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Thursday, May 30, 2019

Dhumavati mahavidya



श्री धूमावती जयंती 10 JUNE.2019 को है.. धुएं के रूप में विद्यमान, , विधवा देवी धूमावती।देवी धूमावती दस महाविद्याओं में सातवें स्थान में (परम पूज्य सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी के श्री चरणों में कोटि कोटि नमन**सारे तीरथ धाम तुम्हारे चरणों में ,हे गुरुदेव प्रणाम तुम्हारे चरणों में)

त्वं ज्योतिमयं त्वं ज्ञानमयं त्वं शिष्यमयं त्वं प्राणमयं
मम आर्तव शिष्यत् त्राण प्रभो निखिलेश्वर गुरुवर पाहि प्रभो
निखिलेश्वरानंद पञ्चरत्न का यह पंचम श्लोक अपने आप में एक अत्यधिक तीव्र मन्त्र है.*********************

माँ धूमावती दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या हैं। बगलामुखी की अंगविद्या हैं इसीलिए माँ बगलामुखी से साधना की आज्ञा लेनी चाहिए और प्रार्थना करना चाहिए की माँ पूरी कराये . ज्ञान के आभाव में या कौतुहल से किताब , इन्टरनेट से पढ़कर प्रयोग करने से विपत्ति में भी फसते देखे गये हैं . बगलामुखी साधना करने के पश्चात ही धूमावती साधना विशेष करने की योग्यता मिलती है .इसीलिए विशेष परिस्थिति में गुरु से प्रक्रिया जानकार ही शुरू करना चाहिए . गुरु जानते हैं की शिष्य की योग्यता क्या है . धूमावती साधना सबके बस की नहीं . इनके काम करने का ढंग बिलकुल अलग है . बांकी महाविद्या श्री देती हैं और धूमावती श्री विहीनता अपने सूप में लेकर चली जाती है . जीवन से दुर्भाग्य , अज्ञान , दुःख , रोग , कलह , शत्रु विदा होते ही साधक ज्ञान, श्री और रहस्यदर्शी हो जाता है और साधना में उच्चतम शिखर पे पहुच जाता है .

इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है।ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयंती के रूप में मनाया जाता है।

मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं। धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।

इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’- अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वेग कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आर्द्र स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा बिना पहिये वाले जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी का मैं ध्यान करता हु .

देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं।

दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है। शाप देने नष्ट करने व संहार करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है। क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि।

सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है , चातुर्मास ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है।
देश के कई भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र्य लेकर विदा होइए।

ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है। इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

देवी का प्राकट्य :-
पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ. इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं. यानी धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है. सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआँ।

दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी. तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी. उन्होने शिव से कहा-” मुझे भूख लगी है. मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें.” शिव ने कहा-” अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता.” तब सती ने कहा-” ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूँ। ” और वे शिव को ही निगल गयीं। शिव, जो इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं।

फिर शिव ने उनसे अनुरोध किया कि’ मुझे बाहर निकालो’, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘ अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.’

तभी से वे विधवा हैं-अभिशप्त और परित्यक्त.भूख लगना और पति को निगल जाना सांकेतिक है. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं।

निरंतर इनकी स्तुति करने वाला कभी धन विहीन नहीं होता व उसे दुःख छूते भी नहीं , बड़ी से बड़ी शक्ति भी इनके सामने नहीं टिक पाती इनका तेज सर्वोच्च कहा जाता है। श्वेतरूप व धूम्र अर्थात धुंआ इनको प्रिय है पृथ्वी के आकाश में स्थित बादलों में इनका निवास होता है।

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है

स्तुति :-
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा |
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॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥

धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥

कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥

सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥

॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥
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॥ धूमावती कवचम् ॥

श्रीपार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया ।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥१॥

श्रीभैरव उवाच

शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥२॥

ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥३॥

ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य पिप्पलाद ऋषिः निवृत छन्दः ,श्री धूमावती देवता, धूं बीजं ,स्वाहा शक्तिः ,धूमावती कीलकं , शत्रुहनने पाठे विनियोगः ॥

ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु ॥१॥

दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥२॥
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।

सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥३॥

चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥४॥

प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥५॥

सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥६॥

न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः ।।७॥

दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत् । ७.१।
॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं
सम्पूर्णम् ॥
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धूमावती अष्टक स्तोत्रं

॥ अथ स्तोत्रं ॥

प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती
मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् |
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां
वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु युष्मान् || १ ||

बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोनेः
कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षैः |
पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ
पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरवः कालरात्र्याम् || २ ||

चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्-
उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी |
नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्-
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती || ३ ||

टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां वहन्ती
स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा |
लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती
चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु || ४ ||

वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे
नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम् |
स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं
संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली || ५ ||

तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा
लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मनः पादशोभाम् |
दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा
वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव || ६ ||

सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां
शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा |
दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची
शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम् || ७ ||

दंष्ट्रा रौद्रे मुखेऽस्मिंस्तव विशति जगद्देवि सर्वं क्षणार्द्धात्
संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशा सम्प्लवे भूमधूम्रे |
काली कापालिकी साशवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा रक्तारुद्धिः
सभास्था भरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा || ८ ||

धूमावत्यष्टकम्पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम् |
यः पठेत्साधको भक्त्या सिद्धिं व्विन्दन्ति वाञ्छिताम् || ९ ||

महापदि महाघोरे महारोगे महारणे |
शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनाम्मोहने तथा || १० ||

पठेत्स्तोत्रमिदन्देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत् |
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः || ११ ||

सिंहव्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्रस्मरणमात्रतः |
दूराद्दूरतरं य्यान्ति किम्पुनर्मानुषादयः || १२ ||

स्तोत्रेणानेन देवेशि किन्न सिद्ध्यति भूतले |
सर्वशान्तिर्ब्भवेद्देवि ह्यन्ते निर्वाणतां व्व्रजेत् || १३ ||
।। इत्यूर्द्ध्वाम्नाये धूमावतीअष्टक स्तोत्रं समाप्तम् ।।
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देवी की कृपा से साधक धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ऐसा मानना है की कुण्डलिनी चक्र के मूल में स्थित कूर्म में इनकी शक्ति विद्यमान होती है। देवी साधक के पास बड़े से बड़ी बाधाओं से लड़ने और उनको जीत लेने की क्षमता आ जाती है।

महाविद्या धूमावती के मन्त्रों से बड़े से बड़े दुखों का नाश होता है।

१- देवी माँ का महामंत्र है-"धूं धूं धूमावती ठ: ठ:"

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-

1. राई में सेंधा नमक मिला कर होम करने से बड़े से बड़ा शत्रु भी समूल रूप से नष्ट हो जाता है

2. नीम की पत्तियों सहित घी का होम करने से लम्बे समस से चला आ रहा ऋण नष्ट होता है

3. जटामांसी और कालीमिर्च से होम करने पर काल्सर्पादी दोष नष्ट होते हैं व क्रूर ग्रह भी नष्ट होते हैं

4. रक्तचंदन घिस कर शहद में मिला लेँ व जौ से मिश्रित कर होम करें तो दुर्भाग्यशाली मनुष्य का भाग्य भी चमक उठता है

5. गुड व गाने से होम करने पर गरीबी सदा के लिए दूर होती है

6 . केवल काली मिर्च से होम करने पर कारागार में फसा व्यक्ति मुक्त हो जाता है

7 . मीठी रोटी व घी से होम करने पर बड़े से बड़ा संकट व बड़े से बड़ा रोग अति शीग्र नष्ट होता है

२- धूमावती गायत्री मंत्र:-

"ओम धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात।"

वाराही विद्या में इन्हे धूम्रवाराही कहा गया है जो शत्रुओं के मारन और उच्चाटन में प्रयोग की जाती है।

3. धूमावती के साबर मन्त्र :-

"ॐ पाताल निरंजन निराकार,आकाश मण्डल धुन्धुकार,
आकाश दिशा से कौन आई,कौन रथ कौन असवार,
आकाश दिशा से धूमावन्ती आई ,काक ध्वजा का रथ असवार
थरै धरत्री थरै आकाश,विधवा रुप लम्बे हाथ,
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव,डमरु बाजे भद्रकाली,
क्लेश कलह कालरात्रि ,डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी ,
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्तेजाया जीया आकाश तेरा होये ,
धूमावन्तीपुरी में वास,न होती देवी न देव ,
तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती ,
तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ ,आप भयी अतीत
ॐ धूं धूं धूमावती फट स्वाहा ।"

विशेष पूजा सामग्रियां-
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पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है

सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र व पुष्पमालाएं , केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी व नारियल , मेवा व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें।सूप की आकृति पूजा स्थान पर रखें
दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो मिटटी के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें।

देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
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बिना गुरु दीक्षा के इनकी साधना कदापि न करें। थोड़ी सी भी चूक होने पर विपरीत फल प्राप्त होगा और पारिवारिक कलह दरिद्र का शिकार होंगे।

माँ धूमावती की पूजा करते समय ऐसा ध्यान करना चाहिए कि माँ प्रसन्न होकर हमारे सभी रोग , दोष , क्लेश , तंत्र , भूत प्रेत आदि बाधाओं को अपने शूप में समेटकर हमारे घर से विदा हो रही हैं और हमें धन , लक्ष्मी सुख शांति का आशीर्वाद दे रही हैं।

जब दुर्भाग्य , दुःख एवं दरिद्रता लम्बे समय से पीछा कर रही हो तो माँ धूमावती की दीक्षा लेकर उनकी उपासना करनी चाहिए। जब शत्रु मृत्यु तुल्य कष्ट दे रहे हों तो माँ बगलामुखी से साथ धूमावती की उपासना करनी चाहिए।

ध्यान रहे कि माँ धूमावती की उपासना किसी अच्छे गुरु के संरक्षण में ही करनी चाहिए। बिना दीक्षा लिए इनका मंत्र जाप नहीं करना चाहिए।

देवी धूमावती धुएं के स्वरूप में विद्यमान है तथा पार्वती के भयंकर तथा उग्र स्वभाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी 'धूमावती जयंती' होती है, इसी तिथि में देवी का प्रादुर्भाव हुआ था।

नारद पंचरात्र के अनुसार, देवी धूमावती ने ही उग्र चण्डिका, उग्र तारा जैसे उग्र तथा भयंकर प्रवृति वाली देवियों को अपने शरीर से प्रकट किया; उग्र स्वभाव, भयंकरता, क्रूरता इत्यादि देवी धूमावती ने ही अन्य देवियों को प्रदान किया। देवी की ध्वनि, हजारों गीदड़ों के एक साथ चिल्लाने जैसी हैं, जो महान भय दायक हैं। देवी ने क्रोध वश अपने पति भगवान शिव का भक्षण लिया था; देवी का सम्बन्ध अतृप्त क्षुधा (भूख) से भी हैं, देवी सर्वदा अतृप्त एवं भूखी है परिणामस्वरूप देवी दुष्ट दैत्यों के मांस का भक्षण करती हैं, परन्तु इनकी क्षुधा का निवारण नहीं हो पाता हैं।

स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, एक समय देवी पार्वती भगवान शिव के साथ, अपने निवास स्थान कैलाश में बैठी हुई थी। देवी, तीव्र क्षुधा से ग्रस्त थी (भूखी थी) तथा उन्होंने शिव जी से अपनी क्षुधा निवारण हेतु कुछ भोजन प्रदान करने का निवेदन किया। भगवान शिव ने उन्हें प्रतीक्षा करने के लिया कहा, कुछ समय पश्चात उन्होंने पुनः भोजन हेतु निवेदन किया। परन्तु शिव जी ने उन्हें कुछ क्षण और प्रतीक्षा करने का पुनः आश्वासन दिया। बार-बार भगवान शिव द्वारा इस प्रकार आश्वासन देने पर, देवी धैर्य खो क्रोधित हो गई तथा उन्होंने अपने पति को ही उठाकर निगल लिया।

तदनंतर देवी के शरीर से एक धूम्र राशि निकली तथा उस धूम्र राशि ने उन्हें पूरी तरह से ढक दिया। तदनंतर, भगवान शिव, देवी के शरीर से बहार आये तथा कहा! आपकी यह सुन्दर आकृति धुएं से ढक जाने के कारण धूमावती नाम से प्रसिद्ध होगी।
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इस साधना की दीक्षा तथा मंत्र आप गुरुदेव नंदकिशोर श्रीमाली जी और गुरुदेव अरविन्द श्रीमाली जी से प्राप्त कर सकते है, साधना सामग्री आप आरोग्यधाम दिल्ली, सिद्धाश्रम दिल्ली, या जोधपुर से प्राप्त कर सकते है..

आरोग्यधाम
जोन 4/5, बिहाइंड गुजरात अपार्टमेंट्स
पीतमपुरा नई, दिल्ली- ११००३४
Telephone: +91-11-27029044
Fax: +91-11-27029045
MailId: nmv.guruji@gmail.com

दिल्ली गुरुधाम (सिद्धाश्रम)
३०६, कोहट एन्क्लेव, पीतमपुरा,
नई दिल्ली- ११००३४
Phone : (011)-27352248
Fax : (011)-27356700

Monday, December 4, 2017

TRATAK SE DHYAN KI OR

TRATAK SE DHYAN KI OR




According to Yog Shastra, seven chakras are present in our body in form of bunch of nerves. It all depends on us whether we want to keep them in a dormant state or activate them and improve our lives by benefits arising out of this activation……This thing applies to each and every common person who does not have anything to do with sadhnas. But those who do sadhnas, they know that how much significant these chakras are in their spiritual lives.
Though each chakra has their own importance but Aagya Chakra situated in between two eyes has a lot to do with our spiritual lives. This is because it is located exactly in between our eyes where the third eye is present. How much concentration you have during sadhna or you are getting deviated, it all starts from here…..but if you remember, we learned a very abstruse fact in article related to mind that-
“If we have to save ourselves from illusion then we should abandon all the benefits and loss arising out of illusion”.
This quote simply means that the things which we do not know, it is useless to run after them…..but at the time of sadhana, it does not happen so…. At that time our mental condition is such that almighty has given the responsibility of entire universe on our shoulders and this state persists till the time we do not get up from sadhna. Such things happen, we all know. But we sparingly try to find out the reason behind this phenomenon. But in reality, it is subject to be pondered upon daily rather than occasionally. Sadhna or chanting of mantra means that the particular time belongs to us and our Isht. But if we are still thinking about worldly things at that time, then it is better not to sit on the aasan itself because just by chanting or by closing eyes, god does not get pleased…..and reason for such a state in sadhna is our mind….because
“Those who are knowledgeable, they know the fact that mind is neither a reliable friend nor an obedient servant. We can direct it but never control it”
……But those who are accomplished ascetic, their mind does not play such games with them because they are well aware of the fact that in reality, there is no such thing as mind….it is merely an illusion and if it is confirmed from scientific point of view then no doctor will tell you about a body part called “: mind”. Because such thing does not exist.
We have named a particular type of energy/vibration emitted from our brain as mind over which we do not have any control. Because energy remains uncontrolled until the time we do not understand its utilization. For controlling energy which is continuously created inside us, first of all we have to understand the roots from which this energy is created.
…….And our body contains three characteristics of Sat, Raj and tam in one proportion or other and our mind/orientation of thoughts and work-capability is always influenced by these three qualities. The time when there is a predominance of a particular quality, at that time, energy emitted from brain (which we have addressed as mind) will move towards that particular characteristic. It is because of natural law which says that energy always flows in direction of increasing density of Shakti (power). This is precisely the reason why we do not the same type of work every time…. Sometimes we are saintly and sometimes…..
In order to keep minds and thought stable in sadhna, thousands of ways have been told in Meditation and Yoga path. But above all those procedures, if there is any power/activity which takes us from darkness to light…..it is none but you because nobody knows you better then you yourself. It does not make any difference that which rules have been followed by you to concentrate your thoughts because all your activities have done become useless until the time your eyes do not become stable. And in order to stabilize the eyes, it is not necessary to tire yourself…..If anything is needed then it is to get rid of defects present inside you…
We all know that controlling mind or thoughts is very difficult task…..But we should also know the fact that consciousness never gets polluted; it is one of the vibrations of our soul which needs to be shown right direction. And we can show consciousness right direction only when we know the right path. In Hath Yoga, six different types of procedures have been told out of which Tratak is considered to be the best because it increases our spiritual peace along with the mental peace.
In our brain, thoughts come and go in form of vibrations but when we practice tratak then we recover 70% of energy lost by inflow and outflow of thoughts. This is because now we are trying to stabilize our eyes rather than catching our thoughts. If you will try then you will know that as compared to thoughts, stabilizing eye-balls is very easy and effective too. And it is activity experienced not only once but thousands of times that as your eye-balls get stabilized …..Your mind comes under your control. And we come to know about it by seeing dot present in the middle of Shakti Chakra getting stabilized.
Tratak can be done in two ways-
1)   External Tratak
2)   Internal Tratak
In external Tratak, you have to focus your attention on not present in the middle of Shakti chakra by which you learn the art of controlling your thoughts at the spiritual level and at the materialistic level, your eyes attain capability to hypnotize anyone.
In internal Tratak, you have to focus your attention on aagya Chakra…..and for it you have to focus your eyes balls in middle of two eyebrows. You may feel a little bit of pain in starting days. After successfully accomplishing this tratak, on one hand, your aagya chakra starts vibrating….and on the other hand, you attain the eligibility to do Kaal Vikhandan sadhna.
On the physical plane, regular practice of tratak increase your capability of thinking and comprehension multiple times and destroys negative energy present inside you…..Just you have to always keep in mind one thing that whenever practice of Tratak should be done in a peaceful environment. That’s why morning time is considered to be the best.
Mantra given here will help you in quickly attaining success in Tratak procedure. But mantra will work with competence only when you will regularly do the practice of this procedure that too for only 10-15 minutes. You just have to sit peacefully and do gunjaran of the below mantra given by Sadgurudev for 10-15 minutes. It will activate Sushumana and make the attainment of aim very easy.
OM KLEEM KLEEM KREEM KREEM HUM HUM PHAT



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योग शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में नाड़ियों के गुच्छों के रूप में सात चक्र स्थापित हैं जिन्हें सुप्त अवस्था में रहने देना है या जागृत करके उनसे मिलने वाले लाभों से खुद के जीवन को संवारना है यह स्वत: हम पर निर्भर करता है....यह बात हर उस आम व्यक्ति पर लागू होती है जिसे साधनाओं से कोई लेना देना नहीं होता पर जो व्यक्ति अपने जीवन में साधनाएं करते हैं वो जानते हैं की इन चक्रों की उन्के साधनात्मक जीवन में क्या महत्ता है|
वैसे तो हर चक्र का अपना एक विशेष महत्व है पर हमारे भूमध्य में स्थित आज्ञाचक्र का हमारे साधनात्मक जीवन से बड़ा लेनादेना है और वो इसलिए क्योंकि यह चक्र हमारी आँखों के बिलकुल मध्य में स्थित है जहाँ तीसरा नेत्र स्थापित होता है और साधना में आप कितनी तल्लीनता से बैठे हैं या आपका ध्यान कितना भटक रहा है ये सारा खेल यहीं से शुरू होता है ....पर यदि आपको याद हो तो मन से संबंधित लेख में हमने एक बहुत गुढ़ तथ्य को समझा था की –
     “ यदि भ्रम से बचना है तो भ्रम से होने वाले फायदों और नुक्सान को तिलांजली दे दो “
इस कथन का सरल सा अर्थ यह है की वो चीज़ जिसे आप जानते हो की नहीं है उसके पीछे भागना व्यर्थ है .....पर साधना के समय ऐसा नहीं हो पाता.....उस समय तो हमारी मानसिक स्थिति ऐसी होती है जैसे ईश्वर ने समस्त ब्रह्मांड का दायितत्व हमारे कंधो पर ड़ाल दिया हो और यह स्थिति तब तक ज्यों की त्यों रहती है जब तक हम साधना से उठ नहीं जाते, ऐसा होता है यह हम सब जानते हैं पर क्यों होता है इस पर यदा-कदा ही विचार करते हैं| पर असल में यह कभी-कभी नहीं बल्कि रोज विचारने वाला विषय है क्योंकि साधना या मंत्र जाप करने का अर्थ होता है की वो समय हमारा और हमारे इष्ट का है पर उस समय में भी अगर हम ज़माने भर की बातें सोच रहे हैं तो उससे अच्छा है हम आसन पर बैठे ही नहीं क्योंकि मात्र माला चला लेने से, या आँखें मूंद कर बैठ जाने से कोई भगवान कभी खुश नहीं होते ......और साधना में हमारी ऐसी दशा का कारण होता है हमारा मन ......क्योंकि   
 “ जो ज्ञानी होते है वो जानते हैं की मन ना तो भरोसेमंद मित्र है और ना ही आज्ञाकारी सेवक, हम इसे निर्देशित तो कर सकते हैं पर नियंत्रित कदापि नहीं “
.....पर जो सिद्ध सन्यासी होते हैं उनके साथ उनका मन ऐसा खेल कभी नहीं खेलता क्योंकि वो इस तथ्य से पूर्णतः परिचित होते हैं की असल में मन जैसी कोई चीज होती ही नहीं....यह सिर्फ एक भ्रम है, छलावा है और अगर विज्ञान की दृष्टि से इस बात की पुष्टि की जाए तो आपको चिकित्सक कभी किसी ऐसे शारीरिक अंग के बारे में नहीं बताएंगे जिसका नाम “ मन “ हो क्योंकि ऐसा कुछ होता ही नहीं है|
 हमारे मस्तिष्क से निकलने वाली एक विशेष प्रकार की ऊर्जा या यूँ कहें की तरंग को हमने मन का नाम दे दिया है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं हैं क्योंकि ऊर्जा हमेशा तब तक अनियंत्रित रहती है जब तक आपको उसका सदुपयोग समझ में ना आ जाये| हमारे अंदर निरंतर बनने वाली ऊर्जा को नियंत्रण में करने के लिए पहले हमें इसके मूल को समझना पड़ेगा जहाँ से इस ऊर्जा का निर्माण होता है|
......हम शरीर में सत, रज, और तम तीनों गुण कम या अधिक अनुपात में मौजूद हैं और हमारे मन या विचारों की गति और कार्य करने की क्षमता इन तीनों गुणों से हमेशा प्रभावित होती है और जिस समय आपके अंदर जिस गुण की प्रधानता होगी उस समय मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा, जिसे हमने मन का संबोधन दिया है, उसी तरफ जायेगी क्योंकि यह एक प्राकृतिक नियम है की ऊर्जा का प्रवाह हमेशा शक्ति के घनत्व की तरफ ही होता है और यही कारण है की हम हमेशा एक जैसे काम कभी नहीं करते.....कभी हम साधू होते है तो कभी.....
साधना में मन या अपने विचारों को स्थिर रखने के लिए ध्यान मार्ग, योग मार्ग इत्यादि में हजारों तरीके बताए गए हैं पर उन सब विधियों से उपर अगर कोई शक्ति या क्रिया है जो आपको अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर करती सकती है...तो वो हैं आप खुद हो क्योंकि आपको आपसे ज्यादा अच्छे से ओर कोई नहीं जानता| इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की आपने आज तक अपने विचारों को एकाग्र करने के लिए किन-किन नियमों का पालन किया है क्योंकि आपके द्वारा किये गए सारे क्रिया कलाप व्यर्थ हो जाते हैं जब तक आपकी आँखे स्थिर नहीं हो जाती ओर आँखों को स्थिर करने के लिए आपको खुद को थकाने की कोई जरूरत नहीं है....यदि किसी चीज़ की जरूरत है तो वो है खुद को दोष मुक्त करने की....
 हम सब यह तो जानते हैं की मन या विचारों को नियंत्रित करना अत्यंत दुष्कर है....पर हमें यह तथ्य भी पता होना चाहिए की चेतना कभी मलीन या दूषित नहीं होती, ये तो हमारी आत्मा की एक तरंग है जिसे हमें बस सही दिशा दिखानी होती है और इस चेतना को हम सही दिशा तभी दिखा पायेंगे जब हमें इसका सही मार्ग पता हो| हठयोग में ६ तरह की अलग – अलग क्रियाएँ बताई गयी हैं जिनमें सेत्राटक को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह हमारी मानसिक शान्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक शक्ति को भी बढ़ाता है|
हमारे मस्तिष्क में तरंगों के रूप में विचार हमेशा आते-जाते रहते हैं पर जब हम त्राटक का अभ्यास करते हैं तो इन विचारों के आने जाने से शतिग्र्स्त होने वाली ऊर्जा का ७० प्रतिशत हम पुन्ह: प्राप्त कर लेते हैं और वो इसलिए क्योंकि अब हमारी दौड़ विचारों को पकड़ने की ना होकर आँखों को स्थिर करने की है और यदि आप कोशिश करेंगे तो आप जानेंगे की विचारों की तुलना में आँखों की पुतलियों को स्थिर करना ज्यादा सहज भी है और कारागार भी| और यह एक बार नहीं हजारों बार अनुभूत की गयी क्रिया है की जैसे ही आपकी आँखों की पुतलियाँ स्थिर होती हैं...आपका मन भी आपके नियंत्रण में आ जाता है और इसका पता हमें चलता है शक्ति चक्र के मध्य में स्थित बिंदु के स्थिर हो जाने से|
 त्राटक दो तरीकों से किया जा सकता है-
१) बाह्य त्राटक
२) आंतरिक त्राटक
बाह्य त्राटक में आपको अपना ध्यान शक्ति चक्र के मध्य में स्थित बिंदु पर केंद्रित करना होता है जिससे आध्यात्मिक स्तर पर आप अपने विचारों पर नियंत्रण करने की कला सीखते हो और भौतिक स्तर पर आपकी आँखों में स्वत: ही किसी को भी सम्मोहित करने की क्षमता पैदा हो जाती है|
आंतरिक त्राटक में आपको अपने आज्ञाचक्र पर ध्यान केंद्रित करना होता है....और इस क्रिया में आपको अपनी आँखों की पुतलियों को भूमध्य में केंद्रित करना पड़ता है जिससे शुरूआती दिनों में थोड़ा दर्द हो सकता है| इस त्राटक को सफलतापूर्वक करने से जहाँ आपके आज्ञाचक्र में स्पंदन होना शुरू हो जाता है.....वहीँ आप काल विखंडन साधना को करने की पात्रता भी अर्जित कर लेते हो|
भौतिक स्तर पर त्राटक का नियमित अभ्यास आपके सोचने, समझने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है और आपने अंदर नाकारात्मक ऊर्जा को नष्ट भी करता है.....बस आपको एक बात हमेशा ध्यान में रखनी है की आप जब भी त्राटक का अभ्यास करो तो आपके चारों तरफ शान्ति हो और इसीलिए सुबह का समय इसके लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है|
 यहाँ दिया गया मंत्र त्राटक की इस क्रिया में शीघ्रातिशीघ्र सफल होने में आपकी सहायता करेगा पर मंत्र अपना काम तभी दक्षता से करेगा जब आप नियमित रूप से इस क्रिया का अभ्यास करेंगे वो भी बस १० से १५ मिनट तक|  आपको मात्र शांत बैठ कर सदगुरुदेव प्रदत्त निम्न मंत्र का १०-१५ मिनट गुंजरन करना है.ये सुषुम्ना को जाग्रत कर आपके लक्ष्य प्राप्ति को सरल और सुगम कर देता है.
ॐ क्लीं क्लीं क्रीं क्रीं हुं हुं फट् ||
(OM KLEEM KLEEM KREEM KREEM HUM HUM PHAT)

Friday, April 21, 2017

Mahakaal Mahima by Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali)

In this pravachan Gurudev (Dr. Narayan Dutt Shrimali) talks about how we can take control devtas by mantras and further he also gives mahakaal vivechan and the importance of 'Kaal' (samay) in our lives 

Finally at the end gurudev declares that if he equal to Krishna and Buddha 




Tuesday, May 31, 2016

kary siddhi saflta saraswati sadhana कार्य सिद्धि सफलता की साधना व् उपाय



Note - इंटरव्यू में सफलता की साधना व् उपाय
*********************** 🙏नवरात्र में किसी भी दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सफेद रंग का सूती आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस पर बैठ जाएं। अब अपने सामने पीला कपड़ा बिछाकर उस पर 108 दानों वाली स्फटिक की माला रख दें और इस पर केसर व इत्र छिड़क कर इसका पूजन करें।
इसके बाद धूप, दीप और अगरबत्ती दिखाकर नीचे लिखे मंत्र का 31 बार उच्चारण करें। इस प्रकार 11 दिन तक करने से वह माला सिद्ध हो जाएगी। जब भी किसी इंटरव्यू में जाएं तो इस माला को पहन कर जाएं। ये उपाय करने से इंटरव्यू में सफलता की संभावना बढ़ सकती है।
मंत्र:----
ऊँ ह्लीं वाग्वादिनी भगवती मम कार्य सिद्धि कुरु कुरु फट् स्वाहा।


- बरकत बढ़ाने का उपाय 
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नवरात्र में किसी भी दिन सुबह स्नान कर साफ कपड़े में अपने सामने मोती शंख को रखें और उस पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बना दें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जाप करें-
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
- मंत्र का जप स्फटिक माला से ही करें।
- मंत्रोच्चार के साथ एक-एक चावल इस शंख में डालें।
- इस बात का ध्यान रखें की चावल टूटे हुए ना हो। इस प्रयोग लगातार नौ दिनों तक करें।
- इस प्रकार रोज एक माला जाप करें। उन चावलों को एक सफेद रंग के कपड़े की थैली में रखें और 9 दिन के बाद चावल के साथ शंख को भी उस थैली में रखकर तिजोरी में रखें। इस उपाय से घर की बरकत बढ़ सकती है। -----(वास्तु दोष दुर करे ) ------ ******************* लाल रंग का रिबन घर के मुखय द्वार पर बांधे। इससे घर में सुख समृद्धि आती है और कैसा भी वास्तु दोष हो वह दूर हो जाता है लेकिन किसी शुभ मुहूर्त में रिबन बांधें। ---------- ॐ ह्री नम: मंत्र ---------- का 9 दिन मे 108 माला का जप करे !
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Saturday, May 14, 2016

Baglamukhi Jayanti बगलामुखी जयन्ती

बगलामुखी जयन्ती
14 मई 2016
बगलामुखी साधना
बगलामुखी दीक्षा शक्तिपात
शत्रुविनाशिनी त्रैलोक्य स्तम्भिनी तंत्र विस्तारिणी
जीवन में अमृतत्व प्राप्ति में चार बड़े विष हैं, जिनके रहते जीवन में आनन्द आ ही नहीं सकता, ये जीवन के चार विष हैं – 1. शत्रु बाधा, 2. कलह, 3. तिरस्कार, 4. भय।
ये चारों स्थितियां विष हैं, और विष को अपने आप से दूर करने का, इस विष को नष्ट करने का एक मात्र उपाय है – ‘गुरु कृपा से बगलामुखी सिद्धि’।
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भगवती बगलामुखी के ध्यान से स्पष्ट हो जाता है कि बगलामुखी अमृतत्व प्राप्ति के मार्ग में आने वाले शत्रु, कलह, तिरस्कार और भय (विष रूपी) को पूर्ण रूप से समाप्त कर देती हैं। देवी विरोधियों – शत्रुओं की वाणी एवं बुद्धि को ही कुंठित कर देती है, जिससेशत्रु आपके प्रति षड्यंत्र नहीं कर सकते। वाणी का कीलन एवं बुद्धि का नाश कर देने से शत्रु आपके जीवन में बाधाएं, कलह एवं समस्याएं उत्पन्न नहीं कर सकते। बगलामुखी शत्रुओं की प्रगति, उन्नति ही समाप्त कर देती है। शत्रु पक्ष उसके भक्तों का तिरस्कार नहीं कर सकता और भय पैदा करने वाले शत्रुओं को अपने प्रहार से चूर-चूर कर समाप्त ही कर देती है अर्थात् मात्र बगलामुखी देवी की साधना-आराधना द्वारा जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं को समाप्त कर आनन्द एवं प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है।
बगलाशक्ति का मूल सूत्र है ‘अथर्वा प्राण सूत्र’। ये प्राण सूत्र प्रत्येक प्राणी में सुप्त अवस्था में होता है और सिद्धि द्वारा इसे चैतन्य किया जा सकता है। जब यह सूत्र जाग्रत हो जाता है, तो व्यक्ति अपने जीवन में स्तम्भन, वशीकरण और कीलन की शक्ति प्राप्त कर सकता है।
ब्रह्मास्त्र की अचूक क्षमता का बल तथा शत्रुओं को सहज ही स्तम्भित कर देने का प्रभाव लिए ही तो अवतरित होती हैं पीताम्बरा देवी अपने साधक के जीवन में। स्वर्ण आसन पर स्वर्णिम आभा के साथ आसीन, पीत वस्त्रों को धारण किए, मस्तक पर चन्द्रमा को धारण करने वाली त्रिनेत्री देवी बगलामुखी का तो सम्पूर्ण स्वरूप ही मातृमय है। साधक के लिए तो ये देवी मातृमय स्वरूप हैं।
शत्रुनाशिनी श्री बगलामुखी का परिचय भौतिकरूप में शत्रुओं का शमन करने की इच्छा रखने वाली तथा आध्यात्मिक रूप में परमात्मा की संहार शक्ति हैं। पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।
दस महाविद्याओं में भी बगलामुखी के बारे में विशेष लिखा गया है और कहा गया है कि यह शिव की त्रि-शक्ति है –
सत्य काली च श्री विद्या कमला भुवनेश्‍वरी।
सिद्ध विद्या महेशनि त्रिशक्तिबर्गला शिवे॥
तंत्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।
सांख्यायन तंत्र के अनुसार कलौ जागर्ति पीताम्बरा अर्थात् कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीताम्बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त मानव मां पीताम्बरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकता है।
बगलामुखी – ब्रह्मास्त्र
तंत्र में वही स्तम्भन शक्ति बगलामुखी के नाम से जानी जाती है। जिसे ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक या पारलौकिक देश अथवा समाज में अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के मंत्र के समान कोई मंत्र फलदायी नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं।
यह महारुद्र की शक्ति हैं। इस शक्ति की आराधना करने से साधक के शत्रुओं का शमन तथा कष्टों का निवारण होता है। यों तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, परंतु विशेष रूप से युद्ध, विवाद, शास्त्रार्थ, मुकदमे, और प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, अधिकारी या मालिक को अनुकूल करने, अपने ऊपर हो रहे अकारण अत्याचार से बचने और किसी को सबक सिखाने के लिए बगलामुखी देवी का वैदिक अनुष्ठान सर्वश्रेष्ठ, प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। असाध्य रोगों से छुटकारा पाने, बंधनमुक्त होने, संकट से उबरने और नवग्रहों के दोष से मुक्ति के लिए भी इस मंत्र की साधना की जा सकती है।
बगलामुखी साधना शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की साधना है। साधना की प्रचण्डता और तीव्रता इतनी अधिक है, कि साधक जिस किसी को भी शत्रु मानता हो, उस पर उसे विजय प्राप्त होती ही है। यह आवश्यक नहीं कि शत्रु कोई व्यक्ति ही हो, जो भी व्यक्ति अथवा परिस्थिति आपके तनाव का कारण है, वही आपके शत्रु हैं।
यदि आपके किसी शत्रु ने आप पर तंत्र प्रयोग करवाया हो, तो भी इस साधना से वह बाधा समाप्त हो जाती है। बगलामुखी अपने साधक के शत्रुओं के सभी प्रयासों को निष्फल कर देती हैं।
इनकी आराधना मात्र से साधक के सारे संकट दूर हो जाते हैं, शत्रु परास्त होते हैं और श्री वृद्धि होती है। बगलामुखी का जप साधारण व्यक्ति भी कर सकता है, लेकिन इनकी तंत्र उपासना किसी योग्य व्यक्ति के सान्निध्य में ही करनी चाहिए।
कलियुग में आसुरी शक्तियों के बढ़ जाने से अशांति व अनेक उत्पात हो रहे हैं। इनके नाश व दुष्टों का स्तम्भन करने में श्री पीताम्बरा की उपासना करना ही श्रेष्ठ है।
बगलामुखी – स्तम्भन शक्ति
बगलामुखी महाविद्या दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या, षड्कर्माधार विद्या, स्तम्भिनी विद्या, त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माता बगलामुखी साधक के मनोरथों को पूरा करती हैं। जो व्यक्ति मां बगलामुखी की पूजा-उपासना करता है, उसका अहित या अनीष्ट चाहने वालों का शमन स्वतः ही हो जाता है। मां भगवती बगलामुखी की साधना से व्यक्ति स्तंभन, आकर्षण, वशीकरण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन आदि के साथ अपनी मनचाही कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ होता है।
शत्रु बाधा से पीड़ित व्यक्ति का चिन्तन, मनन, उसकी दिनचर्या सभी कुछ प्रभावित हो जाता है। वह निर्भयतापूर्वक आचरण नहीं कर सकता, वह मुक्त पक्षी की तरह नील गगन में नहीं उड़ सकता। वह हर पल, हर क्षण इसी चिन्तन में खोया रहता है कि किस प्रकार अपनी इस बाधा को समाप्त करे।
साधना और शक्तिपात समन्वय
अभी कुछ दिन पहले मैंने गुरुदेव से संकोच करते हुए पूछा कि – हे गुरुदेव! क्या कारण है कि कुछ शिष्यों के सभी कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं और कुछ शिष्यों के कार्य समय पर पूर्ण नहीं होते। आप सब पर अपनी विशेष कृपा क्यों नहीं करते हैं?
गुरुदेव ने कहा कि – ईश्‍वरीय कृपा दृष्टि तो सब पर समान रहती है। व्यक्ति अपने प्रारब्ध से दुःख उठाता है एवं सुख भोगता है लेकिन जो व्यक्ति शिष्य बनता है वह भी कई बार गलतियां कर बैठता है। शिष्य जिस दिन गुरु धारण करता है उसे दो बातें अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए और ये दो बातें है – शक्तिपात दीक्षा और साधना।
इन दोनों में निरन्तर समन्वय होना चाहिए, जो साधक केवल साधना के मार्ग पर ही चलता है और समय-समय पर गुरु से शक्तिपात प्राप्त नहीं करता है तो उसके कार्य पूर्ण तो होते हैं लेकिन समय पर पूर्ण नहीं हो पाते, इसलिये उसके मन में निराशा, हताशा आ जाती है। इसी प्रकार कोई शिष्य गुरु से शक्तिपात तो प्राप्त करता है लेकिन मंत्र जप साधना के मार्ग पर नहीं चलता है तो गुरु द्वारा प्रदान किये गये, वरदान स्वरूप शक्तिपात का वह उचित उपयोग नहीं कर पाता। इसलिये प्रत्येक शिष्य के साधनात्मक जीवन में साधना एवं शक्तिपात दोनों तत्व का समायोजन होना चाहिए। यह प्रारम्भिक अवस्था वाले शिष्यों के लिये भी आवश्यक है और कई-कई वर्षों से जुड़े प्रौढ़ वृद्ध शिष्यों के लिये भी।
गुरु तो शिव समान पीड़ा हरते है
शिष्य के जीवन में हजारों पी़ड़ाएं हैं और उसमें इतनी शक्ति नहीं होती कि वह संसार की बाधाओं पर अपनी शक्ति से विजय प्राप्त कर ले। आलेख के प्रारम्भ में जो बाधाएं लिखी हैं वो हर व्यक्ति जीवन में किसी न किसी रूप में भोगता है और इसी कारण उसे कई बार विचार आता है कि ‘क्या यह जीवन अभिशाप है या वरदान?’ यह कहा जाता है कि लाखों योनियों के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है तो फिर इस मनुष्य योनि में इतना दुःख और पीड़ा क्यों? इन्हीं प्रश्‍नों का समाधान और अपने जीवन की पीड़ा को समाप्त करने के लिये साधक-शिष्य ईश्‍वर की शरण में जाता है, शक्तियों का स्मरण करता है, उसी रूप में उसे जीवन में गुरु भी मिलते हैं।
गुरु द्वारा शक्तिपात से विष समाप्त होता है और अमृत शक्ति जाग्रत होती है, इसका आधार बगलामुखी है। सारी वृत्तियों को बगलामुखी साधना तेजस्वी बना देती है और जब साधक निर्भीक बनता है तो फिर रोता नहीं है, हाथ नहीं जोड़ता, गिड़गिड़ाता नहीं क्योंकि उसका सारा शरीर चैतन्य हो जाता है एवं उसका रोम-रोम ऊर्जा का पुंज बन जाता है। बगलामुखी शक्ति साधक में ऊर्जा का प्रवाह करती है।
सद्गुरु भी अपने शिष्यों, साधकों को अमृत पान कराते हैं, वे (सद्गुरु) शिष्यों के जीवन से विष को निकालकर उनको आनन्द, मस्ती और ऊर्जा से आपूरित कर देते हैं, उनके जीवन में अमृत तत्व का संचार कर देते हैं, जिससे उनकी रुकी हुई नाव पुनः सांसारिक समुद्र में आगे बढ़ने लगती है। जीवन के मार्ग में आने वाली बड़ी बाधाओं में एक बाधा है – शत्रु बाधा।
यदि घर-परिवार में आपसी कलह है, सामंजस्य नहीं है, एक दूसरे की बात को समझ नहीं पा रहे हैं तो यह भी जीवन की एक विशेष बाधा कारक स्थिति है। इस बाधा का भी शत्रु बाधा की तरह निवारण आवश्यक है।
शरीर मन के कहने में नहीं है और मन शरीर के कहने में नहीं है तो यह भी जीवन की शत्रुता है। रोग रूपी शत्रु यदि आपके शरीर पर अधिकार जमाना चाहते हैं तो उनका मर्दन-मारण आवश्यक है। यदि चिन्ता रूपी शत्रु आपके मन बुद्धि पर अधिकार जमा रहे हैं तो उनका स्तम्भन, कीलन भी आवश्यक है। आप अपने कार्य में जितना प्रयास करते हैं, उसका आधा फल भी नहीं मिलता है तो यह भी एक बाधा है जो शत्रुता का विकराल रूप लेकर खड़ी है।
गुरुदेव ने कहा कि इन सब विपरीत स्थितियों का पूर्ण रूप से मारण होना चाहिए। ये जो बाधाएं हैं, वे जड़ मूल से समाप्त होनी चाहिए। इसके लिये हर मनुष्य, हर साधक में बाधा को स्तम्भन करने की, कीलन करने की और विनाश करने की क्षमता का पूरा विकास होना चाहिए। यह क्षमता बगलामुखी क्रिया से पूर्णतया विकसित हो सकती है।
गुरु अमृत देते है
गुरु को शिव की संज्ञा दी गई है क्योंकि शिव का स्वरूप ही इस जगत के हलाहल विष को अपने पास सीमित रख कर अपने भक्तों का उद्धार और उन्हें पीड़ा से मुक्ति दिलाना है। शिष्य भी गुरु के पास इसी आशा और विश्‍वास से पहुंचता है कि मुझे गुरु कृपा से जीवन संघर्ष में विजय प्राप्त हो।
गुरु शिष्य की पीड़ा को अपने ऊपर लेते हुए उस पीड़ा के हलाहल विष को ग्रहण करते हुए, उसे अपनी शक्ति प्रदान करते हैं। गुरु द्वारा शिष्य के विष का हरण उसके जीवन से पीड़ा रूपी विष निकाल कर अमृत का सिंचिकरण क्रिया ही दीक्षा कहलाती है। दीक्षा का सीधा अर्थ है – ‘शक्तिपात’। जहां शक्ति का तीव्र गति से प्रवाह होता है, वहां बाधा और पीड़ा मन और तन दोनों से निकल जाती है। जब बाधा-पीड़ा निकल जाती है तो रोम-रोम में अमृत का प्रवाह सम्पन्न होता है।
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मैं तो तंत्र को कुछ भी नहीं मानता था लेकिन जब मेरे ऊपर भयंकर प्रहार हुआ और तीन महीने के अन्दर ही मेरी स्थिति एकदम खराब हो गई तो मैं विचार करने लगा कि ऐसा कैसे हुआ? क्या ऐसा भी हो सकता है? ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ? ऐसा मेरे साथ किसने किया?
गुरुदेव से सम्पर्क होने पर गुरुदेव ने कहा कि तुम बाकी सारे प्रश्‍नों पर विचार मत करो। कब, क्यों और कैसे को छोड़ो, तुम्हें केवल यह विचार करना है कि अब तुम्हें क्या करना है। मैंने बगलामुखी साधना और दीक्षा प्राप्त की अब मुझे किसी प्रकार के प्रश्‍न सताते नहीं है। मैं कर्म पथ पर चल रहा हूं। सफलता तो निरन्तर मिल रही है।
– साधक
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धन के लिये कोई इतनी धोखधड़ी कर सकता है इसकी मुझे कल्पना नहीं थी। जिस साथी को मैं अपना समझता था , सब कुछ जिसके नाम पर था उसी ने मेरा सबकुछ हड़प लिया और मुझे दीन-हीन बना दिया। शायद मेरे पूर्व जन्म का कोई सत्कर्म था कि किसी के कहने पर मैं सद्गुरु के पास पहुंचा और मुझे बगलामुखी दीक्षा प्राप्त हुई। अब मैं भीतर से इतना सबल हो गया हूं कि किसी से मिलकर यह स्पष्ट कह सकता हूं कि वह व्यक्ति मेरा है अथवा पराया है। व्यापार में कैसे काम किया जाता है, इसकी आन्तरिक समझ मुझे बगलामुखी दीक्षा के बाद ही प्राप्त हुई। – साधक
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गुरुदेव क्या मेरा जीवन ऐसे ही बाधा युक्त रहेगा? मैं जिस काम में भी हाथ डालता हूं वह काम पूर्ण नहीं हो पाता। क्या मेरा जीवन शापित है? मैंने तो इस जीवन में किसी का कुछ बुरा नहीं किया है? फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? क्या मेरे पूर्व जन्म के दोष इतने अधिक हैं?
गुरुदेव आपने अपने प्रवचन में कहा कि – मनुष्य के जीवन में बाधाएं तो निरन्तर आती रहती हैं और जो बाधाओं से घबराकर हार मान लेता है, उसका जीवन वहीं रुक जाता है। आपके विचार ने मुझे शक्ति प्रदान की और मैंने निराशा को छोड़कर आपके नाम के सहारे मंत्र जप करता रहा। पिछले साल मैंने बगलामुखी साधना की और आपसे दिल्ली आकर दीक्षा भी प्राप्त की। आपने कहा कि सवा लाख मंत्र जप जरूर करना, एक दीक्षा ने मेरे जीवन को बदल दिया। मेरे जीवन में तो वास्तव में अब सूर्योदय हुआ है। अब मैं नियमित रूप से बगलामुखी मंत्र जप अवश्य करता हूं और शनिवार को बगलामुखी माला मंत्र भी जप करता हूं। बाधाएं अब भी आती है लेकिन उनका समाधान भी मिल जाता है। लोग कहते हैं कि मैं बाधाओं को समाप्त कर देता हूं लेकिन वास्तव में मैं जानता हूं कि आप गुरुदेव जी मुझे शक्ति प्रदान करते हैं और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। – साधक
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मैं जब उन्नति करता रहा, तो मैं यही समझता था कि, मैं इतना बुद्धिमान हूं और पांच साल में उन्नति के शिखर पर पहुंच गया लेकिन जब अवनति प्रारम्भ हुई तो ऐसी स्थिति हो गई कि – कोई पूछने वाला नहीं था, जिन्हें मैं अपना कहता था, अपना सोचता था उन्होंने ही सबसे पहले मुझसे मुख मोड़ा… आगे इतना ही कहूंगा कि – जब आपका सहारा मिला और आपसे बगलामुखी शक्तिपात प्राप्त हुआ तो मैं गिरा हुआ व्यक्ति पुनः अपने पैरों पर खड़ा हुआ और धीरे-धीरे पुनः उन्नति के मार्ग पर चलने लगा। – साधक
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जब कोई साधु, संन्यासी उपदेश देते और कहते, कि कोई तुम्हारा नहीं है। भाई-बहन, रिश्तेदार सब तुम्हारे सुख के साथी हैं। दुःख में कोई आड़े नहीं आयेगा तो मैं उनकी बातों को मजाक समझता लेकिन जब वास्तव में मेरे ही साथ हुआ तब मुझे इन शब्दों की सार्थकता समझ में आयी। तब मैं अकेला पड़ गया और अकेला भागता रहा। गुरु चरणों में शरण मिली,गुरु ने कहा कि – तुम बगलामुखी साधना करो और गुरुदेव ने मुझे दीक्षा भी प्रदान की। मेरे जीवन में सब कुछ बदल गया, मेरे रिश्तेदार तो नहीं बदलें लेकिन मैं बदल गया। मैंने अपने आपको पा लिया, जगत की वास्तविकता को समझ लिया। – साधक
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अच्छा भला शरीर एका-एक खराब हो सकता है, एक के बाद एक व्याधियां आ सकती हैं। ऐसा तो मैंने सोचा भी नहीं था। ऐसा लगता था कि बीमारियों ने मेरे शरीर को अपना घर बना लिया है और डॉक्टर ही मेरा भगवान बन गया है। किसी के कहने पर मुझे मार्ग मिला और मैं गुरु की शरण में पहुंचा, गुरु ने कहा बगलामुखी साधना… बगलामुखी साधना…
पहले अनमने मन से साधना की, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा। फिर छः महीने बाद गुरुदेव ने शक्तिपात दीक्षा प्रदान की और एक क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया। रोग चले गये और चेहरे का ओज पुनः लौट आया। ऐसा लगता है, मैं वापिस जवानी की ओर लौट रहा हूं। – साधक
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गुरुदेव मैंने बगलामुखी साधना तीन बार सम्पन्न की है लेकिन मुझे पूर्ण सफलता नहीं मिली है। साधना के दौरान बार-बार कोई शक्ति मुझे आकर कहती है कि – तुम्हें संस्कार प्राप्त करना चाहिये, मेरे विचार से संस्कार का अर्थ दीक्षा ही है और अब मैं आपसे बगलामुखी दीक्षा प्राप्त करना चाहता हूं लेकिन मेरी एक मजबूरी है, मैं अभी आसाम के जौरहट जिले में केन्द्रिय सेवा में कार्यरत हूं। जोधपुर अथवा दिल्ली आने जाने के लिये मुझे कम से कम 10 दिन चाहिये और इतनी छुट्टी मिलना मेरे लिये संभव नहीं है। मैं क्या करूं? कैसे करूं? मार्गदर्शन करें। लेकिन मेरा एक निश्‍चय पक्का है कि मुझे बगलामुखी दीक्षा प्राप्त करनी ही है। – साधक
ये सारे अनुभव, विचार साधकों के हैं, जिसे उन्होंने अपनी-अपनी भाषा में लिखा है। निखिल मंत्र विज्ञान कार्यालय में प्राप्त होने वाले पत्रों में दस-पन्द्रह पत्र तो नित्य प्रति बगलामुखी साधना, अनुभव से ही सम्बन्धित होते हैं। यह तो ऐसा मधुर फल है जिसने खाया है वही इसके गुण बता सकता है।
सभी साधकों के शरीर पर शक्तिपात का एकसमान असर हो यह जरूरी नहीं, कई बार एक ही दिन में दीक्षा प्राप्त करने वाले विभिन्न साधकों को भिन्न-भिन्न प्रकार के अनुभव होते हैं और ये अनुभव उन शिष्यों के पूर्व जन्मकृत संचित दोष कर्मों और इस जन्म के कर्मों पर आधारित है।
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बगलामुखी तांत्रोक्त शक्ति
ब्रह्मास्त्र की अचूक क्षमता का बल तथा शत्रुओं को सहज ही स्तम्भित कर देने का प्रभाव लिए ही तो अवतरित होती हैं – पीताम्बरा बगलामुखी देवी अपने साधक के जीवन में। इस महत्वपूर्ण साधना से जीवन में हर परिस्थिति पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। शत्रु बाधा समाप्त करने के लिए, तो यह साधना प्रचण्ड तूफान की तरह है।
बगलामुखी अत्यन्त तीव्र शत्रुहंता, दारिद्र्यहंता, समृद्धिप्रदाता एवं साधकों के लिए मातृ स्वरूपा हैं। दस महाविद्याओं में यह अपने आप में एक निराली साधना है और मेरा यह अनुभव रहा है कि जिस व्यक्ति ने भी इस साधना को गुरुदेव से दीक्षा प्राप्त कर सम्पन्न किया है, उसके जीवन में सम्पूर्ण बाधाओं का निवारण हुआ ही है और उसनेे जीवन में नवीनता प्राप्त की है।
शत्रुओं पर हावी होने, बलवान शत्रुओं का मान-मर्दन करने, भूत-प्रेतादि को दूर करने, मुकदमों में सफलता पाने एवं समस्त प्रकार से उन्नति करने में बगलामुखी यंत्र श्रेष्ठतम माना गया है। योगियों, तांत्रिकों, मांत्रिकों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
आज ही निश्‍चय कर लें कि आपको बगलामुखी जयंती से पहले-पहले सैकड़ों हजारों नहीं, लाखों की संख्या में मंत्र जप करना है। इसके लिये पूजन भी आवश्यक है और यह पूजन गुरुदेव द्वारा प्रदत्त प्राणप्रतिष्ठित बगलामुखी यंत्र को स्थापित कर किया जाए तो इसका चक्रवर्ती प्रभाव निराला ही बनेगा। आप सबको यह बगलामुखी दीक्षा प्राप्त करनी है और मैं आपसे फिर कहता हूं कि आपको बगलामुखी मानस दीक्षा-पूजन की क्रिया पूर्ण विधि-विधान सहित सम्पन्न करनी है।
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बगलामुखी मानस शक्तिपात
सद्गुरु द्वारा मानस दीक्षा
आप सभी साधकों-शिष्यों को यह जानकारी देते हुए हर्ष हो रहा है कि इस बार बगलामुखी जयन्ती (14 मई 2016) के शुभ अवसर पर आप सभी को गुरुदेव जी बगलामुखी पीताम्बरा साधना मानस शक्तिपात दीक्षा प्रदान करेंगे। इस शक्तिपात हेतु आपको विशेष तैयारी करनी है, विशेष मंत्र जप करना है, अपने पूजा स्थान में ये विशेष व्यवस्था करनी है, विशेष साधना सामग्री तांत्रोक्त बगलामुखी पीताम्बरा यंत्र स्थापन करना है। तांत्रोक्त तीव्र स्पन्दन युक्त शक्तिमाला से मंत्र जप करना है, गुरुदेव द्वारा प्रवाहित तरंगों को अपने मानस में ग्रहण करना है, अपने जीवन से शत्रुबाधा कलह तिरस्कार और भय को समाप्त करने का संकल्प लेना है। यह दिन बगलामुखी साधना का दिवस है, यह दिवस आपके और गुरु के आत्मिक मिलन का दिवस है। इसके प्रत्येक क्षण को जीना है और बगलामुखी शक्ति को गुरु कृपा से अपने रोम-रोम में स्थापित करना है।
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Part IIबगलामुखी जयन्ती
14 मई 2016
वैशाख शुक्ल अष्टमी
विशेष क्रिया
तीव्र शक्तिपात
मानस स्पन्दन – शक्ति जागरण
बगलामुखी दीक्षा
साधना – दीक्षा काल – प्रातः 7.16 बजे से 8.56 तक
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*** पूज्य गुरुदेव दिनांक 14 मई 2016 को बगलामुखी जयन्ती पर बगलामुखी मानस दीक्षा प्रदान करेंगे।
*** आपको बगलामुखी साधना में सफलता प्रदान कराने हेतु गुरुदेव ने विशेष बगलामुखी महायंत्र एवं बगलामुखी पीताम्बरा माला को शक्ति सम्पुटित एवं प्राणप्रतिष्ठित किया है।
*** बगलामुखी महायंत्र की साधना का सरल एवं स्पष्ट विधान स्वयं गुरुदेव ने प्रतिपादित किया है।
*** बगलामुखी महायंत्र साधना-पूजन – दिनांक 14 मई 2016 को प्रातः 7:00 के बाद गुरुदेव द्वारा प्रदत्त विधान (जो कि आपको साधना पैकेट के साथ प्राप्त होगा) से पूजन-साधना प्रारम्भ करनी है।
*** एक बार इस मुहूर्त में पूजन प्रारम्भ करने के पश्‍चात् शांत भाव से पूजन करते रहे, पूजन, मंत्र जप से अपने आपको चैतन्य बनाएं। इसी काल के दौरान गुरुदेव का स्पर्श आपको अपने ललाट भौहों के मध्य अर्थात् मस्तक पर अनुभव होगा, इस स्पर्श को अपने भीतर उतारते हुए बगलामुखी महायंत्र साधना-पूजन सम्पन्न करें।
*** बगलामुखी महायंत्र की साधना सम्पन्न करने के पश्‍चात् अपने स्थान पर शांति से बैठे रहें और अपने दोनों हाथों में बगलामुखी पीताम्बरा माला लेकर प्रार्थना मुद्रा में बैठ जाएं तथा शांत मद्धम स्वर में बगलामुखी बीज मंत्र (ॐ ह्लीं ॐ… ॐ ह्लीं ॐ… ॐ ह्लीं ॐ…) का उच्चारण करते रहें। मंत्र उच्चारण के समय अपने नेत्रों को बंद कर लें और अपने सहस्रार चक्र में गुरुदेव के मानस विग्रह का ध्यान करें।
*** मंत्र जप के समय साधक अपने चारों ओर एक ऊर्जा चक्र को अनुभव करता है। नियमित रूप से मंत्र जप करते रहें, चारों ओर बाह्य जगत में जो भी क्रिया हो रही है उसे होने दें। अपने ध्यान को एकाग्रचित्त रखें और मंत्र जप प्रक्रिया चलने दें। कुछ समय बाद होठों से मंत्र जप क्रिया न होकर मानस से मंत्र जप क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस क्रिया को भी होने दें। जब पूर्ण रूप से बगलामुखी शक्ति से और गुरुदेव से आपका सामंजस्य स्थापित हो जाए तब तक यह क्रिया करते रहें, उसके बाद पुनः धीरे-धीरे अपने वर्तमान में आएं। यह क्रिया पांच मिनट से 50 मिनट तक की हो सकती है। आप साक्षीभाव से अनुभव करते हुए शक्ति के वर्तुल (चक्र) को अपने चारों और घूमते हुए अपने शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को अनुभव करें।
*** दीक्षा मंत्र जप की पूर्णता के पश्‍चात् तीन बार ॐ का उच्चारण कर थोड़ा जल ग्रहण कर लें और गुरु आरती सम्पन्न करें।
*** दीक्षा के पश्‍चात् पीताम्बरा माला को गले में धारण कर लें तथा महायंत्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें।
*** दीक्षा काल में पूज्य गुरुदेव द्वारा मानसिक तरंगों का प्रवाह प्रत्येक साधक पर अलग-अलग हो सकता है, आप किसी भी स्थिति में घबराएं नहीं। बगलामुखी तीक्ष्ण शक्ति है, इसके अनुभव कुछ विलक्षण प्रकार के हो सकते हैं। आप बस शांत भाव रखें, साक्षी भाव रखें, किसी प्रकार का आवेश एवं उग्रता न लाएं। आप न तो किसी भाव से जुड़ें, न ही किसी विचार के प्रति उत्साह दिखाएं, न ही घृणा आदि के भाव रखें, एक दृष्टा की भांति अपने मन में आने वाले सभी विचारों, दृश्यों को साक्षी भाव से देखते रहें।
दीक्षा के सम्बन्ध इन में बातों का विशेष ध्यान रखें –
+ दीक्षा हेतु गुरु शक्ति आपूरित बगलामुखी महायंत्र एवं बगलामुखी पीताम्बरा माला को समय पर प्राप्त कर, सुरक्षित स्थान पर रख दें।
+ साधना एवं दीक्षा काल में अपने स्थान से यथा संभव उठें नहीं।
+ शांत एवं स्वच्छ स्थान पर साधना – दीक्षा सम्पन्न करें।
+ दोनों दीक्षा मुहूर्तों पर शुद्ध एवं सात्विक भोजन ग्रहण करें।
+ यह साधना एक ही समय में हजारों-हजारों साधकों द्वारा सम्पन्न किए जाने के कारण पूरे वातावरण में ऊर्जा का तेज व्याप्त हो जाएगा, उस ऊर्जा के वेग से घबराएं नहीं दृष्टा भाव से केवल देखते रहें और मंत्र जप करते रहें।
विशेष ध्यान दें –
*** इस वर्ष बगलामुखी दीक्षा हेतु ‘चैत्र नवरात्रि 2016 में गुरुदेव द्वारा प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी महायंत्र और माला’ को ही अपने पूजा स्थान में स्थापित करें और नवीन माला से ही मंत्र जप करें। पूर्ववर्ती माला एवं यंत्र का प्रयोग न करें।
*** बगलामुखी साधना दीक्षा का विस्तृत विधान साधकों को साधना सामग्री के साथ भेजा जाएगा, उसी अनुरूप साधकों को पूजन मंत्र जप सम्पन्न करना है।
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दीक्षा पैकेट प्राप्त करने का तरीका
+++ दीक्षा न्यौछावर रुपये 1500/- कार्यालय को प्राप्त होने के पश्‍चात् ही ‘बगलामुखी दीक्षा पैकेट’ भेजा जायेगा।
+++ इसके लिये ‘निखिल मंत्र विज्ञान’ के SBI Bank A/c. No. – 32677736690 अथवा Union Bank A/c. No. –310001010036403 में 3100/- रुपये जमा करा कर Pay-In-Slip जोधपुर कार्यालय को भेज दें।
+++ बगलामुखी दीक्षा प्राप्त करने हेतु पत्रिका कार्यालय में फोन (0291-2624081, 2638209) करें अथवा फैक्स (0291-5102540) अथवा e-mail – nmv.guruji@gmail.com पर मेल करें अथवा 9602334847 पर SMSभी कर सकते हैं। दीक्षा हेतु आप अपनी पत्रिका सदस्यता संख्या, अपना नाम, अपनी उम्र, अपने मोबाईल नम्बर आदि की जानकारी अवश्य दे दें।
+++ दीक्षा पैकेट प्राप्त करके ही आप बगलामुखी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
+++ दीक्षा पैकेट का न्यौछावर प्राप्त होने के पश्‍चात् कार्यालय से रजिस्टर्ड पार्सल अथवा कूरियर सेवा द्वारा आपको दीक्षा पैकेट भेज दिया जाएगा।
+++ दीक्षा के सम्बन्ध में विशिष्ट निर्देश आपको व्यक्तिगत रूप से कार्यालय द्वारा प्रदान किये जायेंगे।
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Baglamukhi Jayanti

May 14, 2016
Baglamukhi Sadhana
Baglamukhi Diksha Shaktipaat Initiation
Shatruvinaashini
Treilokya Stambhini
Tantra Vistarini
There are Four major poisons which hinder Amritatva in life, which prevent joy from entering our lives, these four venoms of life are- 1. Enemy obstacle, 2. Discord, 3. Scorn, 4. Fear.
All of these four situations are poisonous, and the only method to remove this poison from yourself, to eliminate these toxins is – “Baglamukhi Siddhi through Guru Blessings
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The meditation on Bhagwati Baglamukhi clarifies that Baglamukhi completely eliminates the toxins of enemies, discord, contempt and fear; obstructing the path towards Amritatva. The Divine Mother binds the voice and intelligence of the enemies, so the foes cannot conspire against you. The immobilizing of their speech and destruction of their intelligence means that the foes cannot generate discord, problems or obstacles in your life. Baglamukhi terminates the progress or advancements of the foes. The opposing party cannot despise Her devotees and She shatters the fear-causing-foes with Her powers; i.e. one can lead a joyous and happy life simply by eliminating all problems and obstacles in life by performing Sadhana-worship of Mother Baglamukhi.
The basic philosophy of Baglamukhi is “Atharva Praana Sutra”. This Praana Sutra is present in dormant state in each person, and it can be energised through Sadhana Siddhi. When this Sutra activates, then the person can achieve the powers of restriction, hypnotism and immobilization in his life.
To provide the Divine energy and evident ability of Brahmastra, and to easily restrict the foes; are the reasons for Pitambari Goddess to incarnate in the lives of its Sadhaks. Seated on a Golden seat with a Golden halo, adorning yellow garments, holding the moon on the forehead, the entire form of Three eyed Goddess Baglamukhi is overly maternal. This Goddess is the mother form for the Sadhak.
The introduction of Foe-eliminating Shree Baglamukhi in physical sphere is as the one intending to suppress the enemy and in spiritual sphere is as the destructive power of the Divine Almighty. The Baglamukhi Sadhana famous as Pitambara Vidhya is generally performed to obtain freedom from fear of foes, and to obtain Clairvoyance powers.
There is a special description about Baglamukhi in the Ten Mahavidhyas, and it has been described as Triad-power of Lord Shiva –
Satya Kaali Cha Shree Vidhya Kamala Bhuvaneshwari |
Siddh Vidhya Maheshani TriShaktiBargala Shive ||
The Tantra Scriptures have also termed It as Brahmastra, Stambhini Vidhya, Mantra Sanjivani Vidhya, Praani Pragyapahaarka and Shatkarmadhaar Vidhya.
According to the Sakhyayan Tantra Kalou Jagarti Pitambara, i.e. Bhagwati Pitambara Sadhana has been considered as the best Sadhana to resolve the various crisis of Kaliyuga. Therefore a person stricken with various plagues-problems can fulfil all of his aspirations by achieving major supernatural Siddhis through Mother Pitambara Sadhana.

Baglamukhi – Brahmastra
The same restrictive power is known as Baglamukhi in Tantra. It is also known as “Brahmastra”. No other Mantra is as fruitful as Baglamukhi Mantra to mitigate troubles or to suppress enemies in terrestrial or extraterrestrial country or society. The Sadhaks have been seeking the shelter of this Mahadevi since times immemorial.
This is the power form of Maharudra. The worship of this Shakti leads to suppression of foes and resolution of grievances of the Sadhak. The worship of Baglamukhi Goddess worship provides success in all spheres, however Vedic Anusthaan of Baglamukhi Goddess is best effective and appropriate especially to obtain success in war, controversy, debate, trial and competition, favourably influencing the officer or owner, to escape unprovoked prosecution, and to teach a lesson to someone. The Sadhana of this Mantra can also be performed to get rid of incurable diseases, obtain emancipation, overcoming the crisis troubles and to overcome the malefic effects of the nine planets.
The Baglamukhi Sadhana is the Sadhana to achieve complete victory over the enemies. The intensity and strength of the Sadhana is so high, that the Sadhak definitely obtains victory over whomsoever he believes as his enemy. It is not important that the enemy has to be a person, whatever person or situation causing stress to you, is your foe.
If any of your foes has performed any black magic on you, even that gets eliminated through this Sadhana. Baglamukhi renders all efforts of Her Sadhak’s foes to failure.
All the troubles of Sadhak vanishes by worshipping Her, the enemies get defeated and Shree wealth increases. Any ordinary person can chant Baglamukhi Mantra but its Tantra Sadhana should be performed only under able guidance of a capable person.
The unrest and violence is growing in Kaliyuga due to growth of demonic powers. The worship of Shree Pitambara is the best method to destroy these and to restrict the wicked.

Baglamukhi – Stambhan Shakti
Baglamukhi MahaVidhya is one of the Ten MahaVidhyas. These are also known as Brahmastra Vidhya, Shadkarmaadhar Vidhya, Stambhini Vidhya, Treilokya Stambhini Vidhya etc. Mother Baglamukhi fulfills all wishes of Sadhak. Anyone desiring harm or hurt to a Baglamukhi Sadhak gets destroyed himself. A person attains capability to accomplish Restriction, Charming, Hypnotism, Vidhveshan, Maaran or Uchchatan Siddhis or fulfilling his desires by performing Sadhana of Mother Bhagwati Baglamukhi.
The thinking, meditating, routine, everything, of a person suffering obstruction by enemy; gets adversely affected. He cannot conduct fearlessly, he cannot fly freely like a bird in sky. His every moment, every second is consumed by the thoughts to eliminate this obstacle.

Sadhana and Shaktipaat Equilibrium
Just a few days ago I hesitantly asked Gurudev – O Gurudev! How is it that all tasks are accomplished for a few disciples and tasks of other disciples are not completed as desired. Why you do not shower similar special blessings on all?
Gurudev said – The Divine Blessings are same for all persons. The person suffers pain or enjoys happiness due to his destiny; but a person who becomes disciple also performs many mistakes. The day a disciple attains disciple-hood, he should properly comprehend two points, and these two points are – Shaktipaat Diksha and Sadhana practice.
There should be a constant equilibirium balancing coordination between the two, a Sadhak who proceeds only on the Sadhana path, and does not obtain Shaktipaat from Guru regularly, his tasks get accomplished, but they do not get accomplished in desired time, so he gets disappointment and frustration in his mind. Similarly if a disciple obtains Shaktipaat Diksha but does not perform Mantra chanting Sadhana, then he is not able to fully realize the benefits of the Shaktipaat boon granted to him. Therefore each disciple should maintain a proper balance between the Sadhana and Shaktipaat elements in his spiritual Sadhanatmak life. It is important for the newly initiated disciples, as well as experienced adult disciples connected for many years.

Guru eliminates suffering like Shiva
A disciple’s life is full of thousands of sufferings and he does not have enough strength to obtain success over worldly obstacles with his own powers. The obstacles which are mentioned in the beginning of this article, each person suffers from these obstacles in various form in his life, and this causes him to wonder many times – “Is this life a curse or a blessing?“. It is said that one obtains human life-form after undergoing millions of other animal life-forms, then why does a person has so much suffering and pain in this human life form? A Sadhak-disciple seeks shelter of God to obtain solutions to these questions and riddance from these sufferings, and he remembers various Shaktis, he also meets Guru in his life in this process.
These toxics gets eliminated by the Shaktipaat from Guru, and the Amrit Nectar Shakti energises, Baglamukhi is the base this entire process. Baglamukhi enhances all the natures; and when a Sadhak becomes fearless, then he does not cry, does not appeal or plead; because his entire body becomes conscious and each cell-atom of his body becomes a mass of intense energy. Baglamukhi Shakti transfers energy flow into the Sadhak.
SadGuru grants Amrit Nectar to His disciples Sadhaks, He (SadGuru) removes the toxins from the lives of disciples and fills them with joy, rejoice and energy, transfers Amrit element into their lives, enabling their life like boat to steadily progress ahead in the world. One of the major obstacles in life is – The Enemy Obstacle.
If there is mutual discord among the family members, if there is no harmony, if they are unable to understand each other’s point of life, then this is also a major obstacle situation in life. It is important to resolve this obstacle, like the enemy obstacle.
If the body is not in control of mind, and the mind is not in control of the body, then this is also an enmity in life. If the foe-like diseases want to control your body, then it is essential to destroy-eliminate these hostile forces. If the foe-like stress want to control your mind, then it is necessary to restrict and remove these hostile forces. If you are unable to achieve even half the success compared to the efforts put in, then this is also an obstacle, which is facing you like an enemy.
Gurudev stated that all these adverse conditions should be completely destroyed. These obstacles should be rooted out from their basic foundations. For this, every person, every Sadhak should have a fully developed power to restrict, maim and destroy all kinds of obstacles. These powers can be developed through Baglamukhi Sadhana processes.

Guru grants Amrit
Guru has been considered akin to Lord Shiva, because only the Shiva form is capable to limit the poisonous venom of this world within Himself, while granting salvation and relief to His devotees. The disciple also goes to his Guru with this hope and faith to obtain success over the various struggles of life through Guru’s Divine grace.
Guru transfers the pain from the disciple to Himself, takes in the deadly venomous toxins, and grants him His Shakti power. This process of eliminating poisons from the disciple’s life and substituting these poisonous pains with Amrit nectar in called Diksha. The direct meaning of Diksha is – “Shaktipaat”. The rapid flow of power removes the pain and sufferings from both mind and body. When the pain-suffering gets removed, then the Amrit nectar flows through each cell and atom.
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I used to think about Tantra as a meaningless nothing, but when someone used blackmagic against me and my situation worsened within 3 months, then I started thinking about how did it happen? Is it also possible? Why did it happen to me? Who did this to me?
While meeting Gurudev, He advised me not to worry about all these questions. Forget about When, Why and How; you only have to ponder over what to do now. I performed Baglamukhi Sadhana and took Baglamukhi Diksha. Now none of these questions bother me. I am progressing on the path of actions.Of course, I am getting success continuously.
– Sadhak
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I had never imagined that someone can stoop down to so much deceit, just for money. The partner whom I considered as my own, whom I trusted with every thing, he usurped everything and left me penniless. It was probably a virtue of my previous life, that I met SadGurudev on someone’s advice, and obtained Baglamukhi Diksha. Now I have become so strong from within that I can immediately ascertain upon meeting anyone whether that person is favourable to me or not. How to run a business, I obtained a deeper understanding of it only after Baglamukhi Diksha.
-Sadhak
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Gurudev, will my life be always full of obstacles? Whatever work I start, I am unable to finish it completely. Is my life cursed? I have not done anything bad to anyone in this life? Then why is this happening to me? Are the sins of my previous life so much?
Gurudev, you stated in your speech – Obstacles keep coming in human life, and the one who gets afraid of obstacles and assumes defeat, whose life gets stuck there. Your words imparted strength to me and I left despair to start chanting mantras through your support. Last year, I performed Baglamukhi Sadhana and obtained Diksha from you in Delhi. You advised me to certainly chant 1.25 lakh mantras, one Diksha changed the flow of my life. It is a new dawn in my life. Now I regularly chant Baglamukhi Mantra without fail and chant Baglamukhi Mala Mantra on Saturdays. Obstacles do come even now, but they get resolved as well. People say that I destroy obstacles but I know in reality that you Gurudevji provide me energy and the obstacles get eliminated.
-Sadhak
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When I was progressing, I used to feel that it was due to my intelligence, and I reached the pinnacle of success in five years, but when the decline started then the situation turned into – there was none to take advice from, the ones whom I used to say as my own, used to think as my own, they were the first to turn away… I will only state further that – when I received your support and obtained Baglamukhi Shaktipaat from you then this downtrodden person managed to get back on his feet, and started to progress slowly on the path to success.
– Sadhak
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When any monk or ascetic used to preach that no-one is yours. All of your siblings, your relatives are with you only in good times. No one will stay with you in bad times; I used to think of these words as a mere joke. When it really happened to me that I started to understand the significance of these words. Then I got isolated and began to live lonely. I received refuge in Guru feet, Guru guided that – Perform Baglamukhi Sadhana and Gurudev granted me Baglamukhi Diksha. Everything changed in my life, my relatives did not change but I changed. I have found myself, and have understood the reality of the world.
– Sadhak
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A normal healthy body can suddenly fall prey to so many illnesses, one may get multiple diseases one by one. I never thought that this is ever possible. It seemed that all diseases had made my body as their abode, and that my only God was the doctor. Someone suggested a way out, and I reached the Divine shelter of Gurudev, and Gurudev recommended Baglamukhi Sadhana … Baglamukhi Sadhana
I initially performed Sadhana reluctantly, but it had no effect. Then Gurudev granted Shaktipaat Diksha after six months, and it brought in a revolutionary change. All the diseases disappeared and the glow on my face returned back. It seems that I am returning back to the youth.
– Sadhak
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Gurudev, I have completed Baglamukhi Sadhana three times but I have not yet received complete success. Some power appears and repeatedly recommends me – You should receive Sanskaar. I feel that by Sanskaar She means Diksha, and now I wish to obtain Baglamukhi Diksha from you, but I have a hurdle, I am currently posted in Central Services in Jorhat district in Assam. I will require at least ten days for a trip to Jodhpur or Delhi, and it is not possible to take so many leaves from the office. What do I do? How do I do? Please guide. However I am firm in my mind that I have to obtain Baglamukhi Diksha.
– Sadhak

All of these experiences, various thoughts are those of the Sadhaks, which they have written in their own language. We receive daily on average, ten-fifteen letters in Nikhil Mantra Vigyan office about only Baglamukhi Sadhana experiences. This is such a sweet fruit, only one who has tasted it can explain its qualities.
It is not necessary that all Sadhaks will receive similar benefits from Shaktipaat, various Sadhaks obtaining Diksha on same day undergo different kinds of experiences, and these experiences are based on the accumulated karmas and sins of previous lives and karmas of this current life.
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Baglamukhi Tantrokt Power
The Pitambara Baglamukhi Goddess incarnates in Her Sadhak’s life to – provide the force of unmistakable capability of Brahmastra, and to easily destroy the enemies. One can obtain control over every situation in life though this significant Sadhana. This Sadhana is like a fierce torrent storm to vanquish the foes.
The Baglamukhi is extremely potent enemy-eliminator, poverty-destroyer, wealth-bestower and maternal-essence to Her Sadhaks. This is a unique Sadhana among the Ten Mahavidhyas and my experience has been that any person who has accomplished this Sadhana after obtaining Diksha from Gurudev, all the obstacles have disappeared from his life and he has achieved a new debut in his life.
The Baglamukhi Yantra has been considered as the most effective one to dominate enemies, annihilate powerful enemies, casting off the ghost-ghouls, success in litigation and to provide all round success in all spheres of life.
Yogis, Tantriks and Mantriks have earnestly praised it.
You should resolve today itself that you should complete Baglamukhi Mantra chant not in hundreds-thousands, but rather in lakhs before the Baglamukhi Jayanti.It is necessary to perform poojan-worship, and if this poojan is accomplished on Gurudev granted Praan-pratisthit energised-sanctified Baglamukhi Yantra, then its all-round benefits will be outstanding. All of you have to obtain this Baglamukhi Diksha and I again ask you all to accomplish the entire Baglamukhi Manas Diksha-worship with complete rites and rituals.
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Baglamukhi Manas Shaktipaat
Manas Diksha from SadGuru
I am happy to inform all of you Sadhaks-disciples that Gurudevji will grant Baglamukhi Pitambara Manas Shaktipaat Diksha on the auspicious occasion of Baglamukhi Jayanti (14 May 2016). You have make special preparations for this Shaktipaat, you have to perform special Mantra-jap, make special organization in your worship-altar, and you have to setup special Sadhana article Tantrokt Baglamukhi Pitambara Yantra. The Mantra-chanting should be done with intense Tantrokt energised Shaktimala, you have to imbibe the Divine flow of vibrations bestowed by Gurudev in your mind, and you have to resolve to completely eliminate the problems of enmity, discord, scorn and fear from your life. This day is the day of Baglamukhi Sadhana, this day is the day of spiritual union of yours with your Guru. You have to live each moment of this day, and have to imbibe the Baglamukhi Shakti into each cell-atom of yours with Gurudev’s Divine Grace.
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Baglamukhi Jayanti
May 14, 2016, Saturday
(Vaishakh Shukla Ashthami)

Special Process
Intense Shaktipaat
Mind Vibrations – Shakti Activation
Baglamukhi Diksha Initiation
Sadhana-Diksha Period – Morning 7:16 am to 8:56 am
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*** Pujya Gurudev will grant Baglamukhi Manas Diksha on Baglamukhi Jayanti on May 14 2016.
*** Gurudev has specially sanctified-consecrated special Baglamukhi MahaYantra and Baglamukhi Pitambara Mala with Shakti-Samputit and Prana-Pratisthit.
*** Pujya Gurudev has Himself elucidated a simple and clear process for Baglamukhi MahaYantra Sadhana.
*** Baglamukhi MahaYantra Sadhana-Poojan – Dated 14 May 2016 – Poojan-Sadhana has to be started from 7:00 am morning through Sadhana Methods granted by Gurudev (which you will receive along with Sadhana packet).
*** This time, after starting the Poojan at auspicious moment, you should continue to perform worship calmly, and activate yourself through Mantra-chanting. You will feel touch of Gurudev between your eye-brows, on your forehead. Imbibe this touch within yourself and continue to perform Baglamukhi MahaYantra Sadhana-Poojan.
*** After completing the Baglamukhi MahaYantra Sadhana, continue to sit calmly at the same place and sit in Prarthana Mudra taking Baglamukhi Pitambara Mala in your both hands and start chanting Baglamukhi Beej Mantra (Om Hleem Om … Om Hleem Om … Om Hleem Om) in quite calm tone. Close your eyes during Mantra-chanting and mentally meditate on Gurudev’s form in your Sahastraar Chakra.
*** The Sadhak senses an energy circle around him during the Mantra-chanting. Continue to perform Mantra-chanting, whatever is happening in external world, let it happen. Keep focussing on your concentration, and continue the Mantra-chanting process. After some time, the Mantra-chanting process starts from the mind instead of from the lips. Let this process continue. Keep on doing this process until you completely mentally merge with Baglamukhi Shakti and Gurudev; then come back into the present slowly. This process can take anywhere between five minutes to fifty minutes. You observe and experience the Chakra of Intense Energy Shakti rotating in a circle around you and sense this energy flowing into yourself.
*** After completion of Diksha Mantra-japa, pronounce Om three times, and then sip in a little water. Then perform Guru Aarti.
*** Wear the Pitambara Mala in your neck after Diksha and setup the MahaYantra in your worship-altar.
*** Every Sadhak will sense a different experience of the mental wave-flow from Pujya Gurudev during Diksha, do not panic in any situation. Baglamukhi is an intense power and some of effects could be eccentric. You should maintain calm, remain in ever-observant state, and do not bring in any anger or fury emotions. Do not connect with any emotion, do not get enthusiastic about any thought, do not bring in any hatred negative thoughts, just keep witnessing the flow of all thoughts and scenes in your mind, with a detached state.
You should pay special attention to following information during Diksha –
++++ Obtain the Guru Shakti Energised Baglamukhi MahaYantra and Baglamukhi Pitambara Mala well within the time, and keep them at a safe location.
++++ Try not to get up from worship during the Sadhana and Diksha time.
++++ Accomplish the Sadhana – Diksha at a peaceful and pure location.
++++ Partake pure and virtuous Saatvik food during both Diksha muhurath times.
++++ This Sadhana will be simultaneously performed by thousands of Sadhaks at the same time, which will create an intense energy field in the environment, do not fear this energy field, keep observing it with detachment, and continue to chant the Mantra.
Pay special attention –
*** Setup the “Prana Pratisthit sanctified and consecrated Baglamukhi MahaYantra and Mala provided by Gurudev in this year Cheitra Navraatri 2016“. Do not use any old Mala or Yantra.
*** The detailed Sadhana Diksha procedure will be sent to the Sadhaks along with the Sadhana articles, the Sadhaks have to accomplish the Worship-Mantra-Chanting as per that procedure.

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How to obtain the Diksha packet
+++ The “Baglamukhi Diksha Packet” will be sent only after receipt of Diksha offering of Rs. 1500 at the office.
+++ For this, you should send the Bank Pay-In-Slip to Jodhpur office after transferring Rs. 3100 into the “Nikhil Mantra Vigyan” Account at SBI A/C No. – 32677736690 or Union Bank A/c. No. – 310001010036403.
+++ You may either Phone Magazine office (0291-2624081,2638209), or Fax (0291-5102540) or E-mail – nmv.guruji@gmail.com or SMS at 9602334847; to obtain Baglamukhi Diksha. You should provide information about your Magazine Membership Number, your name, your age and your mobile number; for the Diksha.
+++ You may obtain Baglamukhi Diksha only after the receipt of Diksha Packet.
+++ The Diksha packet will be sent to you either by Registered-Post or by Courier from the office after receipt of the Diksha amount offering.
+++ You will receive specific personal instructions regarding the Diksha from the office.

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