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Friday, May 2, 2014

मैं हूँ उनके साथ I'm with them

नोट: यह कविता एक बार गुरूजी ने शिष्यों को सुनाई थी l 
इसमें साफ बताया गया हैं कि वे किस तरह के लोगों का साथ देते हैं l


मैं हूँ उनके साथ


मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ l
मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll
कभी नहीं जो तज सकते हैं अपना न्यायोचित अधिकार l
कभी नहीं जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार ll
एक अकेले हो या उनके साथ खड़ी हो भरी भीड़ l
मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll






निर्भय होकर घोषित करते जो अपने उदगार विचार l
जिनकी जिह्वा पर होता हैं, उनके अंतर का अंगार ll
नहीं जिन्हें चुक कर सकती हैं आतताइयों की शमशीर l
मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll






नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता l
ऊँचे से ऊँचे सपने को देते रहते जो न्यौता ll
दूर देखती जिनकी पैनी आंख भविष्य का तम चीर l
मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll






जो अपने कन्धों से पर्वत से अड़ टक्कर लेते हैं l
पथ की बाधाओं को जिनके पांव चुनौती देते हैं ll
जिनको बांध नहीं सकती हैं लोहे की बेडी जंजीर l
मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll




जो चलते हैं अपने छप्पर के ऊपर लुका धर कर l
हार जीत का सौदा करते जो प्राणों की बाजी पर ll
कूद उदधि में नहीं पलट फिर ताका करते तीर l
मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll





जिनको यह अवकाश नहीं हैं, देखे कब तारे अनुकूल l
जिनको यह परवाह नहीं हैं कब तक भद्रा कब दिक्शुल ll
जिनके हांथों की चाबुक से चलती हैं उनकी तक़दीर l


मैं हूँ उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़ ll

Nikileshhwaranand Eulogy निखिलेश्वरानंद स्तवन


||| निखिलेश्वरानंद स्तवन |||२३ ||


त्वहं प्रेम्तरूपम परम मधुर श्रेय इति च
न शक्यत्वं ज्ञानं श्रिय प्रिय इति र्वें श्रियमहो |
त्व संसर्ग देह भवत परमोच्च सुख वदें
र्द्वे किन्नं स्वर्गं च सुर वदन प्या तृप्त इति न: ||

हे प्रभु! सिद्धाश्रम के योगियों ने जो आप को "प्रेममय" शब्द से संबोधित किया है, वह वास्तव में ही सत्य है क्योंकि आपकासारा शरीर प्रेममय है, आपने पने जीवन में प्रेम को ही बांटा है और पृथ्वी को ज्यादा प्रसन्न, ज्यादा आनन्द युक्त बनाने काप्रयास किया है | जब हम उच्चकोटि के संन्यासी आपके विशुद्ध और निश्छल प्रेम को भली-भांति नहीं समझ सकते, फिरसामान्य सांसारिक व्यक्ति यदि उस प्रेम को वासना या तुच्छता समझ लें, तो इसमें उनका क्या दोष? क्युकी जो स्वयं जैसाहोता है, वह दूसरों को भी वैसा ही समझता है |


आप द्वारा प्रेम पाना और आपकी सामीप्यता प्राप्त हो जाना, तो कई-कई जन्मो का सौभाग्य है | वास्तव में ही वे धन्य हैंजिन्होंने आपके मन और शरीर की सामीप्यता प्राप्त की है |


सिद्धाश्रम और देव लोक की अप्सराएं, किन्नरियां, गन्धर्व और स्वयं ऋषि भी आपके शरीर का स्पर्श, सामीप्यता, साहचर्यऔर संसर्ग-सुख प्राप्त करने के लिए अभिलषित रहते हैं, फिर सामान्य सांसारिक व्यक्ति यदि ऐसा चिन्तन रखे, तो इसमेंआश्चर्य क्या?


प्रेम क्या है? यह आपके शरीर से ही पहिचाना जा सकता है | आनन्द क्या है? यह आपको देख कर ही अनुभव किया जा सकताहै | जीवन्तता क्या है? यह आपका स्पर्श करने पर ही अनुभव की जा सकती है | आपका प्रत्येक रोम प्रेममय है, आपके नेत्र,आपकी चितवन, आपकी मुस्कराहट सब कुछ प्रेममय है, ऐसा लगता है कि ये आंखें चकोर की तरह आपको निहारती हे रहें,आपके रूप-रस का पान करती ही रहें, और पूरा जीवन इसी प्रकार से व्यतीत हो जाय |


वास्तव में ही यदि आपको "निखिलेश्वरानंद" न कह कर प्रेममय कहें, आनन्दमय कहें, सत चित् स्वरुप कहें, पूर्णमय कहें"पूर्णमद: पूर्णमिदं" कहें और प्रेम की कला में पारंगत कहें, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि आप स्वयं प्रेम के साक्षात्अवतार हैं | आपके इसी प्रेममय स्वरुप को मैं अत्यन्त आनन्द के साथ प्रणाम करता हूं || २३ ||

Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji



har pal nikhil kaho guru bhajan हर पल निखिल गुरु भजन सँगीत

हर पल निखिल गुरु भजन सँगीत 


हर पल निखिल
जीवन का सोभाग्य है इस जन्म मैं सद्गुरु मिले है , अब एसा पल न जाने कब आयेग ? इस जीवन मैं सब कुछ छोड़ कर हम गुरुमय बन जाये ऐसा इस जीवन का सोभाग्य हो , इस सिर्फ होठो से ही नहीं आप का रोम रोम उस निखिल की बंदना करना चाहिए। जब दिल के तार सद्गुरु से जुड़े गे तो निश्चय ही हमरे भाग्य खुल सकेगे और हम उस निखिल से एकाकार बन सकेगे। .

सभी धर्मो का त्याग कर मेरी शरण मैं आ जाओ। ।
प्रेम माय बन जाओ निखिल माय जाओ गुरुमय बन जाओ। .

गुरुवर शरण, गुरुवर शरण, गुरुवर शरण गहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

गुरुवर शरण, गुरुवर शरण, गुरुवर शरण गहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

जिस देश में, जिस भेष में रहो | जिस देश में |
जिस देश में, जिस भेष में रहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

गुरुवर शरण, गुरुवर शरण, गुरुवर शरण गहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

जिस ध्यान में, जिस स्थान में रहो | जिस ध्यान में |
जिस ध्यान में, जिस स्थान में रहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

गुरुवर शरण, गुरुवर शरण, गुरुवर शरण गहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

जिस योग में, जिस भोग में रहो | जिस योग में |
जिस योग में, जिस भोग में रहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

गुरुवर शरण, गुरुवर शरण, गुरुवर शरण गहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |
हर पल निखिल, हर पल निखिल, हर पल निखिल कहो |

Tuesday, October 2, 2012

what is paap by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji

what is paap by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali ji
what is paap  and how end this Paap karm...