस्यों को जानने के लिए|
78. पशुपातेय दीक्षा : शिवमय बनने के लिए|
79. कपिला योगिनी दीक्षा : राज्य बाधा एवं नौकरी में आने वाली अडचनों को दूर करने हेतु|
80. गणपति दीक्षा : भगवान गणपति की विशिष्ट कृपा प्राप्ति हेतु|
81. वाग्देवी दीक्षा : वाक् चातुर्य एवं वाक् सिद्धि के लिए|


इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट उच्च कोटि की दीक्षाएं भी हैं, जो पूज्य गुरुदेव से परामर्श कर प्राप्त की जा सकती हैं|

“दीक्षा का तात्पर्य यह नहीं हैं कि आप जिस उद्देश्य के लिए दीक्षा ले रहे हैं, वह कार्य संपन्न हो ही जाएँ, अपितु दीक्षा का तात्पर्य तो यह हैं कि, आप जिस उद्देश्य के लिए दीक्षा ले रहे हैं, उस कार्य के लिए आपका मार्ग प्रशस्त हो|”

नोट: मेरी सलाह यह हैं कि किसी भी दीक्षा की प्राप्ति के पूर्व हो सके तो गुरुदेव से अवश्य परामर्श ले ले...
जिससे कि आपका कार्य अतिशीघ्र पूर्ण हो सकें.


दीक्षाओं के लिए निश्चित न्यौछावर राशि देने की आवश्यकता क्यों:-


1. क्योंकि यह हमारी भारतीय परम्परा रही हैं, कि हम गुरु का ज्ञान बिना गुरु दक्षिणा के प्राप्त नहीं कर सकते|
2. बिना गुरु आज्ञा के विद्या सीखने पर एकलव्य को भी अंगूठा दान देना ही पड़ा था|
3. व्यक्ति के पास इतना समय, साधना व आध्यात्मिक शक्ति नहीं हैं, कि वह कठोर साधना कर सकें, इसलिए दीक्षा की कुछ दक्षिणा-राशि गुरु-चरणों में अर्पित कर, वह उस साधना के रूप में तपस्या के अंश को प्राप्त करता हैं| अपने समय, श्रम द्वारा गुरु-सेवा न कर सकने के बदले वह अपना अंशदान देता हैं|
4. आपकी दीक्षा के बदले दी गई राशि अनगिनत साधू-सन्यासियों, तपस्वियों, योगियों का भरण-पोषण करती हैं|
5. इस धन के माध्यम से स्थान-स्थान पर निःशुल्क चिकित्सा, प्याऊ, निर्धनों के लिए कम्बल एवं वस्त्र वितरण आदि समाजोपयोगी कार्य संपन्न होते हैं|
6. गरीबों एवं निर्धन विद्यार्थियों की शिक्षण सुविधा के लिए भी आपका दिया हुआ यह अंशदान उन्हें सहायता के रूप में प्राप्त होता हैं|

आदि....

आदि....

Friday, August 3, 2012

Debt relief, Gold Supplier text Knkdhara ODE

ऋण मुक्ति, स्वर्ण प्रदायक पाठ  कनकधारा स्तोत्र 

कनकधारा स्तोत्र

अंग हरे पुलकभूषणमाश्रयंती , भृंगागनेव मुकुलाभरणं तमालम |
अंगीकृताखिलविभूतिर पांग लीला, मांगल्यदास्तु मम मंगदेवताया || १ ||

मुग्धा मुहुर्विदधाति वदने मुरारेः , प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि |
माला दुशोर्मधुकरीय महोत्पले या, सा में श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः || २ ||

विश्वासमरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष , मानन्दहेतुरधिकं मधुविद्विषो पि |
इषन्निषीदतु मयी क्षणमीक्षर्णा, मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः || ३ ||

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द, मानन्दकन्मनिमेषमनंगतन्त्रम |
आकेकरस्थितिकनीकिमपक्ष्म नेत्रं, भूत्यै भवेन्मम भुजंगशयांगनायाः || ४ ||

बाह्यंतरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या, हारावलीव हरीनिलमयी विभाति |
कामप्रदा भागवतोपी कटाक्ष माला, कल्याणमावहतु मे कमलालायायाः || ५ ||

कालाम्बुदालितलिसोरसी कैटमारे, धरिधरे स्फुरति या तु तडंग दन्यै |
मातुः समस्तजगताम महनीयमूर्ति , र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः || ६ ||

प्राप्तम पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान, मांगल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मययापतेत्तदिह मन्थन मीक्षर्णा, मन्दालसम च मकरालयकन्यकायाः || ७ ||

दाद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा, मस्मिन्न वि किंधनविहंगशिशौ विपाणे |
दुष्कर्मधर्म मापनीय चिराय दूरं, नारायणप्रगणयिनीनयनाम्बुवाहः || ८ ||

इष्ट विशिष्टमतयोपी यया दयार्द्र, दुष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लर्भते |
दृष्टिः प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरीष्टां, पुष्टि कृपीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः || ९ ||

गीर्तेवतेती गरुड़ध्वजभामिनीति, शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति |
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै, तस्यै नमास्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुन्यै || १० ||

क्ष्फत्यै नमोस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै, रत्यै नमोस्तु रमणीयगुणार्णवायै |
शक्त्यै नमोस्तु शतपनिकेतनायै, पुष्ट्यै नमोस्तु पुरुषोत्तम वल्लभायै || ११ ||

नमोस्तु नालीकनिभान्नायै, नमोस्तु दुग्धोदधिजन्म भूत्यै |
नमोस्तु सोमामृतसोदरायै , नमोस्तु नारायणवल्लभायै || १२ |

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि, साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि |
त्वद्वन्द्वनानि दुरिताहरणोद्यतानी , मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यम || १३ ||

यत्कटाक्ष समुपासनाविधिः, सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः |
संतनोति वचनांगमान, सैस्त्वां मुरारीहृदयेश्वरीं भजे || १४ ||

सरसीजनिलये सरोजहस्ते, धवलतमांशु -कगंधमाल्य शोभे |
भगवती हरिवल्लभे मनोज्ञे, त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यं || १५ ||

दिग्धस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट, स्वर्वाहिनीतिमलाचरूजलप्तुतांगम |
प्रातर्नमामि जगताम जननीमशेष, लोकाधिनाथ गृहिणीम मृताब्धिपुत्रिम || १६ ||

कमले कमलाक्षवल्लभे, त्वम्, करुणापूरतरंगितैपरपाडयै |
अवलोकय ममाकिंचनानां, प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः || १७ ||

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमू भिरन्वहं, त्रयोमयीं त्रिभुवनमातरम रमाम |
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभामिनी, भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः || १८ ||

Tuesday, May 15, 2012

Nikileshhwaranand panchak !! !! निखिलेश्वरानंद पंचक !!

!! निखिलेश्वरानंद पंचक !!

ॐ नमः निखिलेश्वर्यायै कल्याण्यै ते नमो नमः!
नमस्ते रूद्र रूपिंण्यै ब्रह्म मूर्त्यें नमो नमः !!1!!

नमस्ते क्लेश हारिण्यै मंगलायें नमो नमः!
हरति सर्व व्याधिनां श्रेष्ठ ऋष्यै नमो नमः. !!2!!

शिष्यत्व विष नाशिन्यें पूर्णतायै नमो नमः!
त्रिविध ताप संहत्र्यै ज्ञानदात्र्यै नमो नमः !!3!!

शांति सौभाग्य कारिण्यै शुद्ध मूर्त्यें नमो नमः!
क्षमावत्यै सुधात्यै तेजोवत्यै नमो नमः !!4!!

नमस्ते मंत्र रूपिण्यै तंत्र रूपे नमो नमः!
ज्योतिषं ज्ञान वैराग्यं पूर्ण दिव्यै नमो नमः !!5!!

य इदं पठते स्तोत्रं श्रृणुयात श्रद्धयान्वितम!
सर्व पाप विमुच्यन्ते सिद्ध योगिश्च जायते !!6!!

रोगस्थो रोग तं मुच्येत विपदा त्रानयादपि!
सर्व सिद्धिं भवेत्तस्य दिव्य देहश्च संभवे !!7!!

निखिलेश्वर्य पंचकं नित्यं यो पठते नर:!
सर्वान कामान अवाप्नोति, सिद्धाश्रमवाप्नुयात !!8!